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इंदिरा गांधी के वो फैसले जिनसे भारत का इतिहास बदल गया

विश्वभर में प्रसिद्ध लौह महिला के नाम से प्रसिद्ध भारत की सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री के पद पर रहने वाली श्रीमति इंदिरा गांधी का जीवन प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहा है। निडर, चतुर और तुरंत निर्णय लेने वाली श्रीमति गांधी ने अपने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए अनेक साहसिक और चौंका देने वाले निर्णय लिए थे। लेकिन यहाँ आपको उन निर्णयों की जानकारी दे रहे हैं जिन्होनें भारत के इतिहास का रुख बदल दिया था ।

१९६९ का बैंक फैसला

आर्थिक समानता को बढ़ावा देने के लिए १९ जुलाई १९६९ को देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। निजी स्वामित्व वाले इन बैंकों के पास देश की लगभग ७० प्रतिशत जमापूंजी का संग्रह था जो राष्ट्रियकारण के बाद सरकारी खजाने में चला गया।

१९७१ का रजवाड़ों का फैसला

१९७१ के आम चुनावों में जीतने के बाद इंदिरा गांधी ने अपने पुराने स्वीकृत फैसले को पुनर्जीवित करते हुए उसमें नयी जान डाली। १९६७ में श्रीमति गांधी ने राजे-रजवाड़ों का प्रिसिपर्व समाप्त करने का निर्णय लिया था। जो उस समय राज्य सभा में अस्वीकृत कर दिया गया। लेकिन १९७१ में इंदिरा जी ने संविधान संशोधन करवाकर देश के सभी राजाओं को मिलने वाले प्रिविपर्स को बंद करवा दिया। इसके साथ ही उन्हें मिलने वाली हर सुविधा को भी बंद कर दिया गया। इस निर्णय से देश में बुराई के रूप में फैली सामंतवाद का पतन सरलता से हो गया।

१९७१ में बांग्लादेश का फैसला

ब्रिटिश राज ने भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर करते हुए पाकिस्तान के दो टुकड़े पूर्वी और पश्चमी पाकिस्तान के रूप में कर दिए थे। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के विरोध में स्वर इतने तेज़ हो गए कि वहाँ से लाखों बांग्ला शरणार्थी आसाम पहुँच गए। भारत में आर्थिक और सामाजिक असंतुलन को देखते हुए १९७१ में इंदिरा गांधी ने वहाँ सेना भेजकर पाकिस्तानी हुक्मरानों की नींद उड़ा दी थी। पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मदद मांगने का प्रयास किया लेकिन रूस के सख्त कदम से वह अपनी चाल में हार गया। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी हमलों को नाकाम करते हुए उन्हें १६ दिसंबर १९७१ को उन्हें आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। इस दिन विश्व युद्ध के बाद हुए सबसे बड़े आत्मसमर्पण के साथ ही विश्व मानचित्र पर एक नए देश बांग्लादेश का उदय हो गया।

१९७५ का इमरजेंसी लगाने का फैसला

१९७५ का वर्ष इंदिरा गांधी के लिए राजनैतिक उथल-पथल भरा था। १९७५ के आम चुनावों में इंदिरागांधी के चुनावी प्रतिद्वंधि और प्रमुख राजनेता राजनारायन ने इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनावी गड़बड़ और अपने पद के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए याचिका दायर कर दी थी। इलाहाबाद कोर्ट ने इस याचिका के हक में फैसला लेते हुए इंदिरागांधी को पद से हटने का आदेश दे दिया। इंदिरागांधी ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के विरोध में स्टे ले लिया। उनके इस कदम से पूरे देश में इंदिरा विरोधी लहर दौड़ गई। तब इंदिरा गांधी ने साहसिक भरा फैसला लिया और २५ जून १९७५ को देश भर में आपातकाल या इमरजेंसी घोषित कर दी। इसके साथ ही देश में हर व्यक्ति के सामान्य नागरिक अधिकार समाप्त हो गए और प्रेस व मीडिया की आज़ादी खत्म कर दी गई। भारतीय इतिहास में इस दिन को “काला दिन” भी कहा जाता है।

१९८४ का ब्लूस्टार फैसला

अस्सी के दशक में सिक्ख स्वयंभू नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले ने पंजाब के टुकड़े करने के लिए नरसंहार कर रखा था। स्वयं भिंडरावाला पुलिस और सुरक्षा बलों से बचकर स्वर्ण मंदिर में छिप गया था। धार्मिक स्थल होने के कारण वह स्वयं को सुरक्षित और अभेद्य मानता था। उसके इस भ्रम को इंदिरा गांधी ने तोड़कर ५ जून १९८४ को सेना के कमांडो को स्वर्ण मंदिर भेजकर इस आतंक का खात्मा करने का निर्णय लिया था। इस अभियान को ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ नाम दिया गया और इसके साथ ही पिछले अनेक वर्षों से चले आ रहे नरसंहार को रोक दिया गया। यह अलग बात है कि इस अभियान का मूल्य अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। ३१ अक्तूबर १९८४ के दिन उनके सिक्ख अंगरक्षकों के उन्हें मार गिराया और अगले दो दिन तक पूरा देश डर और आतंक के साये में जिया था।

वर्ष २०१८ तक के समय में अब तक सबसे अधिक समय तक प्रधानमंत्री के पद पर रहने वाली भी श्रीमति इंदिरा गांधी ही हैं।