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क्या है तीन तलाक?

22 अगस्त 2017 भारतीय मुस्लिम महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन माना जा सकता है। इस दिन भारत की सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक बहुत पुरानी और तकलीफ़देह परंपरा से मुक्ति की राह दिखाई है। इस दिन सुप्रीम कोर्ट ने एक मुकदमे के फैसले में ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए इसकी मान्यता को समाप्त कर दिया है। आइये आपको इस गैर-वाजिब परंपरा के बारे में थोड़ा विस्तार से बताते हैं:

इस्लाम में शादी और तलाक

इस्लाम में शादी में वर और वधू, के अतिरिक्त धार्मिक रीति पूरा करने के लिए काज़ी और दो गवाह की मौजूदगी होनी बहुत ज़रूरी होती है। शादी होने के बाद इस्लाम में यह कहा गया है की यदि पति-पत्नी को किसी समय यह अहसास होता है की दोनों का एक साथ जिंदगी का गुज़रा होना असंभव है तो ऐसे में वो तलाक ले सकते हैं।

इस्लामी शरीयत के अनुसार तीन तलाक

इस्लामी शरीयत के मुताबिक जब पति और पत्नी के रिश्ते खराब हो जाते हैं और वो एक साथ जिंदगी न बिताने का फैसला कर लेते हैं, तो वो कुछ गवाहों के सामने ‘पहला तलाक’ लेते हैं। इसके बाद काज़ी दोनों को 30 दिन तक साथ रहने के लिए कह देते हैं। यह समय सीमा पूरी हो जाने के बाद भी अगर दोनों पक्ष अपने तलाक के फैसले पर कायम रहते हैं तो फिर से गवाहों के सामने ‘तलाक’ बोला जाता है। यह ‘दूसरा तलाक’ माना जाता है। इसके बाद दोनों पक्ष फिर से 30 दिनों तक एक दूसरे के साथ रहते हैं। अंत में अगर तब तक कोई समझौते की सूरत नज़र न आने पर गवाहों के सामने ‘तीसरा तलाक’ हो जाता है। इसके बाद यह माना जाता है की उन दोनों का वैवाहिक संबंध खत्म हो गया है और इसके बाद उनमें पति-पत्नी का रिश्ता समाप्त हो गया है।

इद्दत

तलाक की प्रक्रिया में 30 दिनों की वो समय अवधि जिसमें पति-पत्नी एक साथ रहते हैं, ‘इद्दत’ कहलाती है। यह समय सीमा इसलिए रखी गयी है जिससे पति-पत्नी तलाक के फैसले पर फिर से विचार कर लें। इस समय सीमा में दोनों पक्ष आपसी रिश्तों को सुधार कर जिंदगी एक साथ गुजारने की कोशिश कर सकते हैं।

खुला का हक

इस्लामी शरीयत के मुताबिक अगर कोई महिला अपने शौहर की बुरी आदतों और व्यवहार के साथ जिंदगी बिताने में अपने को असमर्थ पाती है तो वो इस संबंध में अपनी शिकायत काज़ी को कर सकती है। काज़ी इन शिकायतों की छानबीन करके अगर सही पाते हैं तो वह महिला अपने शौहर से तलाक लेने की हकदार हो जाती है। इसको ‘खुला लेना’ कहते हैं।

हलाला निकाह  

शरीयत के मुताबिक अगर तलाक़शुदा पति-पत्नी दोबारा अपना संबंध बनाना चाहते हैं तो उन्हें एक दूसरी प्रथा ‘हलाला’ से गुजरना पड़ता है। ‘हलाला’ प्रथा के अनुसार तलाक़शुदा स्त्री किसी दूसरे शख्स के साथ शादी करके उसके साथ कुछ दिन रहती है और उसके बाद जब उसका यह शौहर उसे तलाक दे देता है तभी वह स्त्री अपने पूर्व पति के साथ फिर से शादी कर सकती है।

ट्रिपल तलाक का गलत उपयोग

कुछ लोगों ने इस प्रथा का गलत इस्तेमाल करते हुए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ट्रिपल तलाक करना शुरू कर दिया था। इसके लिए वो फोन, टेक्स्ट मेसेज, फेसबुक, स्काइप या ईमेल आदि का सहारा ले कर तलाक देकर अपनी पत्नी को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे थे। हालांकि पवित्र कुरान में तलाक की प्रक्रिया न तो इतनी सरल बताई गयी है और न ही उसे अच्छा माना गया है। उसमें कहा गया है की पहले पति-पत्नी के बीच में हर सुलह और सलाह मशविरा के हर संभव कोशिश करी जानी चाहिए। लेकिन कुछ नासमझ लोगों ने ट्रिपल तलाक को एक खेल की तरह इस्तेमाल कर लिया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

भारत की सुप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्य संविधान पीठ ने ट्रिपल तलाक को कुरान के मूल सिधान्त के खिलाफ मानते हुए इसे पूरी तरह से अवैध और अमान्य घोषित कर दिया है। इस समिति में प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ शामिल थे। यह फैसला 3:2 के अनुसार लिया गया जहां न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति उदय यू ललित इस प्रथा को संवैधानिक रूप से गलत मानते हैं अभी इस प्रथा पर छह महीने की रोक लगाते  हुए, सरकार से इस संबंध में कानून बनाने का सुझाव भी कोर्ट ने दिया है।

फैसले की खिलाफत

दरअसल यह निर्णय पाँच सदस्यीय संविधान पीठ में से तीन जजों ने बहुमत से यह निर्णय लिया है। लेकिन दो जज, न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ट्रिपल तलाक की प्रथा को सही मानते हैं और इस फैसले को सही नहीं मानते हैं।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉं बोर्ड

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉं बोर्ड के प्रमुख असुद्दीन ओवेसि ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कहा की मुस्लिम समाज में जमीनी तौर पर कुछ बदलाव लाने की ज़रूरत है। इस संबंध में अधिक कुछ न कहते हुए उन्होने सितंबर माह में भोपाल में एक मीटिंग में इस फैसले पर विचार करने की बात कही।

ट्रिपल तलाक केस क्या है

उत्तराखंड की शायराबानों ने मार्च 2016 में मुस्लिम पर्सनल लॉं (शरीयत) एप्लिकेशन कानून 1937 की धारा 2 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और हलाला को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करी थी। उनका मानना है की इन अधिकारों ने पति के अधिकारों को पति-पत्नी के अधिकारों में भेदभाव करने का उदाहरण माना था।