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आखिर क्यों कर रहे हैं देश के किसान आत्महत्या?

कुछ समय पहले तक भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। भारत देश को यह दर्जा देने में भारतीय किसानों का बहुत बड़ा हाथ था। लेकिन जमींदारी प्रथा और ब्रिटिश शासन ने भारतीय किसान को प्रेमचंद के गोदान का होरी बना दिया जो सारी ज़िंदगी एक गाय की आकांशा करता हुआ मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। वहीं बिमल रॉय का दो बीघा जमीन का मुख्य पात्र अपनी दो बीघा ज़मीन को जमींदार से छुड़ाने के प्रयास में परिवार सहित मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। 1947 में देश को आज़ादी मिली तो भारत के प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने किसानों को भारतीय सेना के बराबर महत्व दिया। तब से लेकर आज तक असंख्य कृषक विकास की योजनाएँ बनीं और गुणगान हुए लेकिन आजादी के 70 वर्ष बाद भी होरी और उसे जैसे असंख्य किसान पेड़ से लटककर अपनी जान दे रहे हैं।

शंभू महतो ने आत्महत्या क्यूँ करी :

कोई भी व्यक्ति आत्महत्या इसलिए करता है क्यूंकी उसके सामने जीवन को जीने की वजह खत्म हो जाती है। यही अवस्था भारतीय किसान या शंभु महतो की भी है। अन्नदाता कहा जाने वाला किसान इक्कीसवीं सदी के अंत में भी जानलेवा गरीबी और रोम-रोम तक डूबे कर्ज के कारण ज़िंदगी से हार मान रहा है। 1950 से शुरू हुआ पंचवर्षीय योजनाओं का दौर किसान को न तो खेती करने के लिए सस्ती दर पर नए और आधुनिक कृषि उपकरण दिलवा सके और न ही बैंक रक्त लोलुप जमींदारों का स्थान ले सके। अगर कोई किसान जान हथेली पर रख कर कर्ज लेता है तो उसका ब्याज मूल से अधिक भारी हो जाता है जिसका भुगतान किसान को अपने प्राण देकर करना पड़ता है।

खेती से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा गांव के साहूकारों को ब्याज देने में ही निकल जाता है तो इस स्थिति में होली और दीवाली तो बेचारा कृषक स्वप्न में ही मना पाता है।

किसान और समस्याएं :

सदियों से किसान और समस्या एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं। खेती की सभी जरूरतें जैसे  खाद, बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाओं के लिए  लिया गया कर्ज शायद ही कभी एक पीढ़ी में चुकाया जाना संभव होता है। इसके बाद भी कई बार प्राकृतिक आपदा जैसे सूखा, बाढ़, पाला फसलों के रोग, कीड़ों, आगजनी व जानवरों वगैरह की वजह से फसल बर्बाद हो जाती है और किसानों को अकसर लाभ की बजाय हानि उठानी पड़ती है। इसके अलावा किसानों को तैयार फसल का सही दाम न मिलने के कारण नुकसान अवश्यंभावी हो जाता है।

किसानों की आत्महत्या का समाधान :

अगर सचमुच इस ज्वलंत समस्या को हमेशा के लिए हल करना ही है तो निम्न उपायों को ईमानदारी से लागू करना होगा:

  1. सरकार द्वारा फसल गारंटी योजना को लागू करना;
  2. सस्ते ब्याज दर पर किसानों को ऋण उपलब्ध कराना;
  3. किसानों को ऋण देने के लिए अलग से एक निश्चित राशी का प्रावधान करना;
  4. तैयार फसल को सही कीमतों पर बेचने का प्रबंध करना
  5. सहकारी कृषक समितियों को सही अर्थों में गतिशील होते हुए कार्य करना;

1990 के बाद शुरु हुआ किसानों की आत्महत्या का सिलसिला अगर रोकना है तो भारतीय किसान को मुख्य धारा से जोड़कर उनके अंदर जीवन के प्रति और समाज के प्रति आत्मविश्वास भी जगाना होगा ।