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पाश्चात्य शिक्षा, प्रेस और साहित्य ने मिलकर यूं खींच दी भारत की आजादी की लकीर

पूर्व-औपनिवेशिक भारत की पहचान अपनी स्वदेशी शिक्षा प्रणाली के लिए रही थी। अंग्रेजों ने वर्ष 1813 तक तो शैक्षिक क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं किया, मगर इसके बाद भारतीयों के सहयोग या सीमित संख्या उनके साथ के बाद ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने भारत में शिक्षा की पश्चिमी प्रणाली शुरू कर दी। बाद में इसके परिणामस्वरूप प्रेस भी अस्तित्व में आया और साहित्य भी मुखर हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी सिर उठाने लगी।

भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रादुर्भाव

प्रेस, साहित्य एवं अभिव्यक्ति की आजादी का उदय

निष्कर्ष

एक बात हमें याद रखनी होगी कि पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार से फैली जागरूकता के बाद उन दिनों अखबारों को राजनीतिक चेतना जगाने के एकमात्र उद्देश्य के साथ प्रकाशित किया गया था। बताएं, आपके मुताबिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने और औपनिवेशिक शासन का पर्दाफाश करने के अलावा प्रेस की क्या भूमिका रही?