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1947 से लेकर अब तक आखिर कैसे भारत की राजनीति ने बढ़ाए अपने कदम

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था दुनिया के कई देशों के लिए उदाहरण भी है। ये तो हम सब जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 से पहले हमारा देश ‘भारत’ अंग्रेजों का गुलाम था। आजादी के पहले भारत में ना तो हमारी अपनी कोई राजनीति थी और ना ही अपना कोई कानून इसलिए देश की आजादी के बाद यहां राजनीति का भी जन्म हुआ और कानून के लिए संविधान का भी निर्माण किया गया। भारत की राजनीति अपने संविधान के ढांचे पर काम करती है, क्योंकि भारत एक संघीय संसदीय लोकतांत्रिक गणतंत्र है। जहां पर राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है और प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। आजादी के बाद देश की बागडोर जवाहरलाल नेहरू को सौंपी गई। इसके बाद ही देश में राजनीतिक पार्टियों के गठन की शुरुआत भी हुई।

आजादी के बाद देश में ऐसी राजनीति की शुरुआत हुई, जिसने देश को दो भागों में ही बांट दिया। इसके बाद दिन बदले, रातें बदलीं और राजनीति ने भी करवट ले लिया। पिछड़ेपन से घिरे भारत को विकास के नाम पर अब लूटा जाने लगा। पाटियां देश की नहीं बल्कि अपने घर- परिवार के विकास पर ज्यादा ध्यान देने लगी। समय के साथ- साथ लोकतंत्र की परिभाषा भी बदलने लगी। अब यहां जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा बनाई गई सरकार नहीं, बल्कि पैसे का, पैसे के लिए और पैसे द्वारा बनाई गई सरकार ने सत्ता पर काबिज होने लगी। लेकिन इन सब के साथ- साथ कदम से कदम मिलते हुए भारत की राजनीति का विकास भी होने लगा। धीरे- धीरे देश में विरोधी पार्टियां मुखर होने लगी थी। देश की सत्ता जहां एक ही घराने के हाथों में थी, अब उसपर दूसरी पार्टियों की भी नजरें तीखी हो चली थी। 1952, 1957, 1962 में कम्युनिस्ट पार्टी लोकसभा में विपक्ष में रही।

ना सिर्फ राष्ट्रीय पार्टियां बल्कि अब राज्यों में भी क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व कायम होने लगा। कई राज्यों में तो आंदोलन भी हुए। कई राज्यों का बंटवारा भी हुआ। 1967 के बाद इन क्षेत्रीय दलों की राजनीति पर ध्यान दिया जाना शुरू हुआ क्योंकि इन दलों ने अलग-अलग राज्यों में अपनी जड़ें जमाकर कांग्रेस को 9 राज्यों से बाहर कर दिया। 1980 के दशक में जमकर क्षेत्रीयता की राजनीति हुई। 1989 के बाद बहु-दलीय व्यवस्था राष्ट्रीय स्तर पर दिखाई देने लगी, जहां कई दलों के गठबंधन ने मिलकर सरकार बनाई। भारत में 1977-1979 के समय को अगर छोड़ दिया जाए तो 1989 तक राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का प्रभुत्व रहा। लेकिन 2014 में बीजेपी को मिला स्पष्ट बहुमत 30 साल बाद किसी भी  दल को मिलने वाला स्पष्ट बहुमत है, यह दलीय व्यवस्था के नए दौर या किसी वापसी का इशारा हो सकता है।

मोदी सरकार के सत्ता में आते ही कई बदलाव तो देश के सामने आए ही, लेकिन उनमें से सबसे बड़ा बदलाव जो सामने आया वो था महागठबंधन। जी हां, कई धुर- विरोधी क्षेत्रीय दलों भी एक- दूसरे से गले मिलने लगे हैं। स्पष्ट रुप से कहा जाए तो भारत में देश के विकास के लिए बने भारत की राजनीति का विकास तो जरुर हुआ है, लेकिन देश कितना आगे बढ़ा है, ये कहना जरा मुश्किल है।