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Partition of India: “Radcliffe Line” जिसने बदल दिया भारत का इतिहास



‘बंटवारा’ (partition) शब्द ही दुखदायी होता है, वो भी जब ऐसा बंटवारा हो कि एक 40 करोड़ की आबादी वाला देश बंट जाए दो हिस्सों में, तो दर्द का अंदाजा आप लगा भी नहीं सकते हैं। विश्व के सबसे बड़े बंटवारे को जिसको लोग partition of India के नाम से भी जानते हैं, और उस बंटवारे के लिए खींची गयी रेखा जिसे Radcliffe line कहा जाता है, आज हम आपसे इस लेख में इसी रैडक्लिफ लाइन के बारे बात करने वाले हैं।

हमारी कोशिश रहेगी कि इस लेख में आपसे कई महत्वपूर्ण फैक्ट्स साझा किए जाएं, जिनके बारे में आपको आज के दौर पता होना चाहिए।

इस लेख की बुनियादी बातें जो आपके काम की हैं-

क्या हुआ था 3 जून 1947 को ?

जब हमनें ‘द हिन्दू’ को खंगाला तो हमने सोचा कि पहले आपको ले चलते हैं तारीख 3 जून 1947 में ऑल इंडिया रेडियो के दफ्तर, जहां करीब रात के 8 बज रहें हैं, और वहां देश की सियासत संभालने वाले उस दौर के 3 महत्वपूर्ण लोग बैठे हुए हैं, ये लोग हैं मोहम्मद अली जिन्ना, माउन्टबेटन, और पंडित नेहरू, पूरे देश की निगाह और कान आज रेडियो पर लगे हुए हैं। लोगों ने कयास लगाया हुआ है कि कुछ तो बड़ी घोषणा होगी, सबसे पहले माउन्टबेटन ने ये बताया कि बहुत जल्द ये मुल्क आज़ाद होने वाला है, जिन्ना की बारी आती है, उन्होंने कहा कि मुस्लिम को बधाई, अब हमारा अपना एक जहां होगा। आखिरी में नेहरु ने की आवाज आती है, उन्होंने कहा भारत हमेशा से सेक्युलर रहा है, और हमने विभाजन वाली बात मान ली है। इसी घटना को इतिहासकारों ने ‘3 जून प्लान’ या फिर यूं कहें कि ‘माउन्टबेटन प्लान’ के तौर पर बताया है।

अब चलते हैं आगे के किस्से पर, जब ये तय हो चुका था कि इस देश के अब दो हिस्से होंगे, लेकिन अभी भी लोगों के दिमाग में लगातार भ्रम ये था, कि किस देश के पास कौन सा हिस्सा जाएगा।

इन सबसे बड़ा सवाल ये था कि 40 करोड़ की आबादी वाले देश को बाटने के लिए ब्रिटिश हुकूमत किसको बुलाने वाली है।

कौन थे सर सिरिल रैडक्लिफ?

सर सिरिल रैडक्लिफ जाने-माने ब्रिटिश बैरिस्टर थे। ब्रिटेन की जितनी भी वकील बिरादरी उस दौर में हुआ करती थी, उसमे से सर सिरिल रैडक्लिफ एक बहुत सम्मान के साथ लिए जाने वाला नाम था। ये प्रखर प्रतिभा के धनि भी थे। लेकिन एक ख़ास बात ये है कि इसके पहले उन्होंने कभी भी भारत का दौरा नहीं किया था।

जानते हैं रैडक्लिफ लाइन (Radcliffe line) के बारे में

सीधे शब्दों में कहें तो जो रेखा भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण करती है उसे ही रैडक्लिफ लाइन कहा जाता है। इसे सर सिरिल रैडक्लिफ ने खींचा था, जिसे उन्होंने आज़ादी के दो दिन बाद यानी 17 अगस्त 1947 को दो देशों के नक्शे के साथ पेश किया था। एक देश था भारत और दूसरा था पाकिस्तान।

क्यों खींचा गया था रैड क्लिफ रेखा को ?

