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आखिर क्या है महात्मा गांधी और सत्याग्रह आंदोलन का रिश्ता, कैसे और कहां से हुई इसकी शुरुआत

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सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ होता है- सत्य के लिए आग्रह यानी कि सत्य को सदैव पकड़े रहना। गांधी जी का सत्याग्रह सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित था। उनके अनुसार एक सत्याग्रही हमेशा सच्चा,अहिंसक  और निडर रहता है। महात्मा गांधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद ‘प्रेम’ अध्याहत है। जिसका मतलब सत्य के लिए प्रेम द्वारा आग्रह करना ही सत्याग्रह है। एक सच्चा सत्याग्रही कभी भी बुराई के खिलाफ लड़ते हुए भी बुराई फैलाने वाले से घृणा नहीं करता बल्कि उसके प्रति अनुराग रखता है। वह कभी भी बुराई के सामने नहीं झुकता, चाहे परिणाम जो भी हो। गांधी जी के अनुसार केवल बहादुर और दृढ़-निश्चयी व्यक्ति ही सच्चा सत्याग्रही बन सकता है। कायर व्यक्ति हिंसा का सहारा लेता है जिसका सत्याग्रह में कोई स्थान नहीं है।

दक्षिण अफ्रीका में गांधी का सत्याग्रह आंदोलन 

महात्मा गांधी ने ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया को सत्याग्रह का पाठ पढ़ाया है। महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत 1894 ई. में दक्षिण अफ्रीका से हुई थी। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अन्याय, रंगभेद और शोषण की नीति के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की थी। साल 1906 में दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने भारतीयों के पंजीकरण के लिए एक अपमानजनक अध्यादेश जारी किया। उस वक्त गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में ही थे। इस अध्यादेश गांधी जी और वहां पर रहने वाले दूसरे भारतीयों को रास नहीं आया। जिसके बाद गांधी जी ने वहां एशियाई लोगों के साथ भेदभाव के क़ानून को पारित किये जाने के ख़िलाफ़ साल 1906 में पहली बार सत्याग्रह का प्रयोग किया।

सितंबर 1906 में जोहन्सबर्ग में गांधी जी के नेतृत्व में एक विरोध सभा का आयोजन किया गया। गांधी जी ने बिना किसी हिंसा के दक्षिण अफ्रीका में वहां के सुरक्षाकर्मियों के सामने अध्यादेश को आग के हवाले कर दिया। इस वक्त गांधी जी को लाठी चार्ज भी झेलना पड़ा था। 6 नवंबर 1913 के दिन महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीतियों के खिलाफ ‘द ग्रेट मार्च’ का नेतृत्व भी किया। इस मार्च में 2 हजार भारतीय खदान कर्मियों ने दक्षिण अफ्रीका में न्यूकासल से नेटाल तक की पदयात्रा की थी। इस यात्रा में 127 महिलाएं, 57 बच्चे और 2037 पुरुष शामिल थे। इस यात्रा के दौरान महात्मा गांधी को उनके समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था। आखिरकार महात्मा गांधी को उनकी मेहनत और संघर्ष का फल मिला। भारतीय सरकार और ब्रिटिश सरकार के दबाव के तहत एक समझौते को स्वीकार किया गया। इस समझौते को लेकर गांधी जी और  दक्षिण अफ्रीकी सरकार के प्रतिनिधि जनरल जॉन क्रिश्चियन स्मेट्स के बीच बातचीत हुई और भारतीय राहत विधेयक पास हुआ।

भारत में सत्याग्रह आंदोलन

साल 1915 में महात्मा गांधी भारत लौटे। उस वक्त तक दक्षिण अफ्रीका में किए गए उनके सत्याग्रह आंदोलन की खबर भारत के कोने- कोने तक पहुंच चुकी थी। जिसकी वजह से भारत आने पर महात्मा गांधी का भव्य स्वागत किया गया। भारत लौटने पर महात्मा गांधी ने नेशनल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की और नरम दल के नेताओं को अपने साथ किया। जिसके बाद उन्होंने पूरे देश का भ्रमण कर जायजा लिया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वे पूर्ण रुप से कूद पड़े।

चंपारण सत्याग्रह

भारत में सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत साल 1917 में नील की खेती वाले चम्पारण ज़िले से हुई। यहां किसानों को मजबूरन अपनी जोत के एक हिस्से में अंग्रेजों के लिए नील की खेती करनी पड़ती थी। गांधी जी के जाने पर वहां के किसानों ने उन्हें अपना दुख-दर्द सुनाया। जिसके बाद गांधी जी ने वहीं से पहली बार सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। यहां गांधी जी की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन सुनवाई के दौरान भीड़ को देखते हुए मजिस्ट्रेट को उन्हें रिहा करना पड़ा। जिसके बाद अंग्रेज सरकार ने मजबूर होकर एक जांच आयोग नियुक्त किया और महात्मा गांधी को उसका सदस्य बनाया। चंपारण में कानून बनाकर सभी गलत प्रथाओं को खत्म कर दिया गया। गांधी जी ने यहीं से देश को स्वच्छता का भी संदेश पहली बार दिया था।

नमक सत्याग्रह

नमक सत्याग्रह भी महात्मा गांधी के चलाए गए आंदोलनों में से एक प्रमुख सत्याग्रह आंदोलन था। 12 मार्च साल 1930 में महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था। बापू ने ये मार्च नमक पर ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ निकाला था। उस दौर में अंग्रेजी  हुकूमत ने चाय, कपड़ा और नमक जैसी चीजों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर रखा था। उस समय भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था। इंग्लैंड से आनेवाले नमक के लिए भारतीयों को कई गुना ज्यादा पैसे देने होते थे। इसलिए महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन किया।

खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन

चंपारण के बाद गाँधीजी ने खेड़ा के किसानों की ओर ध्यान दिया। गुजरात के खेड़ा जिले में साल 1917 में बहुत अधिक बारिश होने की वजह से फसल बर्बाद हो गई थी। जिसकी वजह से भयंकर आकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई। ऐसी विषम परिस्थिति में खेड़ा के किसानों ने अंग्रेजी हुकूमत से अनुरोध किया कि उनसे इस साल मालगुजारी न वसूल किया जाए। लेकिन अंग्रेज नौकरशाहों ने किसानों की एक ना सुनी। तब गांधीजी ने वहां के किसानों के साथ मिलकर अंग्रेज सरकार की कर – वसूली के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन किया था। यह आंदोलन यह महात्मा गांधी की प्रेरणा से वल्लभ भाई पटेल एवं अन्य नेताओं की अगुवाई में हुआ था। आखिरकार अंग्रेजी सरकार ने गरीब किसानों से लगान की वसूली बंद कर दी।

निष्कर्ष

बापू ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में बहुत सारे सत्याग्रह आंदोलन किए। लोगों को हर बार इसके अलग- अलग रुप भी देखने को मिले। बाद के सालों में सत्याग्रह के तरीक़ों के रूप में उपवास और आर्थिक बहिष्कार का उपयोग भी किया गया। गांधी जी का मानना था कि सत्याग्रह कहीं भी सम्भव है, क्योंकि यह किसी को भी परिवर्तित कर सकता है। महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन और सत्याग्रह का जन्म दक्षिण अफ्रीका में ही हुआ, लेकिन महात्मा गांधी के इस हथियार ने भारत की आजादी का रास्ता भी खोल दिया।