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क्या है महाराष्ट्र का शक्ति बिल?



देश में महिलाओं और बच्चो के प्रति बढ़ते हिंसक यौन अपराधों और एसिड अटैक जैसी गंभीर घटनाओं से आये दिन हमारे न्यूज़ पेपर एवं समाचार चैनल पटे रहते हैं। ऐसी घटना वाले दिन से कुछ समय तक ये खबरे बहुत सुर्खियां बटोरती हैं, समाज का हर वर्ग ऐसी घटनाओं के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही के लिए सरकार एवं पुलिस प्रशासन पर दबाव भी डालता है। जनता के दबाव के चलते पुलिस फ़ोर्स अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़ भी लेती है। इसके बाद लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद कभी अपराधियों को सजा मिलती है, और कभी जमानत मिलती है, और ये सिलसिला लगातार चलता रहता है। देश में कानून होने के बाद भी ऐसी घटनाओ पर लगाम नहीं लग पा रही है। ऐसे में देश की राज्य सरकारे इस सम्बन्ध में संज्ञान लेती दिखायी दे रही है। आंध्र प्रदेश सरकार का ‘दिशा एक्ट’ और महाराष्ट्र सरकार का ‘शक्ति बिल’ राज्य में महिलाओं और बच्चो के प्रति बढ़ते यौन अपराधों के ऊपर त्वरित कार्यवाही एवं रोकथाम की एक कानूनी पहल है। आज हम महाराष्ट सरकार के ‘शक्ति बिल’ पर विस्तृत चर्चा करेंगे। शक्ति बिल को महाराष्ट्र सरकार द्वारा विधान सभा में इस शीतकालीन सत्र में पेश किया गया है।

शक्ति बिल क्या है?

महाराष्ट्र में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन अपराधों, तेजाब हमले एवं सोशल मीडिया पर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री पर अंकुश लगाने के लिए ‘शक्ति बिल’ का प्रावधान किया है। इस बिल के अंतर्गत महिलाओं और बच्‍चों के खिलाफ यौन अपराधों पर मृत्यु दंड, आजीवन कारावास तथा भारी जुर्माने का प्रावधान है।

“शक्ति बिल” को शक्ति कानून का रूप देने के लिए विधेयक के मसौदे में भारतीय दंड संहिता, सीआरपीसी और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं में संशोधन करने का प्रस्ताव है।

महाराष्ट्र सरकार द्वारा इसे अपनी विधान सभा में 14 -15 दिसंबर को रखा गया है। राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे व्यक्तिगत रूप से इस बिल को जल्द से जल्द कानून के रूप में तब्दील करने हेतु रूचि ले रहें हैं। उनकी सबसे पहली प्राथमिकताओं में यह बिल शामिल है। आइये इस बिल को निम्नलिखित बिंदुओं के द्वारा समझते हैं।

‘शक्ति बिल’ के उल्लेखनीय बिंदु

• ‘शक्ति बिल’ में अपराध के बेहद भयावह और घृणित होने की स्थिति में मृत्युदंड का प्रावधान है। इस तरह के अपराध में जाँच के लिए 15 कार्य दिवस का समय निश्चित किया गया है, विशेष स्थिति में इस समय को 7 दिवसों तक बढ़ाया जा सकता है। बेहद घृणित अपराध में सजा पाए इंसान को 21 दिनों के भीतर फांसी में लटकाने का प्रावधान है।

• शक्ति बिल का पूरा नाम “स्पेशल कोर्ट एंड मशीनरी फोर द इम्पलेमेंटेशन ऑफ शक्ति एक्ट 2020 (Special Courts and Machinery for the Implementation of Shakti Act 2020)’ है।

‘• शक्ति बिल’ आंध्र प्रदेश सरकार के ‘दिशा एक्ट’ से प्रेरित होकर बनाया गया है। ज्ञात हो हैदराबाद के चर्चित सामूहिक बलात्कार तथा हत्या वाले केस से संज्ञान लेते हुए , आंध्र सरकार ने राज्य में ‘दिशा एक्ट’ लागू किया है।

• अपराध की चार्टशीट दाखिल होने के बाद प्रत्येक दिन केस की सुनवाई होगी तथा 30 दिनों के भीतर सुनवाई पूरी करने का प्रावधान है। सजा सुनाये जाने के बाद 45 दिनों में केस की फाइल क्लोज करने का प्रावधान है , इससे पहले इस प्रक्रिया के लिए 6 माह की अवधि निश्चित थी।

• अपराधी सजा -ए मौत के साथ साथ पीड़िता को मुआवजे का भी प्रावधान है, ये मुआवजा 10 लाख तक हो सकता है जिसकी राशि पीड़िता की चिकित्सा तथा अन्य व्ययों में खर्च होगी।

• 16 साल से कम उम्र की महिला के साथ सामूहिक या एकल दुष्कर्म में अपराधी पाए जाने पर 12 साल तक की सजा का प्रावधान रखा गया है।

• राज्य के हर जिले में विशेष अदालत , विशेष पुलिस बल की तैनाती का प्रावधान है तथा पीड़िता तथा उसके आश्रितों की देखभाल के लिए विशेष समिति के गठन की सिफारिश भी ‘शक्ति बिल’ में की गयी है।

• एसिड अटैक मामले में अपराधी की सजा गैर जमानती होगी तथा इसमें अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है।

• ‘शक्ति बिल’ में भारतीय दंड संहिता की धारा 354 में सेक्शन ‘E’ को जोड़ा जाएगा, इसके अंतर्गत सोशल मीडिया, टेलीफोन या अन्य डिजिटल माध्यमों के द्वारा प्रताड़ना, आपत्तिजनक टिप्पणी और धमकी के मामलों में केस दर्ज किया जाएगा।