इस रेखा को भारत और पाकिस्तान को अलग करने के लिए खींचा गया था, लेकिन बाद में जिसे ईस्ट पाकिस्तान कहा जाता था, वहां बांग्लादेश का निर्माण हो गया, तो अब ये रेखा भारत-पाकिस्तान के साथ भारत और बांग्लादेश के बीच में भी है।

रैडक्लिफ लाइन 1947 का पूरा घटनाक्रम

बीबीसी की रिपोर्ट पर जब हमने नजर डाली तो पता चला कि सर सिरिल रैडक्लिफ ने तब 8 जून 1947 को भारत की धरती पर पहली बार कदम रखा था। उनके पास समय भी ज्यादा नहीं था और ना ही ऐसा कोई अनुभव, समय की बात करें तो उन्हें 36 दिनों का समय दिया गया था भारत के विभाजन के लिए, सिरिल इस बात से भी काफी हद तक वाकिफ थे कि उनके द्वारा पार्टिशन ऑफ़ इंडिया की ही नहीं बल्कि कई मौतों की भी लाइन खींची जाने वाली है। लेकिन हुकूमत के आदेश के सामने सिरिल मजबूर थे, उस दौर के भारत के महामहीम या तो कहें कि वायसरॉय माउन्टबेटन से एक वार्तालाप के बाद रैडक्लिफ अपने काम पर लग गये थे।

फिर आया 14 अगस्त 1947, इसी दिन माउंटबेटन एक आज़ादी समारोह में शामिल हुए, जगह ही कराची, और आज़ादी समारोह था एक मुस्लिम देश ‘पकिस्तान’ का, भारी संख्या में लोग हांथ हिलाकर अभिवादन कर रहे थे, अभिवादन तो कर रहे थे लेकिन लोगों को अपने देश के नक़्शे के बारे में कुछ नहीं पता था।

15 अगस्त 1947 का समय भी आया, भारत के आजादी का समारोह भी काफी ज्यादा जश्न के साथ मनाया गया, लोगों के दिलों में ख़ुशी, आंखों में नमी थी, माउंटबेटन इस समारोह में भी शामिल हुए थे। पंडित जवाहर लाल नेहरु इस देश के पहले प्रधानमंत्री भी चुने गए थे।

फिर 17 अगस्त 1947 को सिरिल रैडक्लिफ ने दोनों देशों के नक्शों को उनके सियासतदारों को सौंप दिया था।

सरांश

सिरिल रैडक्लिफ ने इस विभाजन से जुड़े अधिकतर दस्तावेजों को जला दिया था, मीडिया रिपोर्ट्स को पढ़िए तो आपको ये भी पता चलेगा कि सिरिल ने इस काम के लिए ब्रिटिश सरकार से तनख्वाह भी नहीं ली थी क्योंकि उन्हें हमेशा लाखों लोगों की मृत्यु का अफ़सोस रहा था।

उन्होंने खुद एक लेख भी लिखा था, जिसमे उन्होंने ज़िक्र किया था कि इस काम के बाद के अंजाम को वो अच्छे से समझते थे, वो इसे नहीं करना चाहते थे, लेकिन वो अपने कर्म के आगे मजबूर थे। इसके साथ ही उन्होंने ये भी लिखा था कि जब उन्होंने देखा कि पाकिस्तान के पास कोई बड़ा शहर नहीं आ रहा है, तब उन्होंने लाहौर को पाकिस्तान को देने का फैसला किया था, आज भले ही पाकिस्तान के लोग उन्हें गलत समझें लेकिन जब उन्हें असलियत का पता चलेगा तो वो समझ जाएंगे, ये शब्द सिरिल रैडक्लिफ के हैं।   

कौम के आधार पर क्या एक देश को दो मुल्कों में बांट देना सही था, आज तक इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं है, है तो बस इतिहास के पन्नों में दर्ज तारीखें और अनगिनत शहादत।