बात जब सूरी साम्राज्य की होती है तो सुव्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था की तस्वीर आंखों के सामने उभर जाती है। जिस तरह से शेरशाह सूरी ने अपने राजत्व के सिद्धांत को लागू किया और पूरे साम्राज्य को 47 इकाईयों, जिन्हें कि सरकार भी कहा जाता था में विभक्त कर दिया, उससे शासन चलाना आसान हो गया था। इन इकाईयों को भी सूरी ने परगनों में बांट रखा था। परगने के अंदर भी एक शिकदार-ए-शिकदारान, एक कोषाध्यक्ष और एक हिंदू व एक फारसी लेखक हुआ करते थे, जो हिसाब रखने का काम करते थे। उसी तरह से इन परगनों के अधिकारियों के कामों की देखभाल की जिम्मेवारी मुन्सिफ-ए-मुन्सिफान पर थी। शासन की जितनी भी शाखाएं थीं, शेरशाह सूरी उसमें व्यक्तिगत दिलचस्पी लेकर खुद उनका मूल्यांकन करता रहता था।
राजतंत्र को ताकतवर बनाने का प्रयास
- प्रशासन को केंद्रीकृत करके शेरशाह की ओर से राजतंत्र को अधिक मजबूत बनाने की कोशिश की गई।
- भू-राजस्व निर्धारित करने और इसे वसूल करने के लिए दीवान-ए-वजारत नामक एक विभाग बनाया गया।
- सैनिकों को नियुक्त करने, उन्हें प्रशिक्षण देने और उनके वेतन से संबंधित मामलों के लिए दीवान-ए-आरिज नामक विभाग बनाया गया। साथ ही दाग व हुलिया पद्धति को फिर से जीवित का श्रेय भी शेरशाह को ही जाता है।
- शाही घोषणा पत्र, राज्यपालों के साथ स्थानीय अधिकारियों से पत्राचार एवं संदेशों के अभिलेख के लिए दीवान-ए-इन्सा नामक विभाग का गठन किया गया।
- धर्म संबंधी मामलों के लिए दीवान-ए-रसालत नामक विभाग बनाया गया।
- न्याय और कानून संबंधी मामलों के लिए दीवान-ए-कजा नाम से एक विभाग बनाया गया।
- गुप्तचरी के लिए दीवान-ए-वारिद नाम से एक विभाग था। राज्य में घट रहीं घटनाओं के बारे में सूचना हासिल करना इसका प्रमुख काम था।
प्रांतीय शासन पर एक नजर
- शेरशाह सूरी ने जो शासन व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए 47 भागों में व्यवस्था को बांट रखा था, उसे प्रांत या इक्ता भी कहा जाता था।
- इसके मुख्य पदाधिकारी को सूबेदार कहते थे।
- ये प्रांत भी कई सरकार यानी कि जिलों में बंटे हुए थे।
- अपने जिले में शांति व्यवस्था बनाये रखने का काम शिकदार-ए-शिकदारान यानी कि प्रमुख शिकदार का हुआ करता था, जबकि दीवानी मुकदमों में निर्णय देने का अधिकार मुन्सिफ-ए-मुन्सिफान यानी कि प्रमुख मुंशी को मिला हुआ था।
- हर सरकार के अंतर्गत जो परगने थे, उनकी संख्या करीब 7400 से भी अधिक थी।
परगने के अंतर्गत अधिकारी
- शांति व व्यवस्था बनाये रखने और जरूरत पड़ने पर अमीन को सैन्य सहायता उपलब्ध कराने की जिम्मेवारी शिकदार के कंधों पर थी।
- भूमि की नापी कराने और लगान वसूलने की जिम्मेवारी मुसिफ यानी कि आमील या अमीन को मिली हुई थी।
- खजांची से जुड़े काम फोतेदार देखा करते थे।
- दो कारकुन यानी कि लेखक भी थे। एक हिंदी में तो दूसरा फारसी में अपना काम करता था।
परगनों के तहत भू-प्रशासन
- डेल या मौजा प्रशासन की सबसे छोटी ईकाई हुआ करत थे। डेल गांवों के लिए ही प्रयुक्त होता था।
- ऐसी जमीन जहां खेती तो होती ही थी और साथ में उस जमीन पर लोग बसते भी थे, उसे डेल कहा जाता है।
- उसी तरह से मोजा उस जमीन को कहा जाता था, जहां केवल खेती ही हुआ करती थी।
- इसके प्रधान को पटवारी या मुखिया के नाम से जाना जाता था।
- वैसे गांव ही भू-प्रशासन की सबसे छोटी इकाई हुआ करती थी।
जब्ती पद्धति
- हिंदू ब्रह्म्णों की मदद से अहमद खान नामक शेरशाह द्वारा अधिकृत एक अधिकारी ने भूमि की मापी कराकर खेती भूमि के दस्तावेज तैयार कर लिये।
