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मैं हूं 14th Dalai Lama, दुनिया में शांति, खुशहाली और समृद्धि ही मेरे जीवन का लक्ष्य



आज 6 जुलाई है। आज मुझे, जिसे कि आप 14th Dalai Lama के नाम से जानते हैं, इस दुनिया में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरा पूरा नाम दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो है। मैं वर्ष 2011 में २९ मई तक तिब्बत का राजकीय प्रमुख था। इसके बाद लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित तिब्बती नेतृत्व को मैंने अपनी समस्त राजनीतिक शक्तियों एवं उत्तरदायित्वों को सौंप दिया। इस वक्त तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु के तौर पर मेरी पहचान है और मेरा प्रयास तिब्बत की आजादी के साथ दुनिया में शांति स्थापित करते हुए खुशहाली और समृद्धि को बढ़ावा देना है।

एक किसान परिवार से मैं नाता रखता हूं। उत्तरी तिब्बत में स्थित आमदो के तकछेर गांव में मैंने जन्म लिया था। मेरी पहचान तेरहवें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो के अवतार के तौर पर यानी कि 14th Dalai Lama के तौर पर तब हुई थी जब मैं दो साल का था और मेरा नाम ल्हामो दोंडुब हुआ करता था। करुणा के बोधिसत्व एवं तिब्बत का संरक्षण करने वाले संत Dalai Lama अवलोकितेश्वर या चेनेरेजिग का भी मुझे बहुतों ने रूप माना है। अपने निर्वाण को जिन प्रबुद्ध सत्त्व ने रोकने का फैसला कर लिया, ताकि मानव मात्र की सेवा के लिए दोबारा जन्म लिया जा सके, वही दरअसल बोधिसत्त्व हैं।

शिक्षा जो मैंने हासिल की

शब्द विद्या, आध्यात्मिक विद्या, चिकित्सा विद्या, शिल्प विद्या एवं प्रमाण विद्या जैसे महाविद्या की पढ़ाई की। अभिधर्म, माध्यमिक, प्रज्ञापारमिता, प्रमाण और विनय नामक पांच वर्ग में ये विभक्त थे। ज्योतिष, काव्य, अभिधान, छंद और नाटक नाम पांच लघु विद्या भी मैने अर्जित की। मेरी अंतिम परीक्षा मोनलम यानी कि प्रार्थना उत्सव के दौरान ल्हासा के जोखंग मंदिर में तब शुरू हुई जब मैं 23 साल का हो चुका था। इसमें मुझे सम्मानपूर्वक कामयाबी हासिल हुई और उच्चतम उपाधि गेशे ल्हारम्पा की मुझे प्राप्ति हुई। गेशे ल्हारम्पा की उपाधि बौद्ध दर्शन में डॉक्टर के ही समान है।

जिम्मेवारियां जो मैंने संभाली

History of Tibet पर आप नजर डालेंगे तो पता चलेगा कि 1949 में तिब्बत पर चीन ने हमला कर दिया था, जिसके बाद मुझसे तिब्बत की राजनीतिक सत्ता की बागडोर को संभालने का आग्रह किया गया था। शांति वार्ता मुझे चीन के तत्कालीन नेताओं माओ जेडांग और डेंग जियोपिंग आदि चीनी नेताओं से करनी थी, जिसके लिए बीजिंग भी 1954 में मैं गया था, मगर चीन को शांति मंजूर नहीं थी। अपनी विस्तारवादी नीति के तहत चीन ने 1959 में ल्हासा में तिब्बत के राष्ट्रीय आंदोलन को कुचल कर रख दिया।

ऐसे में मेरे पास शरण लेने के अलावा कोई और चारा शेष नहीं बचा। पड़ोसी भारत में मुझे शरण मिली। तब से यहीं हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मैं रह रहा हूं। यह तिब्बती प्रशासन के केंद्रीय मुख्यालय के तौर पर भी विख्यात है। चीन ने जब हमारे तिब्बत पर हमला किया तो हम संयुक्त राष्ट्र संघ की भी शरण में पहुंचे और अपील की। तिब्बत को लेकर 1959, 1961 एवं 1965 में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से प्रस्ताव तक पारित किये गये।

आगाज किया लोकतांत्रिक प्रक्रिया का

तिब्बत को लोकतांत्रित संविधान की आवश्यकता थी। इसका प्रारूप मैंने तैयार कर लिया और 1963 में इसे पेश किया। काम इस पर चलता रहा। सुधार होते रहे। आखिरकार 1990 के मई में वास्तविक स्वरूप एक वास्तविक प्रजातांत्रिक सरकार के तौर पर इन मूलभूत सुधारों को प्राप्त हो सका। जिन तिब्बती मंत्रिमंडल यानी कि काशग और दसवीं संसद को मैंने नियुक्ति किया था, उन्हें भंग करके मैंने चुनाव करवा दिये। इस तरह से निर्वासित 11वीं तिब्बती संसद के लिए चुनाव आये। जो तिब्बती भारत के साथ दुनिया के 33 देशों में रह रहे थे, उन्होंने एकल मत देकर इसमें भाग लिया। इसमें 46 सदस्य चुने गये।

इसके बाद मंत्रिमंडल के नये सदस्य संसद ने चुन लिये। बाद में मैंने निर्वासित तिब्बती संविधान को संशोधित करने का सुझाव दिया। इसके बाद तिब्बत के कार्यकारी मुखिया के प्रत्यक्ष तौर पर निर्वाचन का मार्ग प्रशस्त हुआ। फिर वर्ष 2001 के सितंबर में प्रत्यक्ष रूप से चुने गये कार्यकारी प्रमुख ने पद्भार संभाल लिया। इस तरह से पहली बार तिब्बत बार अपने राजनीतिक नेतृत्व का चुनाव किया गया।

शांति के लिए मेरे प्रयास

History of Tibet को जानकार आपको समझ आ गया होगा कि तिब्बत के हालात बिगड़ते जा रहे थे। ऐसे में शांति प्रस्ताव के पांच बिंदु तैयार करके मैंने 21 सितंबर, 1987 को अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को संबोधित करते हुए उनके सामने रखे। तिब्बत को शांति का क्षेत्र बनाना मेरा उद्देश्य था, जो एशिया में शांति के एक केंद्र के तौर पर काम करे। मैंने जो शांति प्रस्ताव रखे, आज तक चीन की ओर से इसका सकारात्मक जवाब नहीं मिला है।

पांच बिंदुओं वाली शांति योजना

दुनिया में मेरी पहचान?

अंत में

मैं 14th Dalai Lama भारतीयों के प्रति हमेशा कृतज्ञता महसूस करता हूं। दयालुता ही मेरा धर्म है। चीनी लोगों और नेताओं के भी मैं विरुद्ध नहीं। मैं बस तिब्बत की आजादी का समर्थक हूं। मैं समर्थक हूं शांति, अहिंसा और मानवता का।