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सुधार के पहियों पर भारत में यूं बढ़ती गई शिक्षा की गाड़ी



शिक्षा ही इंसान को इंसान बनाती है। यही वजह है कि प्राचीन काल से भारत में शिक्षा का विशेष महत्व रहा है। हिंदू धर्म में भी जिन 16 संस्कारों का जिक्र किया गया है, उनमें भी शिक्षा से संबंधित विद्यारंभ संस्कार, वेदारंभ संस्कार, केशांत संस्कार और समावर्तन संस्कार का उल्लेख है। भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति वक्त के साथ हमेशा बदलती गई है। तब से आज तक के काल में इसमें व्यापाक बदलाव आये हैं।

भारत में शिक्षा का उदय

भारत में शिक्षा का विकास

वक्त के साथ भारत में शिक्षा का विकास अलग-अलग चरणों में होता चला गया। मध्यकालीन भारत में शिक्षा के प्रचार-प्रचार के लिए मदरसे खोले गये थे। अजमेर, दिल्ली, लखनऊ एवं आगरा आदि जगहों पर मुगल शासकों की ओर से मदरसे खुलवाये गये। बाद में आधुनिक शिक्षा प्रणाली की शुरुआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल से कही जा सकती है।

ब्रिटिश शासनकाल के आरंभिक दिनों में

वर्ष 1813 का चार्टर एक्ट

आमने-सामने हुए आंग्ल और प्राच्य समर्थक

वर्ष 1835 में आई लॉर्ड मैकाले की शिक्षा प्रणाली

वर्ष 1854 का वुड डिस्पैच या वुड घोषणापत्र

वर्ष 1882-83 में हंटर शिक्षा आयोग

वर्ष 1917 में सैडलर आयोग

वर्ष 1929 में हर्टोग समिति

वर्ष 1944 की सार्जेन्ट योजना

वर्ष 1948-49 का राधाकृष्णन आयोग

वर्ष 1964-1966 का कोठारी आयोग

निष्कर्ष

एक चीज तो साफ हो जाती है कि भारत में जिस शिक्षा प्रणाली की शुरुआत अंग्रेजों के शासनकाल में हुई, उसका उद्देश्य केवल उसी तरीके से भारतीयों को शिक्षित करने का था, जिससे कि अंग्रेजों के हितों की पूर्ति हो सके। मतलब साफ था, भारतीयों को शिक्षित ऐसे बनाओ कि अपना उल्लू सीधा होता रहे, मगर इसने कहीं-न-कहीं शैक्षणिक सुधार की नींव रख दी, जो कि आजादी के बाद और मजबूत होती चली गई। फिर भी, क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अभी भारत की शिक्षा प्रणाली में और विकास की जरूरत है?