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R.D. Burman: संगीत से जिनके प्रयोग ने लिखी रचनात्मकता की अनूठी कहानी



कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। ये बोल हैं R.D. Burman द्वारा संगीत में पिरोये गये उस गाने के जो फिल्म अमर प्रेम का हिस्सा है और जिसे लिखा आनंद बक्शी साहब ने और गाया किशोर कुमार ने है। बिल्कुल इसी गाने के जैसे रही भारत के महान संगीतकार राहुल देव बर्मन की जिंदगी, जो पंचम दादा के नाम से भी जाने जाते हैं।

संगीत के अनूठे हुनर के मालिक आरडी बर्मन, जिनका जन्म 27 जून, 1939 को कलकत्ता में हुआ था और जिन्होंने केवल 54 साल के अपने जीवनकाल में संगीत की नई ऊंचाइयों को छू लिया, संगीत के इस महान जादूगर से जुड़ी कई ऐसी रोचक बातें हैं, जिन्हें जानकर आप भी यही कहेंगे- वाह पंचम दादा वाह!

बीट बॉक्सिंग की कला

‘सबको सलाम करते हैं‘ गाना जागीर फिल्म का यदि आपने सुना है तो आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि इस गाने में शुरू के 20 सेकेंड तक जो धुन आपको सुनने को मिलती है, वह किसी वाद्य यंत्र से नहीं निकाली गई है, बल्कि मुंह से वह धुन निकली है।

एक बार आप उसे फिर से सुनकर देख लें कि क्या आप उसे पकड़ पाते हैं? बीट बाॅक्सिंग आज इसे कहते हैं, लेकिन अपने R.D. Burman साहब ने तो भाई आज से तीन दशक पहले ही इस कला का नमूना पेश कर दिया था।

धुन बना दी जब बारिश की बूंदों से

एक बार मुंबई में फिल्म यूनियन वालों की हड़ताल के कारण जब आरडी बर्मन को कोई स्टूडियो खुला नहीं मिला तो बालकनी में बैठे-बैठे बारिश की बूंदों को ही रिकॉर्ड करते हुए उन्होंने इनकी लय पर धुन को रखते हुए गाना तैयार कर लिया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आरडी बर्मन के संगीत का स्तर क्या था?

आधी भरी हुई बोतल और सैंडपेपर से निकाल दी धुन

देवानंद की फिल्म वारंट का गाना ‘रूक जाना ओ जाना’ और फिल्म शोले का गाना ‘महबूबा-महबूबा’ तो आपने सुना ही होगा। गाने की शुरुआत में जो धुन इन गानों में आरंभ में सुनन को मिलता है, उसे आरडी बर्मन ने आधी भरी हुई बोतले के सिरे पर फूंक मारकर निकाला था।

उसी तरह से जब फिल्म जमाने को दिखाना है के गाने ‘होगा तुमसे प्यारा कौन’ में ट्रेन की आवाज निकालने की जरूरत पड़ी तो आरडी बर्मन साहब ने दो सैंडपेपर को आपस में रगड़ डाला और आवाज तैयार हो गई।

‘पंचम’ नाम मिला था अशोक कुमार से

सचिन देव बर्मन, जो कि आरडी बर्मन के पिता थे उनकी भी ख्याति एक संगीतकार व गायक के रूप में थी और अधिकतर लोग इस बात को जानते हैं, मगर आपमें से कुछ को ही मालूम होगा कि आरडी बर्मन की मां मीरा भी एक गीतकार थीं।

अशोक कुमार को R.D. Burman ने एक बार संगीत के पांच सुर सारेगामापा गाकर सुनाया था। इससे प्रभावित होकर अशोक कुमार ने उन्हें पंचम नाम से पुकारा था और पंचम दा के नाम से भी आरडी बर्मन मशहूर हो गये थे।

