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रवींद्रनाथ टैगोर के कुछ अंजाने सत्य

Source: http://indianexpress.com (Illustration: Subrata Dhar)

भारतीय इतिहास में एक लेखक, चिंतक, साहित्यकार, संगीतकार, शिक्षक, विशेषज्ञ, चित्रकार, नाटकविद और नोबल पुरस्कार विजेता, पूर्व और पश्चिमी सभ्यता का सर्वश्रेष्ठ संगम का एकमात्र परिचय अगर कोई है तो वो बंगाल के श्रेष्ठ शिरोमणि श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर हैं। आधुनिक भारत के नव निर्माताओं में रवींद्रनाथ का नाम बहुत आदर और सम्मान से लिया जाता है। विश्व का हर वह व्यक्ति जिसे साहित्य और इतिहास में थोड़ी भी रुचि है वह इन प्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्व के जीवन परिचय से परिचित होने में अपना सम्मान महसूस करता है। फिर भी कुछ अंजाने सती, समय और इतिहास की गर्त में छिपे हैं जिन्हें आपको यहाँ बता रहे हैं:

  1. एशिया के पहले नागरिक के रूप में 1913 में साहित्य जगत का नोबेल पुरस्कार , इनकी कृति ‘गीतांजली’ के लिए दिया गया था।
  2. अपना नोबल पुरस्कार लेने के लिए टैगोर स्वयं नहीं गए थे बल्कि उनकी ओर से यह पुरस्कार ब्रिटिश राजदूत ने स्वीकार किया था।
  3. 1921 में एक नयी शिक्षा पद्धति के प्रचार और प्रसार के लिए ‘शांति निकेतन’ नाम की शैक्षणिक संस्था शुरू करी जिसमें गुरुकुल परंपरा का पालन करने हुए प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा का आदान प्रदान करने का काम आरंभ किया गया था। इसके लिए उन्होनें अपने नोबल पुरस्कार की सारी राशि का उपयोग किया था|
  4. भारत का राष्ट्रीय गान के रचनाकार के रूप में श्री टैगोर विश्वप्रसिद्ध हैं। लेकिन बहुत काम लोग जानते हैं की इन्होनें श्रीलंका और बांग्लादेश के राष्ट्रीय गान की रचना भी करी थी। टैगोर के गीत ‘आमार सोनार बांग्ला’ को बांग्लादेश के राष्ट्रीय गान का सम्मान दिया गया। 1930 में श्रीलंका के राष्ट्रीय गान की रचना भी इन्होनें अपने रचे हुए एक बंगाली गीत पर करी थी, जिसका सिंहली अनुवाद 1957 में श्रीलंका के राष्ट्रीय गान के रूप में घोषित किया गया था।
  5. टैगोर का भारतीय राष्ट्र पिता महात्मा गांधी से वैचारिक मतभेद होने पर भी दोनों का एक दूसरे के प्रति प्यार और सम्मान की भावना में कोई कमी नहीं थी। टैगोर ने ही सबसे पहले गांधी जी को ‘महात्मा’ की पदवी से सुशोभित किया था।
  6. वर्ष 1927 और 1937 में विश्व धर्म संसद में भाग लेकर उसे संबोधित करने का गौरव विवेकानन्द के बाद टैगोर को ही प्राप्त है।
  7. ब्रिटिश सरकार द्वारा टैगोर को नाइटहूड़ का खिताब दिया गया था लेकिन 1919 के जालियाँ वाला हत्याकांड के विरोध में उन्होने इस पुरस्कार को लौटा दिया था।
  8. रवीन्द्रनाथ टैगोर को पेरु सरकार की ओर से उनके देश में आने का निमंत्रण मिला जिसे उन्होनें सहर्ष स्वीकार किया। अपने मेक्सिको यात्रा के दौरान उन्हें हर उस देश की सरकार से जहां भी वो गए, 100,000 अमरीकी डॉलर उनके सम्मान में दिये गए।
  9. टैगोर ने पाँच महाद्वीपों और 30 देशों की यात्राओं में भारतीय सभ्यता का परचम लहराया।
  10. प्रथम गैर यूरोपियन निवासी के रूप में टैगोर को मिला नोबल पुरस्कार वर्ष 2004 में शांतिनिकेतन से चुरा लिया गया था। लेकिन स्वीडिश सरकार ने उनका सम्मान करते हुए इस पुरस्कार के दो प्रतिरूप भारत सरकार को 2012 में दे दिये।
  11. टैगोर उस समय के प्रसिद्ध वैज्ञानिक एल्बर्ट आइन्स्टाइन से भी कई बार मिले थे और उनकी विचार धारा से प्रभावित थे।