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मुस्लिम महिलाओं की जीत है Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2019



मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 यानी कि Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2019 लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में भी पारित हो गया है। राज्यसभा ने इसे 84 के मुकाबले 99 मतों से पारित कर दिया। राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होने के बाद इसने कानून का रूप ले लिया है।

क्या है तीन तलाक?

दरअसल तीन तलाक सदियों से चली आ रही एक ऐसी कुप्रथा रही है, जिसे ‘तलाक-ए-बिद्दत’ भी कहा जाता है और इसे ‘इंस्टेंट तलाक’ या फिर मौखिक तलाक के नाम से भी जानते हैं। पति यदि इसमें एक ही बार में तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कह दे तो इसे तलाक समझा जाता है। वैसे तो पति-पत्नी दोनों के एक-दूसरे को तलाक देने को राज़ी होने की स्थिति में ही इसे मान्य समझा जाता है, किंतु लगभग सभी मामलों में इसमें रजामंदी केवल पति की ही रहती है। यहां तक कि शरीयत ने भी इसे मान्यता नहीं दी है।

Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2019 के खास प्रावधान

ऐसे बना रास्ता

पांच महिलाएं, जो तीन तलाक से पीड़ित थीं, उनकी ओर से सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2016 में अपील की गयी। इसके बाद सुनवाई के लिए 5 सदस्यों वाले विशेष बेंच का गठन हुआ। लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को आधार बताते हुए केंद्र सरकार की ओर से भी यहां तीन तलाक का विरोध किया गया। सर्वोच्च न्यायालय में पांच जजों की पीठ ने दो के मुकाबले तीन वोट से अगस्‍त, 2017 में तीन तलाक को संविधान के खिलाफ और कुरान के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध बताने का निर्णय सुनाया। दिसंबर, 2017 में लोकसभा ने तो इस विधेयक को पारित कर दिया, मगर राज्‍यसभा से यह पारित नहीं हो सका। सितंबर, 2018 में सरकार ने फिर से तीन तलाक को प्रतिबंधित करने वाला अध्‍यादेश जारी कर दिया, जिसमें तीन तलाक को दंडनीय अपराध घोषित किया गया और ऐसा करने पर पति को तीन साल तक की कैद व जुर्माना का प्रावधान किया गया।

सुप्रीम कोर्ट का मत

तीन तलाक को सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार एवं अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया। वर्ष 2002 के शमीम आरा मामले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुरान में भी तीन तलाक का जिक्र न होने की बात कही। मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम (Dissolution of Muslim Marriage Act), 1939 को भी सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए चैलेंज किया था कि बहुविवाह से मुस्लिम महिलाओं को बचाने में यह असफल रहा है।

निष्कर्ष

महिला सशक्तिकरण और विशेषकर मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण एवं सशक्तिकरण की दिशा में Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2019 के पारित होने से एक नया इतिहास बन गया है। बताएं, और कौन सी कुप्रथा के खिलाफ कड़ा कानून चाहते हैं आप?