पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाना, बेशक एक मुहावरा है, लेकिन जब यह मुहावरा सच साबित होता है, तब हर प्राणी के प्राण संकट में आ जाते हैं। व्यावहारिक रूप में यह स्थिति भूकंप आने की कहलाती है। वैज्ञानिक रूप में भूकंप को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि यह वह स्थिति उस प्रभाव के कारण होती है जब पृथ्वी की आंतरिक परतों पर किसी कारण से हलचल होती है। प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप को सबसे अधिक विनाशकारी आपदा माना जाता है। एक विनाशकारी भूकंप पल भर में पूरे एक शहर को ध्वस्त करने की क्षमता रखता है। भौगोलिक वैज्ञानिकों का मानना है कि विश्व के विभिन्न स्थानों में एक दिन में 50 से 80 से लेकर वर्ष में 2000 हज़ार तक के भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं।
भूकंप के प्रकार:
भूकंप के आने से पृथ्वी की आंतरिक सतह पर होने वाली हलचल का प्रभाव विभिन्न रूपों या प्रकार के रूप में दिखाई देता है। इस अर्थ में कहा जाये तो भूकंप के प्रकार निम्न हो सकते हैं:
- टेकटॉनिक भूकंप :
पृथ्वी की टेकटॉनिक प्लेट या सतह पर होने वाली हलचल टेकटॉनिक भूकंप के रूप में जानी जाती है। वास्तव में पृथ्वी की ऊपरी और आंतरिक सतह विभिन्न प्रकार की प्लेट या शैल के बनी होती है। इन्हें टेकटॉनिक या विवर्तनिक प्लेट कहा जाता है। ये प्लेट एक दूसरे से अलग और ढीली बनावट की होती हैं। तकनीकी रूप से ये सभी प्लेटें धीरे-धीरे हिलती या खिसकती रहती हैं, जिसका पृथ्वी की ऊपरी सतह पर कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखाई देता है। इन प्लेटों का खिसकाव या हिलना कभी एक दूसरे से दूर जाने के रूप में होता है तो कभी नजदीक आने के रूप में होता है। कभी-कभी यह प्लेटें एक दूसरे के ऊपर भी चढ़ जाती हैं। किसी कारण से यही ये प्लेटें तेज़ी से एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाती हैं तब पृथ्वी के ऊपर की सतह पर बड़ा कंपन महसूस होता है। इस स्थिति में यह भूकंप टेकटॉनिक भूकंप कहलाता है। विश्व में आने वाले अधिकतर भूकंप इसी श्रेणी के होते हैं। इसी कारण से इन्हें सामान्य भूकंप भी कहा जाता है। यदि टेकटॉनिक प्लेटों का खिसकाव अधिक गति से होता है तब इस कारण आया भूकंप किसी शहर को क्षणों में धूल-धूसरित करने में समर्थ होता है।
- ज्वालामुखीय भूकंप:
विश्व के 18वीं सदी के वैज्ञानिक भूकंप के आने का मुख्य कारण ज्वालामुखी मानते थे। उस समय की धारणा के अनुसार ज्वालामुखी विस्फोट के कारण पृथ्वी की सतह पर होने वाले कंपन को भूकंप का कारण माना जाता है। इसी लिए इन भूकंपो को ज्वालामुखीय भूकंप कहा जाता है। इस धारणा को सही प्रतिपादित करने के लिए वैज्ञानिक तर्क देते हैं कि जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है तब पृथ्वी की आंतरिक सतह में रिक्त स्थान उत्पन्न हो जाता है। इस रिक्त स्थान को भरने के लिए आंतरिक चटानें सरकने और खिसकने लगती हैं। इसी हलचल का परिणाम भयंकर भूकंप माना जाता है।
एक और धारणा के अनुसार जब पृथ्वी की आंतरिक चटानें किसी भी प्रकार के रिक्त स्थान को नहीं छोड़तीं हैं, तब ऊर्जा का निकास मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इस स्थिति में पृथ्वी के नीचे एकत्रित हुई ऊर्जा अपना मार्ग स्वयं बना लेती है और परिणाम ज्वालामुखी के रूप में सामने आता है। इसी दौरान उत्पन्न हुई ऊर्जा भूकंप का कारण बनता है।
लेकिन तकनीकी विकास ने इस धारणा को निर्मूल सिद्ध कर दिया है। इस धारणा के मत समर्थकों का मानना है कि हिमालय क्षेत्र में यध्यपी गत सौ वर्षों में कोई ज्वालामुखी विस्फोट का चिन्ह नहीं मिला है,फिर भी इस क्षेत्र में बराबर भूकंपों का आना जारी है। इस संबंध में उनका तर्क है की ज्वालामुखी विस्फोट के कारण आए भूकंप का प्रभावित क्षेत्र बहुत सीमित और कंपन भी नाममात्र का होता है।
- कॉलेप्स भूकंप:
इस प्रकार के भूकंप आमतौर पर खदानों के निकट आते हैं। खदानों में होने वाले विस्फोट से आने वाले भूकंप कम कंपन और सीमित क्षेत्र को प्रबवित करने वाले माने जाते हैं। खदान में होने वाले विस्फोट से वहाँ की छतों के गिरने से आस-पास की चट्टानों के खिसकने का कारण बन जाता है। ऐसे छोटे शहर जो खदानों के आस-पास बसे होते हैं, सामान्य रूप से इस प्रकार के भूकंप का कारण बनते हैं।
इसके अलावा बड़े धमाकों जैसे अणु या परमाणु विस्फोट के कारण होने वाली हलचल भी भूकंप का कारण बनती है।
भूकंप का कारण कोई भी हो, सामान्य रूप से इसका परिणाम विनाशकारी ही होता है। पलों में पूरे शहर को नष्ट करने की क्षमता रखने वाले भूकंप तबाही का प्रतीक माने जाते हैं।