भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना का आधार ही व्यापार रहा था, क्योंकि इसी के जरिये ब्रिटिशों ने यहां अपना आधिपत्य जमाया था और धीरे-धीरे भारत को अपना उपनिवेश बना लिया था। यहां आपको ब्रिटिश कालीन भारत में मुक्त व्यापार और भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की बदलती प्रकृति के बारे में बता रहे हैं।
ब्रिटिश कालीन भारत में मुक्त व्यापार
- ब्रिटिश कालीन भारत में मुक्त व्यापार का जबरदस्त प्रभाव रहा। प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने से पहले यानी कि वर्ष 1914 से पूर्व तक मुक्त व्यापार का संचालन अंग्रेजों ने भारत में किया। जितना आयात कपड़ों का नहीं होता था उससे कहीं ज्यादा आयात कपड़ा तैयार करने वाली मशीनों का भारत में हो रहा था। इस तरह से आयात की हुई मशीनों से कपड़े तैयार करके भारत कपड़ों का बड़ा निर्माता बन गया था। साथ ही यहां से कपड़े निर्यात भी होने लगे थे।
- ब्रिटिश व्यापार आयुक्त की वर्ष 1919 में एक रिपोर्ट भी आई, जिसमें बताया गया कि ब्रिटिश वस्तुओं का आयात करके भारत में बेचने वाली कई कंपनियों ने अब खुद से यहां भारत में ही उत्पादन करना शुरू कर दिया और इन्हीं वस्तुओं को बेचना शुरू कर दिया। यही नहीं, वे ब्रिटेन से वस्तुओं को मंगा कर बेचे जाने के खिलाफ भी हो गए।
- अंग्रेजों ने 1800-1947 तक अपनी व्यापार नीति में भारतीय उत्पादकों या उपभोक्ताओं के हितों को बढ़ावा नहीं दिया।
- जब तक ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन ने भारतीय क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत की, तब तक एक अखिल भारतीय व्यापार नीति उभरी। 1846 से ब्रिटिश राज ने एक समान टैरिफ दर अनुसूची शुरू की। ब्रिटेन से आयातित सभी सामानों पर 5 प्रतिशत का कर लगाया गया। बाकी देशों से आयात पर कर की दरें दोगुनी थीं।
- कई नए शोध से पता चलता है कि भारतीय शिल्प उद्योग, जिसमें हाथकरघा कपड़ा उत्पादन भी शामिल है, औपनिवेशिक काल में जारी रहा था। यह संभव है कि 1914 से पहले मुक्त व्यापार ने भारतीय उत्पादकों को नुकसान नहीं पहुंचाया हो, लेकिन इससे निश्चित रूप से ब्रिटिश उत्पादकों को विश्व बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिली।
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की बदलती प्रकृति
- मुख्य रूप से प्लासी की लड़ाई के बाद भारत में औपनिवेशिक शासन की शुरुआत मानी जाती है। इस वक्त इस शासन का उद्देश्य आर्थिक लूट था।
- यहां केवल अंग्रेज व्यापार करके मुनाफा कमाना चाहते थे। यही वजह रही कि ब्रिटिश शासन को फ्रांसीसी और डचों से लड़ाइयां भी लड़नी पड़ीं।
- बंगाल, बिहार और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों को अपने कब्जे में लेने के बाद कंपनी की स्थिति मजबूत होती चली गई।
- भारत के व्यापार पर 1813 से ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार हो गया।
- कच्चे माल की उपलब्धता भारत में अधिक थी। इसे ब्रिटेन भेजा जाने लगा। वहां मिलों में तैयार कपड़े भारत आने लगे। हाथ से बने कपड़ों की तुलना में ये कपड़े सस्ते थे। इस तरह से भारत के कपड़ा उद्योग को जबरदस्त झटका लगा।
- भारत को अपना उपनिवेश बनाने का ब्रिटिश शासन का उद्देश्य मूल रूप से कच्चे माल की उपलब्धता ही सुनिश्चित करना था।
- यहां के संसाधनों का दोहन किया जाने लगा। भारत को औद्योगिक पूंजीवाद के रूप में ब्रिटिश शासन को विकसित करना था, इसलिए यहां के स्थानीय शिल्प उद्योग को अंग्रेजों ने नष्ट करना शुरू कर दिया। भारत को कृषि प्रधान देश में परिवर्तित करना औपनिवेशिक शासन की सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा था।
- ब्रिटेन में तैयार माल को बेचने के लिए भारत में उन्हें अच्छा खासा बाजार भी मिल गया।
- ब्रिटेन में मुनाफा तेजी से बढ़ने लगा। पूंजी अधिक मात्रा में जमा हो गई। यह वह दौर था जब यहां मजदूर संगठित होने लगे। ऐसे में अंग्रेजों को अधिक पूंजी जमा होने पर भी खतरे का अंदेशा होने लगा।
- इस वक्त भारत जैसा उपनिवेश इस मुनाफे को निवेश करने के लिए पूरी तरह से उनके अनुकूल था।
- अंग्रेजों को भारत में अपने व्यापार को और तेजी से फैलाना था। ऐसे में रेल लाइन बिछाना सबसे पहली आवश्यकता महसूस हुई और 1846 में लॉर्ड डलहौजी ने पहला प्रयास किया।
- आखिरकार 1853 में मुंबई से ठाणे के बीच पहली रेल लाइन बिछा दी गई। रेल लाइन का सबसे अधिक विस्तार लॉर्ड कर्जन के समय में हुआ।
- धीरे-धीरे ब्रिटिश शासन ने यहां किसानों को चाय, कॉफी और रबड़ जैसे फसलों का उत्पादन करने के लिए मजबूर करना शुरू किया, जिससे वे अधिक मुनाफा कमा सकते थे।
- इस तरह से आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग समय पर भारत में औपनिवेशिक शासन की प्रकृति भी लगातार बदलती रही। किसी वक्त में यदि भारतीय उद्योग-धंधों को इसका नुकसान पहुंचा, तो कई वक्त ऐसे भी आये, जब अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों की व्यापार करने की नीति ने भारत को ही लाभ पहुंचाना शुरू कर दिया।
- भारत का बाजार तेजी से फैलता जा रहा था। यह इतना विशाल हो गया था कि अब ब्रिटिश शासन को यह महसूस होने लगा कि इसे ही प्रोत्साहित करने में फायदा है, क्योंकि यह बहुत मुनाफा दे रहा है। इसलिए ब्रिटिश शासन ने भी इसे और उन्नत बनाने के प्रयास शुरू कर दिए।
निष्कर्ष
भारत के हिसाब से देखा जाए तो भारत में जो ब्रिटिश उपनिवेश का काल रहा, उसे अंधकार युग से कम नहीं कहा जा सकता। फिर भी इस दौरान जिस तरीके से अलग-अलग वर्गों ने संघर्ष किया, उससे संभावनाओं के द्वार खुलते गए। बताएं, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के बारे में क्या सोचते हैं आप?