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तमिल भक्ति आंदोलन से भारत में हुआ नये युग का सूत्रपात



मध्यकाल में सुल्तानों का अत्याचार और दमन इस कदर बढ़ गया था कि भारतीय समाज एकदम से आतंकित हो चुका था और निराशा का भाव भी लोगों के दिलों में घर कर गया था। इसे दूर करने के लिए और साथ में हिंदू धर्म के अंदर व्याप्त कुरीतियों को भी मिटाने के लिए एक अभियान की आवश्यकता थी, जिसकी जरूरत को कुछ धर्म सुधारकों ने समझा और भक्ति आंदोलन की शुरुआत कर दी। इसे तमिल भक्ति आंदोलन भी इसलिए कहा गया, क्योंकि शुरुआत इसकी सबसे पहले सातवीं से 12वीं शताब्दी के मध्य में दक्षिण भारत में स्थित तमिलनाडु से ही हुई। तमिल ग्रंथ तिरुमुरई एवं प्रबंधंम में इसके बारे में जानकारी दी गई है। शिव भक्त नयनार एवं विष्णु भक्त अलवर आठवीं शताब्दी के मध्य में भक्ति मार्ग के जरिये क्रमशः शैव और वैष्णव धर्म को लोकप्रियता दिला चुके थे। ऐसे में तमिल भक्ति आंदोलन की शुरुआत का श्रेय इन्हें ही देना उचित होगा।

क्यों हुई भक्ति आंदोलन की शुरुआत?

भक्ति आंदोलन का प्रादुर्भाव

भक्ति आंदोलन की खासियत

भक्ति आंदोलन के प्रमुख प्रवर्तक

भक्ति आंदोलन के प्रभाव

निष्कर्ष

तमिलनाडु में शुरू हुआ तमिल भक्ति आंदोलन धीरे-धीरे भक्ति आंदोलन के रूप में पूरे देश में फैल गया। इसने भारतीय इतिहास के साथ भारतीय साहित्य और भारतीय संस्कृति को भी नया स्वरुप प्रदान किया। ईश्वर ने जिस उद्देश्य से इस संसार की रचना की, उस उद्देश्य से लोगों को परिचित कराकर और उनके बीच जागृति पैदा करके यह आंदोलन प्रेम और एकता के सूत्र में लोगों को पिरोने में कामयाब रहा। भक्ति आंदोलन के बिना क्या आज के सामाजिक स्वरुप की कल्पना मुमकिन थी?