- तब माप की इकाई के रूप में गज-ए-सिकंदरी का इस्तेमाल हुआ, जो 32 अंगुल या फिर 3/4 मीटर के बराबर थी।
- भूमि माप की यही पद्धति जब्ती पद्धति या फिर टोडरमल पद्धति के नाम से जानी गई।
- सन के डंडे या रस्सी से बने जरीब को शेरशाह ने मापी के लिए प्रयोग में लाया।
- बीघा को माप की सबसे छोटी इकाई और परगना को सबसे बड़ी इकाई बनाया गया।
रैयतवाड़ी पद्धति
- किसानों से शेरशाह सीधा संबंध कायम करने में कामयाब हुआ।
- हर किसान को पट्टा देकर उससे कबूलियत में राजस्व की मात्रा का स्पष्ट उल्लेख करवा दिया जाता था और भू-राजस्व अधिकारियों को कठोरता से संबंधित नियमों का पालन करना पड़ता था।
रय एवं कर
- अनाजों की दर तालिका जो शेरशाह ने तैयार करवाई थी, उसे रय के नाम से जानते हैं।
- किसानों को अनाज या नकद में भू-राजस्व अदा करने की छूट दी गई थी।
- भूमि मापने वाले और भू-राजस्व वाले अधिकारियों को वेतन देने के लिए जरीबाना (उत्पादन का 2.5 प्रतिशत) व मुहसिलाना (उत्पादन का 5 प्रतिशत) कर भी वसूल किये जाते थे।
- हसन खां के हवाले से यह जानकारी भी मिलती है कि कुल उत्पादन के 2.5 सेर प्रति मन अनाज राजकीय गोदामों में इसलिए सुरक्षित रखे जाते थे, ताकि अकाल से निबटा जा सके।
मुद्रा एवं चुंगी संबंधी सुधार
- सोने, चांदी एवं तांबे से बने मानक सिक्के जारी किये गये।
- अशर्फियां जारी की गईं, जो दरअसल 167 ग्रन के सोने के सिक्के थे।
- रुपये के नाम से चांदी के सिक्के भी 180 ग्रेन के जारी किये गये। इनमें शुद्ध चांदी 175 ग्रेन हुआ करता था।
- दाम के नाम से तांबे के सिक्के 322 ग्रेन के जारी किये गये।
- शेरशाह सूरी के समय 64 दाम मिलकर एक रुपया के बराबर होता था।
- कठोर करों को शेरशाह ने हटा दिया। केवल सीमाओं पर और बेचने वाले स्थानों पर ही व्यापार की वस्तुओं पर कर लगाने की अनुमति उसने दी थी।
लोक निर्माण संबंधी कार्य
- सैनिकों के लिए छावनी और सराय बनवाये गये।
- कलकत्ता से पेशावर तक जाने वाली ग्रैंड ट्रंक रोड (जीटी रोड) का फिर से निर्माण करवाया गया। उस वक्त यह सड़क-ए-आजम (प्रधान सड़क) कहलाता था।
- आगरा से चितौड़, आगरा से बुराहनपुर और मुल्तान से लाहौर तक भी शेरशाह सूरी ने सड़कें बनवाई थी।
- रोहतासगढ़ का किला भी उसने बनवाया, ताकि उत्तरी सीमा की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
पुर्तगालियों का बढ़ता प्रभाव
- दूसरी ओर 1500 ई. से ही पुर्तगालियों ने भारत में पैठ बनानी शुरू कर दी थी।
- 1506 ई. में उन्होंने गोवा पर अधिकार जमा लिया था।
- हालांकि, शेरशाह सूरी के शासनकाल में पुर्तगालियों के हस्तक्षेप की जानकारी कहीं नहीं मिलती है।
शेरशाह सूरी का अंत
- 1545 ई. में कलिंजर फतेह के दौरान बगल में बारुद का गोला गिरने से शेरशाह सूरी को अपनी जान गंवानी पड़ी।
- जान देकर भी उसने कलिंजर का किला जीत लिया।
- बिहार के सासाराम में तालाब के बीच बेहद ऊंचे चबूतरे पर उसका मकबरा बनवाया गया, जो कि हिंदू-ईरान वास्तु कला को बेजोड़ उदाहरण है।
निष्कर्ष
शेरशाह सूरी ने 1540 से 1545 ई. तक अपने पांच वर्षों के बेहद छोटे से शासनकाल में ही प्रशासनिक सुधार से लेकर मुद्रा सुधार और लोक निर्माण से संबंधित जो कार्य कर दिये, उसकी वजह से शेरशाह सूरी का नाम आज भी लोगों की जुबां पर है। डाक व्यवस्था को पुनः संगठित करने से लेकर अफगानिस्तान में काबुल से लेकर बांग्लादेश के चटगांव तक जीटी रोड को बढ़ाने का भी शेरशाह सूरी का काम उल्लेखनीय रहा। अपने देश की वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था में आपको शेरशाह सूरी के समय की प्रशासनिक व्यवस्था की कौन-कौन सी चीजें नजर आती हैं?