वचन के पक्के, कभी किसी के साथ विश्वासघात न करने वाले, दुश्मन को कभी पीठ न दिखाने वाले, हंसते-हंसते रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हो जाने वाले, निहत्थे दुश्मनों पर हथियार न उठाने वाले और शरणागत की रक्षा करने को अपना परम धर्म मानने वाले जो शासक इस देश में हुए, उन्हें ही राजपूत के नाम से जाना जाता है। पुष्यभूति राजा हर्षवर्धन जब नहीं रहे, तो उनके बाद इस देश की राजनीतिक एकता में फिर से दरारें उभर आईं और छोटे-छोटे जिन राज्यों का निर्माण हुआ, उन पर शासन किया राजपूत शासकों ने। इस युग को ही राजपूत युग का नाम भी दे दिया गया। माना जाता है कि भारत में राजपूत युग का प्रादुर्भाव 648 ईं. में तब हुआ जब हर्षवर्धन की मृत्यु हुई थी। यह 1206 ईं. तक कायम रहा था।
क्या है राजपूत का अर्थ?
– राजा के पुत्रों को ही कहा जाता था राजपूत। मुस्लिम शासक जब भारत में घुसे तो उन्हें राजपुत्र बोलने में दिक्कत आती थी। उन्होंने राजपूत शब्द का ही इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
राजपूतों का उदय कैसे हुआ?
राजपूतों के उदय के विषय में सभी विद्धान एकमत नहीं हैं। कोई मानते हैं कि राजपूत प्राचीन क्षत्रियों के वंशज हैं, तो कोई उन्हें विदेशियों का वंशज बताते हैं।
अग्निकुंड से हुए उत्पन्न
- पृथ्वीराज रासो में जिक्र मिलता है कि परशुराम के क्षत्रियों का विनाश करने के बाद देवताओं ने आबू पर्वत पर विशाल अग्निकुंड से परमारों (पंवारों), प्रतिहारों (परिहारों), चाहमानों (चैहानों) एवं चालुक्यों (सोलंकियों) को उत्पन्न किया था। यही चारों फिर अग्निवंशी कहलाए।
- कई इतिहासकार इस मत के हैं कि अग्नि के समक्ष अरबों और तुर्कों से देश की रक्षा शपथ लेने की वजह से ये अग्निवंशी राजपूत के नाम से जाने गये।
प्राचीन क्षत्रियों से हुई उत्पत्ति
- राजपूतों के उदय के बारे में अधिकतर इतिहासकारों का यही मानना है कि प्राचीन क्षत्रिय, जिन्होंने खुद को सूर्यवंशी और चंद्रवंशी में बांट रखा था और बाद में एक तीसरी शाखा भी इनकी यदुवंशी के नाम से लोकप्रिय हुई थी, राजपूत असल में उन्हीं के वंशज हैं।
- माना जाता है कि विदेशी आक्रमणकारियों से देश और धर्म की रक्षा की जिम्मेवारी इनके कंधों पर थी।
विदेशियों से हुआ उदय
- हैहय राजपूतों की जानकारी पुराणों में शकों एवं यवनों के साथ मिलने की वजह से कई इतिहासकारों का यह भी मत है कि राजपूत विदेशों से भारत में आये हैं।
- कर्नल टॉड ने भी मध्य एशिया की शक और सीथियन जातियों की राजपूतों से समानता दिखाकर राजपूतों के उदय को विदेशों से साबित करने की कोशिश की है।
राजपूतों के उदय का मिश्रित सिद्धांत
- कुछ इतिहासकार मानते हैं कि कुषाण, शक, सीथियन गुर्जर और हूण जैसी कई विदेशी जातियां भारत में राज करने के दौरान हिंदू संस्कृति को अपनाते हुए इसमें घुलमिल भी गईं।
- भारत के प्राचीन कुलों में इनके वैवाहिक संबंध भी बने और ये पूरी तरह से यहीं के होकर रह गये। इस तरह से राजूपतों का विकास हुआ।
चौहान वंश
- वासुदेव ने इसकी स्थापना करके अजमेर के पास शाकंभरी में इसकी राजधानी बनाई।
- पृथ्वीराज तृतीय, जिनके बारे में लोक कथाओं में भी पढ़ने को मिलता है, इस वंश के वे सर्वाधिक लोकप्रिय शासक रहे।
- रायपिथौरा के नाम से भी जाने जानेवाले पृथ्वीराज तृतीय 1178 ई. में चौहान वंश के शासक बने थे।
- दिल्ली, झांसी, पंजाब, राजपूताना व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इनका साम्राज्य फैला हुआ था।
- इन्हीं के राजकवि चंदरबरदाई ने अपभ्रंश में पृथ्वीराज रासो और जयानक ने संस्कृत में पृथ्वीराज विजय की रचना की थी।
गहड़वाल वंश
- प्रतिहार साम्राज्य के ध्वंस के बाद उसी के अवशेषों पर चंद्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थाना करके कन्नौज को इसकी राजधानी बनाया।
