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Rahat Indori: मैं मर जाऊं तो मेरी एक पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना



जनाजे में मेरे लिख देना यारों, मोहब्बत करने वाला जा रहा है

‘राहत इंदौरी’ एक ऐसे तल्ख से भरे हुए शायर, जो एक हांथ में बेदर्दी के खिलाफ बगावती झंडा और दूसरे हांथ में वतन के लिए मोहब्बत का परचम फैलाया करते थे। जिन्होंने पहले ही कह दिया था कि

‘मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना’

आपको बता दें कि मशहूर शायर और उर्दू के हस्ताक्षर Rahat Indori ने तो अपने मस्तक पर हिन्दुस्तान उसी दिन लिख दिया था, जिस दिन उनका जन्म हुआ था, एक बेहद दिलचस्प वाकया है जो आप याद रखियेगा कि जिस साल इस मुल्क में संविधान लागू हुआ था, उसी साल और उसी महीनें दिल से चित्रकार और पेशे से शायर राहत साहब का मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में जन्म हुआ था।

इसी के साथ एक वाकया आज के दौर का आप याद करिए, जब देश वैश्विक महामारी से जूझ रहा है, साथ ही आर्थिक संकट ने लोगों के घरों में दस्तक दे दी है, हर प्रमुख मोर्चे पर सियासत हो रही है, फिर से कई लोगों के जहन में संविधान की अस्मिता के सवाल लगातार उभर रहे हैं, तभी संविधान लागू होने के साल पैदा हुए शायर राहत इंदौरी साहब ने हम सबको अलविदा कह दिया है।

इस लेख के दिलचस्प मोड़-

डॉक्टर नवाज देवबंदी राहत साहब को याद करते हुए इंडिया टुडे से कहते हैं कि “राहत साहब के जाने से आज शायरी से मोहब्बत करने वाला हर इंसान गमज़दा है, वो एक शख्स नहीं बल्कि शख्सियत थे, जिनके दिल में मोहब्बत और हिन्दुस्तान बसता था। जिन्होंने हालिया में दुबई के मुशायरे में कह दिया था कि मेरे साथ तस्वीर ले लो अब मैं रुखसत होने वाला हूं, शायद बड़े लोगों की बात खुदा भी सुन लेता है”।

चलिए बिना देर किए हुए आपको लेकर चलते हैं राहत कुरैशी के राहत इंदौरी बनने तक के पूरे सफर पर-

राहत इंदौरी साहब का 70 साल की उम्र में 11 अगस्त 2020 को निधन हो गया, उनका निधन दिल का दौड़ा पड़ने से हुआ।

सरसरी निगाह से देखिये जीवन परिचय

जिस साल देश का संविधान बना था उसी साल 1 जनवरी 1950 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में राहत कुरैशी का जन्म हुआ था। उनके पिता रफतुल्लाह कुरैशी थे, और उनकी अम्मी का नाम निसा बेगम था। आपको अवगत करा दें कि रफतुल्लाह कुरैशी की तीन संतानों के बाद राहत कुरैशी का जन्म हुआ था।

एक अद्भुत कहानी चित्रकारी की

एक नज़र उनकी शादियों पर

उनकी पहली शादी सीमा राहत से 27 मई 1986 हुई थी। तारीख थी जिनसे उनके तीन बच्चे भी हैं, जिसमे एक बेटी और दो बेटे शामिल हैं। इसके बाद साल 1988 में उन्होंने अंजुम रहबर से दूसरी शादी कर ली थी। अंजुम से उनका एक बेटा भी हुआ था, हालाँकि कुछ सालों बाद ही अंजुम और राहत का तलाक भी हो गया था।

आखिर राहत कुरैशी कैसे बने शायर राहत इंदौरी

“उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर-मंतर सब,चाक़ू-वाक़ू, छुरियां-वुरियां, ख़ंजर-वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं, चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है, फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब”

बस, आप यहां आ ही गए हैं तो जान ही जाएंगे कि राहत कुरैशी आखिर कैसे बन गए राहत इंदौरी?

ये जानने के लिए एक बार ऊपर लिखा उनका शेर पढ़िए, बगावती तेवर अपने अंदर रखने वाले राहत, आज भले ही ‘जमींदार’ हो गए हों, लेकिन एक समय में वो चित्रकार हुआ करते थे, और चित्रकारी से रूठना ही उन्हें शायरी की तरफ खींच लाया।

इसके पीछे एक किस्सा भी है, जो खुद राहत इंदौरी साहब ने कई मीडिया इंटरव्यू में बताया है, किस्सा कुछ यूं है कि ‘अपने चित्रकारी के दौर में वो एक मुशायरा अटेंड करने गए हुए थे, उनकी लिखावट पहले से काफी अच्छी थी, इसी मुशायरे के दौरान उनकी मुलाक़ात शायर जां निसार अख्तर से हुई, इस मुलाक़ात के दौरान राहत साहब ने शायर जां निसार से ऑटोग्राफ तो लिया ही साथ ही साथ खुद भी शायर बनने की बात उनसे कह डाली।

किस लहज़े के शायर थे “राहत इंदौरी”

राहत इंदौरी उर्दू भाषा के शायर थे, लेकिन लहज़ा हमेशा से ऐसा रहा है कि कोई भी आम इंसान आसानी से समझ जाए कि राहत साहब कहना क्या चाह रहे हैं। कई शायर सियासतदारों की बिरादरी में पढ़ते हैं लेकिन राहत इंदौरी के अंदर कहीं न कहीं एक राम धारी सिंह दिनकर बसते थे, जो समाज के लिए और सियासत की कुर्सी के शाश्वत प्रतिपक्ष बनने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।

उन्होंने कहा है कि-

“अगर मेरा शहर जल रहा है और मैं कोई रोमांटिक गजल गा रहा हूं तो अपने देश के प्रति वफादार नहीं हूं”

सरांश

पूरी उम्र की तपस्या के बाद उन्होंने साहित्य के लिए ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान में पैदा होने वाली नस्लों के लिए भी बेहतरीन जीने का सलीका छोड़ गए हैं, अपनी शायरी और गजलों  से ये पैगाम भी छोड़ गए हैं कि सियासत को आपने चुना है इसलिए कभी भी सवाल करना बंद मत कीजिये।

उम्र भर की तपस्या के बाद कोयले की खदान से निकलकर आता है एक राहत जो बाद में बनता है इंदौरी, जिसके दिल में राज़ करता है हिन्दुस्तान और आखिरी में हो जाता है वो ज़मींदार।

राहत इंदौरी साहब एक ऐसे शायर जो हमें सिखाकर गए हैं कि-

‘ तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो

मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो ‘

अलविदा राहत इंदौरी साहब! आप हमेशा हमारे दिलो में रहेंगे।