चीनी कम्युनिस्ट नेता माओ जेडॉन्ग ने 1 अक्टूबर, 1949 को पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) के गठन की घोषणा की। इस घोषणा ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) और नेशनलिस्ट पार्टी या फिर कुओमितांग (KMT) के बीच बेहद महंगे साबित हुए गृहयुद्ध को पूरी तरह से समाप्त कर दिया। पीआरसी के गठन से चीन में सरकारी उथल-पुथल की लंबी प्रक्रिया जो 1911 की चीनी क्रांति से शुरू हुई थी, वह पूरी हो गयी।
आपसी संघर्ष की शुरुआत
- शंघाई में 1921 में स्थापित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दरअसल राष्ट्रवादी पार्टी के साथ पूर्व में संयुक्त मोर्चे की सीमाओं के भीतर काम करने वाले एक अध्ययन समूह के रूप में मौजूद थी।
- चीनी कम्युनिस्टों ने राष्ट्रवादी सेना के सहयोग से 1926–27 के अभियान में उन राष्ट्रों से छुटकारा पा लिया जो एक मजबूत केंद्रीय सरकार का गठन नहीं होने दे रहे थे।
- हालांकि यह सहयोग केवल 1927 के “व्हाइट टेरर” तक ही कायम रहा, जब राष्ट्रवादियों ने कम्युनिस्टों पर हमला करके या तो उन्हें मार डाला या फिर उन्हें पार्टी से निकाल दिया।
- 1931 में जापानियों द्वारा मंचूरिया पर आक्रमण करने के बाद चीन गणराज्य की सरकार (ROC) को जापानी आक्रमण और कम्युनिस्ट विद्रोह जैसे खतरे का सामना करना पड़ा।
- जापानी हमले की बजाय आंतरिक खतरों पर राष्ट्रवादी नेता च्यांग काई-शेक के अधिक ध्यान देने से हताश होकर जनरलों के एक समूह ने 1937 में च्यांग का अपहरण कर लिया और उन्हें कम्युनिस्ट सेना के साथ सहयोग पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।
- कम्युनिस्टों ने ग्रामीण समाज में अपने प्रभाव को मजबूत करने की दिशा में काम किया।
बढ़ी कम्युनिस्टों की लोकप्रियता
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कम्युनिस्टों की लोकप्रियता भी बढ़ी और उनके लिए समर्थन भी।
- CCP ने महसूस किया कि भूमि सुधार के अपने शुरुआती प्रयासों में उसे सफलता मिल रही है। साथ ही जापानी आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ने के अपने अथक प्रयासों के लिए किसान भी उसकी सराहना कर रहे हैं।
- जापान के आत्मसमर्पण से चीन में गृहयुद्ध के पुनरुत्थान के लिए मंच तैयार हो गया। हालांकि, च्यांग काई-शेक की राष्ट्रवादी सरकार ने अपने पूर्व युद्ध सहयोगी कम्युनिस्ट के चीन पर नियंत्रण को रोकने के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में अमेरिकी समर्थन लेना जारी रखा।
- अमेरिकी सेनाओं ने हजारों राष्ट्रवादी चीनी सैनिकों को जापान के नियंत्रण वाले क्षेत्र में उतार दिया। जापान ने उनके सामने आत्मसमर्पण किया।
- इस बीच सोवियत संघ ने मंचूरिया पर कब्जा कर लिया और तभी छोड़ा जब चीनी कम्युनिस्ट बल ने उस क्षेत्र पर अपना दावा ठोंका।
समानता पर बनी सहमति
- 1945 में राष्ट्रवादी और कम्युनिस्ट पार्टियों के नेता च्यांग काई-शेक एवं माओ जेडॉन्ग ने युद्ध के बाद की सरकार के गठन पर बातचीत की।
- दोनों के बीच लोकतंत्र को महत्व देने, एक एकीकृत सैन्य व्यवस्था और सभी चीनी राजनीतिक दलों के लिए समानता पर सहमति बनी।
- हालांकि, दोनों पक्षों के बीच वर्षों के अविश्वास ने गठबंधन सरकार बनाने के प्रयासों को नाकाम कर दिया।
कम्युनिस्टों की जीत
- 1947 से 1949 तक गृहयुद्ध अपने चरम पर पहुंच गया। अंततः कम्युनिस्ट की जीत की संभावना प्रबल हो गयी।
- हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कम्युनिस्टों के पास कोई बड़ा शहर नहीं था, लेकिन उनके पास मजबूत जमीनी समर्थन, बेहतर सैन्य संगठन और उनका मनोबल था। साथ ही मंचूरिया में जापानी आपूर्ति वाला हथियारों का बड़ा भंडार भी था।
- वर्षों के भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन ने राष्ट्रवादी सरकार के प्रति समर्थन को खत्म कर दिया था।
ताइवान भाग गए च्यांग
- अमेरिकी सरकार में कोई भी नहीं चाहता था कि कम्युनिस्ट के सामने राष्ट्रवादियों की पराजय हो। ऐसे में भड़के हुए राष्ट्रवादियों को जो सैन्य और वित्तीय सहायता दी जा रही थी, उसे जारी रखा गया। हालांकि, यह सहायता उस स्तर की नहीं रही जिसकी अपेक्षा च्यांग काई-शेक को थी।
- अक्टूबर, 1949 में सैन्य जीत के बाद, माओत्से तुंग ने पीआरसी की स्थापना की घोषणा की।
- च्यांग और उसकी सेना चीन को दोबारा हासिल की योजना बनाने के लिए ताइवान भाग गयी।
संयुक्त राज्य अमेरिका को झटका
- घरेलू राजनीति और वैश्विक तनाव के कारण जब नये चीनी राज्य की स्थापना हो गयी तो इसके बाद पीआरसी और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक आम जमीन खोजना कठिन हो गया।
- अगस्त, 1949 में ट्रूमैन प्रशासन ने “चीन श्वेत पत्र” प्रकाशित किया, जिसमें चीन के प्रति अमेरिकी नीति को इस सिद्धांत के आधार पर समझाया गया था कि केवल चीनी सेना ही अपने गृहयुद्ध के परिणाम का निर्धारण कर सकती है।
- दुर्भाग्य से ट्रूमैन का यह कदम उनके प्रशासन को इस आरोप से बचाने में नाकाम रहा कि उन्होंने चीन को खो दिया है।
- 1949 की चीनी क्रांति के बाद 1970 के दशक तक संयुक्त राज्य अमेरिका ने ताइवान में स्थित चीन गणराज्य को चीन की असली सरकार के रूप में मान्यता देना जारी रखा।
- साथ ही उसी सरकार का संयुक्त राष्ट्र में चीनी सीट संभालने के लिए यूएसए ने समर्थन भी किया।
निष्कर्ष
चीनी क्रांति से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति खूब प्रभावित हुई। सोवियत साम्यवादी खेमे में दरार करीब एक दशक तक सामने तो नहीं आयी, मगर सभी ताकतों को यह स्वीकार करना पड़ा कि अंतर्राष्ट्रीय शक्ति के संतुलन में निर्णायक भूमिका निभाने वालों में चीनी साम्राज्य भी महत्वपूर्ण घटक बन कर उभर चुका है। बताएं, 1949 की चीनी क्रांति को यदि आप भारत को नजर से देखते हैं तो आप क्या लगता है कि यह भारत के लिए उपयोगी साबित हुई या नहीं?