- आधुनिक पश्चिमी बिहार और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक अपने साम्राज्य को बढ़ाने वाले मुस्लिमों से ‘तुरुष्कदण्ड’ नामक वार्षिक कर वसूलने वाले गोविंद चंद्र गहड़वाल वंश के सबसे ताकतवर शासक हुए।
परमार वंश
- उपेंद्र ने परमार वंश की स्थापना कर धारानगरी को इसकी राजधानी बनाया था।
- मालवा में 972 से 994 ई. के दौरान वाक्यपतिमुंज के नेतृत्व में परमार त्रिपुरी के कलचुरी और चालुक्य नरेश तैलप द्वितीय को हराकर सर्वाधिक शक्तिशाली बनकर उभरे।
- परमार वंश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक 1011 से 1066 ई. तक शासन करने वाले राजा भोज हुए, जिन्होंने कविराज की उपाधि से विभूषित होकर 20 से भी अधिक ग्रंथों की रचना की थी।
चालुक्य वंश
- गुजरात के एक बहुत बड़े भूभाग को जीतकर मूलराज प्रथम ने चालुक्य वंश की स्थापना की थी। उसने अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया था।
- यहां 1022 ई. से 2064 ई. तक शासन करने वाले भीम प्रथम इस वंश के सर्वाधिक ताकतवर शासक साबित हुए, मगर इन्हीं के शासनकाल के दौरान 1025 ई. में महमूत गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को लूटा था।
- इस वंश के मूलराज द्वितीय ने 1178 ई. में मुहम्मद गौरी को आबू पर्वत के समीप पराजित किया था।
- इस वंश के अंतिम शासक भीम द्वितीय थे।
चंदेल वंश
- अत्री के पुत्र चंदात्रेय के वंशज कहलाते हैं चंदेल, जिसके पहले शासक का नाम नन्नुक था।
- मालवा और चेरी पर आक्रमण कर इन्हें अपने साम्राज्य में मिलाने वाला यशोवर्मन इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक साबित हुआ।
- यशोवर्मन का पुत्र धंग भी काफी लोकप्रिय हुआ, जिसने ग्वालियर फतेह किया था और कलिंजर को अपनी राजधानी बनाया था।
- परिमल बुंदेलखंड के चंदेल शासको में अंतिम सबसे ताकतवर शासक था।
- महोबा की रक्षा पृथ्वीराज चैहान से करते हुए आल्हा और ऊदल ने अपनी जान दे दी थी।
चेदि वंश
- कलचुरी वंश के नाम से भी जाने जानेवाले इस वंश के पहला शासक कोक्कल प्रथम हुआ था, जिसने कन्नौज के राजा मिहिरभोज पर विजय पाई थी।
- विक्रमादित्य की उपाधि अंग, उत्कल व प्रयाग पर अधिकार करने वाले और पाल शासकों से काशी को छीन लेने वाले इस वंश के शासक गांगेयदेव ने हासिल की थी।
- अंतिम शासक इस वंश का विजय सिंह रहा था।
पाल वंश
- गोपाल नामक एक सेनानायक ने पाल वंश की स्थापना की और उसके बाद विक्रमशिला विश्वविद्यालय व उदंतपुर विश्वविद्यालय की स्थापना करने वाले धर्मपाल ने गद्दी संभाली थी।
- धर्मपाल के बेटे देवपाल को अरब यात्री सुलेमान द्वारा प्रतिहारव राष्ट्रकूट शासकों से भी ज्यादा ताकतवर बताया गया है।
- रामपाल इस वंश का अंतिम शासक था।
- बंगाल की खाड़ी से दिल्ली और जालंधर से विंध्य पर्वत तक पाल शासकों के साम्राज्य का विस्तार हुआ था।
सेन वंश
- बंगाल में कर्नाटक से आकर बसने वाले मूलतः सेन वंश के शासक थे।
- बंगाल और बिहार में अपनी स्थिति मजबूत बनाकर इन्होंने लखनौती को अपनी राजधानी बनाया था।
- इस वंश के शासक सामंत सेन को ब्राह्म्ण क्षणिय कहा जाता है, जबकि इस वंश का सर्वाधिक ताकतवर राजा विजय सेन (1095 ई. से 1158 ई.) हुआ था।
- विजयसेन के बाद बल्लाल्सेन ने राजगद्दी संभाली थी, जिसने दासनगर और अद्भुत सागर नामक दो ग्रंथ लिखे थे।
निष्कर्ष
बाहरी आक्रमणकारियों ने तभी से भारत में अपने पैर जमाने की कोशिशें शुरू कर दी थीं, जब राजपूत युग स्थापित होने के बाद आगे बढ़ रहा था। राजपूत शासकों ने इन बाहरी आक्रमणकारियों के हर बार दांत खट्टे कर दिये। देश की आजादी को बनाये रखने में राजपूतों का योगदान अविस्मरणीय रहा था। तो राजपूत शासकों की वीरता को लेकर आपका क्या ख्याल है?