धुन बना दी जब स्कूल बेंच और स्कूल की घंटी से

गुलजार की एक फिल्म है किताब, जिसमें ‘मास्टरजी की चिट्ठी’ नामक एक गाना है। गाने के फिल्मांकन में चूंकि स्कूल बेंच को पीटते बच्चों को दिखाना था, ऐसे में संगीत के इस जादूगर ने स्कूल बेंच को ही अपने ऑर्केस्ट्रा में बजा दिया था।

उसी तरह से अमिताभ बच्चन की फिल्म महान के एक ‘ये दिन तो आता है एक दिन जवानी में’ नामक गाने में एक अंतरे के बाद धुन लाने के लिए स्कूल की घंटी को बजाते हुए पानी से भरी बाल्टी में डाल दिया था और इसके कंपन से निकली आवाज को ही गाने में धुन बना लिया था।

बाजा पीठ का

‘रात गई बात गई’ नामक गाना, जो देवानंद की फिल्म ‘डार्लिंग-डार्लिंग’ में है, इसे सुनिए। एक खास थाप गाने के तीसरे मिनट में सुनने को मिलेगा। दरअसल इस आवाज को निकालने के लिए बर्मन साहब ने बिना शर्ट के पेट के बल अपने एक असिस्टेंट को टेबल पर लिटा दिया था और उसकी पीठ को बजाकर यह आवाज निकाली थी।

पहली बार निकाली धुन महज नौ साल की उम्र में

फिल्म फंटूश में एक गाना है ‘ऐ मेरी टोपी पहन के…’, जिसे संगीत R.D. Burman ने सिर्फ नौ साल की उम्र में दिया था। उनके पिता ने फिल्म में इसे इस्तेमाल में लाया था। उसी तरह से गुरुदत्त की फिल्म प्यासा का लोकप्रिय गाना ‘सर जो तेरा चकराये’, जो कि आज भी लोगों की जुबां पर है, इसकी भी धुन आरडी बर्मन ने बेहद छोटी-सी उम्र में ही तैयार कर ली थी।

तालियों को ही बना डाला वाद्य यंत्र

‘तू, तू है वहीं, दिल ने जिसे अपना कहा…‘ फिल्म ये वादा रहा के इस खूबसूरत गाने में तालियों का प्रयोग आरडी बर्मन ने वाद्य यंत्र के तौर पर इतनी खूबसूरती और सटीकता के साथ किया है कि आप भी सुनकर मान जाएंगे कि आखिर आरडी बर्मन क्या चीज थे।

उन्होंने तो फिल्म 1942 ए लव स्टोरी के एक लोकप्रिय गाने ‘प्यार हुआ चुपके से’ में ड्रम स्टिक से तबला भी बजा दिया था, जिसके बाद गीतकार जावेद अख्तर के पास आरडी वर्मन की तारीफ के लिए शब्द भी कम पड़ गये थे।

उतावलेपन के बावजूद संगीत में ठहराव

मशहूर गीतकार ने बीबीसी के साथ बातचीत में आरडी बर्मन को लेकर कहा था कि संगीत रचने के दौरान आरडी बर्मन बड़े ही उतावले और बेचैन दिखते थे, मगर इसके बावजूद एक गजब का ठहराव उनके संगीत में देखने को मिलता था।

वहीं, लोकप्रिय गीतकार जावेद अख्तर ने भी बीबीसी को एक बार बताया था कि बस वर्तमान पे निगाहें हमारे यहां सबकी होती हैं और टैलेंट को नजरअंदाज कर दिया जाता है। आरडी बर्मन जैसे जीनियस को खोने के लिए यही सोच जिम्मेवार है।

चलते-चलते

भारत के महान संगीतकार आरडी बर्मन उर्फ पंचम दादा के लिए यह कहना गलत नहीं होगा कि वे संगीत के पर्यायवाची थे। दिल की हर धड़कन पे उनकी धुनें थिरकती थीं। हर सांस से उनकी संगीत की महक आती थी। हर पल जिंदगी का R.D. Burman का बस संगीत के नाम रहा, बस संगीत के।