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ऐतिहासिक है NDFB और ABSU के साथ Bodo Peace Accord 2020

बोडो मुद्दे का संपूर्ण हल निकालने की दिशा में केंद्र सरकार की ओर से एक महत्वपूर्ण कदम हाल ही में उठाया गया है। नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) जो कि असम के सबसे खतरनाक माने जाने वाले उग्रवादी समूहों में से एक है, उसके साथ बीते 27 जनवरी को केंद्र सरकार की ओर से Bodo Peace Accord 2020 पर हस्ताक्षर किये गये हैं। इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि जो ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU) लंबे अरसे से पृथक बोडो राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चलाता आ रहा है, उसने भी इस शांति समझौते पर अपने हस्ताक्षर कर दिये हैं। एक और खास बात बोडो शांति समझौते 2020 की यह भी है कि इन संगठनों ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के साथ ही हिंसा का रास्ते का त्याग करने और अब से अलग राज्य बोडोलैंड की मांग नहीं करने का भी दावा कर दिया है।

इन्होंने किये त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर

तीन पक्षों की ओर से हुए Bodo Peace Accord 2020 पर हस्ताक्षर करने वालों में असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, NDFB के चार गुटों का नेतृत्व करने वालों, ABSU के प्रतिनिधि, गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सत्येंद्र गर्ग और असम के मुख्य सचिव कुमार संजय कृष्णा शामिल हैं। इन सभी ने समझौते पर गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में अपने हस्ताक्षर किये हैं।

Bodo Peace Accord 2020 की महत्वपूर्ण विशेषताएं

Bodo Peace Accord का इतिहास

लंबे अरसे से पृथक राज्य की मांग को लेकर बोडोलैंड आंदोलन चला आ रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री की ओर से कहा गया है कि असम के बंटवारे की जो भी आशंकाएं थीं, वे इस समझौते के साथ पूरी तरह से समाप्त हो गई हैं। साथ ही जो बोडो विवाद पिछले 50 वर्षों से चला आ रहा था, अब उसका भी पटाक्षेप हो गया है। इसकी वजह से अब तक 2 हजार 823 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। बीते 27 वर्षों में हुआ यह तीसरा असम समझौता भी है।

सबसे पहले वर्ष 1993 में भारत सरकार के साथ ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन ने पहली बार एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था, जिसका नतीजा यह हुआ कि कुछ राजनीतिक ताकतों के साथ उस वक्त एक बोडोलैंड स्वायत्त परिषद अस्तित्व में आया था। इसके 10 वर्षों के बाद वर्ष 2003 में चरमपंथी ग्रुप बोडो लिबरेशन टाइगर्स यानी कि BLT और भारत सरकार के बीच दूसरा बोडो समझौता हुआ था, जिस पर दोनों ओर से हस्ताक्षर किये गये थे।

क्या है बोडो विवाद?

करीब छ: दशक से असम में बोडो विवाद चला आ रहा है। वर्ष 1960 से ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी भाग में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति बोडो की ओर से पृथक राज्य की मांग की जाती रही है, क्योंकि उनका कहना है कि दूसरे समुदायों की अनाधिकृत मौजूदगी उनकी जमीन पर बढ़ती ही जा रही है और इसके कारण उनकी आजीविका पर बुरा असर पड़ रहा है। साथ ही उनकी पहचान को भी इससे खतरा पैदा हो गया है। हिंसक होने के साथ 1980 के बाद के वर्षों में तीन गुटों में बोडो आंदोलन बंट गया था, जिसमें पहले गुट की अगुवाई नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) ने किया, जिसकी एक अलग राज्य की मांग थी। दूसरे गुट का नेतृत्व बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स (BTF) ने किया, जिसकी अधिक स्वायत्तता की मांग रही, जबकि तीसरे की अगुवाई ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU) ने की, जो समस्या का राजनीतिक समाधान चाह रहा था।

निष्कर्ष

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला की ओर से Bodo Peace Accord को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा गया है कि इससे बोडो मुद्दे का व्यापक तौर पर हल निकाल पाना अब संभव होगा।