• ‘शक्ति बिल’ में सोशल मिडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, व्हाट्सप्प , इंस्टाग्राम या किसी भी अन्य संचार माध्यम से महिला के साथ किया गया दुर्व्यवहार या शोषण 2 साल की सजा के अंतगर्त आयेगा। इसके साथ इसमें 1 लाख तक जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है।

• पीड़िता की अपील पर यदि कोई सरकारी कर्मचारी जाँच में सहयोग नहीं करता है, तो उसे 6 माह की सजा तथा जुर्माना या दोनों दिये जा सकते हैं।

• ‘शक्ति बिल’ में “महिला और बाल अपराधियों की रजिस्ट्री” के निर्माण का सुझाव दिया गया है, जो एक अलग रजिस्ट्री है। यह रजिस्ट्री यौन अपराधियों की राष्ट्रीय रजिस्ट्री से जोड़ी जाएगी।

• ‘शक्ति बिल’ में आरोपियों को बदनाम करने के उद्देश्य से उनके ऊपर झूठे बलात्कार के मामले दर्ज करने वाले व्यक्तियों को भी दंडित करने का प्रावधान शामिल हैं।

शक्ति बिल’ या ‘दिशा एक्ट’ जैसे कानून क्यों आवश्यक है ?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, देश में विगत दशक में महिलाओं व बच्चो के प्रति घृणित अपराधों की संख्या में भारी इजाफा हो गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 की तुलना में 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 7.3% की वृद्धि हुई थी। 2013 में निर्भया मामले के बाद जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिशों के आधार पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों को कड़ा किया गया है। इसके बाद भी देश में महिलाओं के प्रति यौन अपराधों की संख्या में कोई कमी नहीं देखने को मिली है। हैदराबाद पीड़िता मामला या इसके जैसे न जाने कितने मामले आज राष्ट्रीय मीडिया की हेड लाइन बनते हैं। अपराधों की संख्या को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि, सजा पाये व्यक्ति या जो उस अपराध के साक्षी हैं उनके अंदर अपराध बोध की कमी है। हमारे वर्तमान कानून उन्हें उनके अपराध का सही दंड देने में असमर्थ हो रहे हैं या यौन अपराधों की सजा से समाज के लोगो के अंदर, सजा के सही भाव या मूल्य का बोध ही नहीं उत्पन्न हो पा रहा है। अब समाज में दुष्कर्म की सजा का भय ही नहीं रहा है, जो एक बहुत बड़ी वजह है समाज में बेहिसाब बढ़ते महिला यौन अपराधों की। हमारे देश को , समाज को शक्ति बिल’ या ‘दिशा एक्ट’ जैसे सख्त कानूनों की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता है और उतनी ही आवश्यकता है समाज में इनके प्रचार-प्रसार की भी, जिससे समाज में महिलाओं के प्रति घृणित यौन अपराधों के लिए सजगता जाग्रत हो सके।

भारत सरकार की पहल

‘पॉक्सो क़ानून के तहत दर्ज मामले और यौन उत्पीड़न के अन्य मामलों के निपटान के लिए सरकार ने कम से कम 1023 फास्ट-ट्रैक कोर्ट बनाने की अनुमति भारत सरकार ने 2019 में ही दे दी है , ख़ासतौर पर महिलाओं के लिए। देश में ऐसे एक लाख से ज़्यादा मामले लंबित हैं और 18 राज्यों ने कोर्ट बनाने पर सहमति जताई है. सरकार ने इसके लिए 767 करोड़ के ख़र्च की मंज़ूरी दी है जिसमें 474 करोड़ रुपये का ख़र्च केंद्र सरकार उठाएगी..इन्हें 2021 तक बनाने का लक्ष्य है”।

चलते चलते

भारत में महिलाओं तथा बच्चो के प्रति यौन अपराध की जो संस्कृति फल-फूल रही है, भारतीय लोगो की मानसिकता इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। कुछ लोग तर्क देते हैं कि समाज में पश्चिमी सभ्यता का बढ़ता प्रभाव , भारतीय फिल्मो में परोसी जा रही अश्लीलता , इंटरनेट का गलत इस्तेमाल आदि इसकी प्रमुख वजह है। किन्तु अगर मैं कहूं पश्चिमी सभ्यता में तो काफी अच्छी बातें भी है वो क्यों नहीं हम अपनाते हैं?, सिनेमा, समाज का आईने होता है , सिनेमा में वही दिखाया जाता है जो समाज में चल रहा होता है, फिर सिनेमा में तो अच्छी फिल्मे भी दिखायी जाती है। मैं भी कलाम, थ्री इडियट्स , तारे जमीन पर , स्वदेश जैसी अनेको फिल्मे इसकी उदाहरण हैं, फिर लोग इन फिल्मो से

प्रेरित क्यों नहीं होते हैं?, केवल अश्लील फिल्मो से ही कैसे प्रेरित हो जाते हैं?। आजकल इंटरनेट का इस्तेमाल जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है , फिर लोग इसका सही पहलू क्यों नहीं स्वीकार करते हैं?। इन सभी प्रश्नो का उत्तर है हमारी मानसिकता है , हमे जरूरत है सही, सटीक और व्यावहारिक शिक्षा की, केवल शिक्षा से ही समाज की मानसिकता को बदला जा सकता है। समाज के अंदर सकारात्मक पहलूओं को समझने की कला विकसित की जा सकती है। दोस्तों आपको हमारा ये लेख कैसा लगा हमें लिखकर कमेंट करे। यदि अच्छा लगा हो तो शेयर और लाइक अवश्य करें , धन्यवाद।