GDP को लेकर मन में आपके यह सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर यह GDP है क्या? सबसे पहले आखिर किसने इसके बारे में सोचा होगा? दरअसल, साइमन कुलजेट नामक एक अर्थशास्त्री ने वर्ष 1937 के दौरान अमेरिका में सर्वप्रथम इसे इस्तेमाल में लाया था। आर्थिक विकास को नाम देने के लिए जब दुनियाभर की बैंकिंग संस्थाएं एक शब्द की तलाश में थीं, तभी अमेरिकी कांग्रेस में साइमन ने जीडीपी की व्याख्या की। बस फिर क्या था, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी कि आईएमएफ ने यह शब्द प्रयोग में लाना शुरू कर दिया।
GDP को ऐसे समझें
इसे कहते हैं Gross Domestic Product, जिसका मतलब है सकल घरेलू उत्पाद। देश की आर्थिक सेहत कैसी, इसे मापने का पैमाना है जीडीपी। हर तिमाही में भारत अपने GDP की गणना करता है। उत्पादन के प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन की जो वृद्धि की दर होती है, उसी के आधार पर GDP तय होता है। कृषि, उद्योग एवं सेवा को इसके अंतर्गत लिया जाता है। उत्पादन इन क्षेत्रों में जिस तरह से बढ़ता है और घटता है, उसका जो औसत होता है, GDP की दर भी उसी के आधार पर निर्धारित की जाती है।
जीडीपी का मापन
महंगाई के साथ उत्पादन की कीमतों में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। इसलिए GDP का मापन दो तरीकों से किया जाता है। एक आधार वर्ष में जो उत्पादन होता है, उसके आधार पर जब GDP की दर तय की जाती है, तो कॉन्स्टेंट प्राइस का पैमाना होता है। वहीं, उत्पादन वर्ष में जब महंगाई दर इसके लिए देखी जाती है, तो इस पैमाने को करेंट प्राइस के नाम से जानते हैं।
कॉन्स्टेंट प्राइस
- एक आधार वर्ष तय करके उत्पादन और सेवाओं का मूल्यांकन भारतीय सांख्यिकी विभाग की ओर से किया जाता है।
- कीमतों को इसमें आधार बनाते हैं। इस तरह से तय होती है कीमत एवं तुलनात्मक वृद्धि दर। यही है कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी।
- महंगाई की दर को दूर रखकर GDP की दर को ठीक तरह से मापने के लिए यह पैमाना इस्तेमाल में लाया जाता है।
करेंट प्राइस
- महंगाई की दर को जब आप GDP के उत्पादन मूल्य में जोड़ देते हैं तो आर्थिक उत्पादन की वर्तमान कीमत की जानकारी आपको मिल जाती है।
- इसका मतलब यह हुआ कि वर्तमान महंगाई दर से आप कॉन्स्टेंट प्राइस GDP को जोड़ देते हैं।
GDP के प्रकार
GDP मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, जो निम्नवत हैं:
वास्तविक GDP
इसमें जीडीपी की गणना कीमत को निर्धारित करके एक आधार वर्ष में की जाती है। निर्धारित कीमतों पर सेवाओं एवं वस्तुओं में एक आधार वर्ष में किस तरह से अंतर आ जाता है, वास्तविक जीडीपी से यही पता चलता है। वर्ष 2011-12 को भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार वर्ष माना गया है।
अवास्तविक GDP
बाजार में वर्तमान में क्या कीमत चल रही है, इसके आधार पर GDP की गणना हो तो इसे अवास्तविक जीडीपी कहते हैं। इसे नामिक GDP भी कहते हैं। जहां वास्तविक GDP से आर्थिक विकास को प्रभावी तरीके से सरकारी परिप्रेक्ष्य में देखने में आसानी होती है, वहीं अवास्तविक GDP का प्रभाव सीधे तौर पर आमजनों पर पड़ता है।
GDP का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
आर्थिक उत्पादन और आर्थिक विकास ही दरअसल GDP के चेहरे के रूप में हमारे सामने होते हैं। हर वो व्यक्ति जो देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, GDP का उस पर प्रभाव पड़ता है।
- शेयर बाजार की स्थिति GDP के घटने-बढ़ने से प्रभावित होती है। GDP यदि नकारात्मक जाए तो निवेशकों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आती हैं। यह इस बात का भी संकेत होता है कि आर्थिक मंदी का दौर आने वाला है। जाहिर सी बात है कि इससे उत्पादन घटेगा। उत्पादन घटेगा तो बेरोजगारी में भी इजाफा होगा। आमदनी प्रभावित होगी। निवेश पर असर पड़ेगा। इस तरह से देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी।
- किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को यदि आप अच्छी तरह से समझना चाहते हैं तो GDP सबसे महत्वपूर्ण इंडिकेटर के रूप में काम करता है। अर्थव्यवस्था की हालत को लेकर यह निवेशकों का सही मार्गदर्शन करता है।
- सरकार जहां नियोजन के लिए GDP को इस्तेमाल में लाती है, वहीं नीति निर्धारक नीतियों का निर्माण करने के लिए जीडीपी का प्रयोग करते हैं।
- हर घटक को उसके सापेक्ष मूल्य के बराबर महत्व GDP में मिलता है। बाजार में तो इसकी खासी जरूरत पड़ती है, क्योंकि जो कीमतें होती हैं, वे उत्पादक के लिए जहां सीमांत लागत (Marginal Cost) दर्शाती हैं, वहीं उपभोक्ता के लिए ये सीमांत उपयोगिता (Marginal Utility) का सूचक होती हैं। इससे उत्पादक उसी मूल्य पर अपने सामान को बेच पाते हैं, जिस मूल्य पर लोग उसे खरीदने के लिए तैयार हों।
- अलग-अलग कंपनी, व्यापार संघ एवं श्रमिक संघ तक GDP के अनुमानों को इस्तेमाल में लाते हैं। छोटे शहरों में पूंजी, श्रम और बाकी संसाधनों के आवंटन को लेकर जब उन्हें कोई निर्णय लेना होता है, तो वे GDP अनुमानों पर ही निर्भर होते हैं। इस तरह से व्यवसायों की रणनीति तक GDP से प्रभावित होती है। प्रतिस्पर्धा से लेकर खुद की क्षमता तक के निर्धारण में GDP की उल्लेखनीय भूमिका रहती है।
निष्कर्ष
GDP को लेकर बहस प्रायः चलती रहती है। खासकर इसके आंकड़ों को लेकर। GDP का योगदान किसी देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण जरूर होता है, मगर कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि देश के विकास की परिभाषा केवल GDP की दर ही तय नहीं करती। बताएं, क्या GDP ही अर्थव्यवस्था की सेहत को मापने का एकमात्र पैमाना है?