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लाई-हराओबा त्योहार: मणिपुरी मैतेई समुदाय का प्रकृति को समर्पित पर्व

मणिपुर भारत का वह राज्य है, जिसकी गिनती भारत की सात बहनों में होती है। उत्तर पूर्व का यह राज्य अपनी अनुपम छटा के लिए जाना जाता है। तभी तो देवताओं की रंगशाला के नाम से भी यह जाना गया है। मणिपुर में जो ‘मणि’ शब्द आता है, यह बिल्कुल इसी राज्य के अनुरूप ही है। मणिपुर न केवल अपने सदाबहार जंगलों के साथ पर्वतों, जलप्रपातों और झीलों के नैसर्गिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां लाई हराओबा जैसे कई ऐसे त्योहार भी प्रचलित हैं, जो प्रकृति का सम्मान करना भी सिखाते हैं। ऐसे में What is Lai Haraoba festival, इसी सवाल के जवाब में हम आपके लिए यह लेख लेकर आये हैं।

इस लेख में आपके लिए है:

एक नजर में मणिपुर

मणिपुर 21 जनवरी, 1972 को अस्तित्व में आया था। मणिपुर का इतिहास बड़ा ही गौरवपूर्ण है। यह अपनी समृद्ध विरासत के लिए तो जाना ही जाता है, साथ ही इसकी स्वर्णिम संस्कृति के लिए भी इसकी पहचान है। मुख्य रूप से तीन जाति समूह के लोग मणिपुर में निवास करते हैं, जिनमें मैतेई, कुकी चीन और नागा शामिल हैं। यहां जो मणिपुरी भाषा बोली जाती है, वास्तव में वह मैतेई के लिए प्रयुक्त होती है, जो कि इस राज्य की प्रमुख भाषा भी है। सबसे खास बात है कि मैतेई मएक के नाम से मणिपुरी भाषा की अपनी एक लिपि भी है।

मणिपुर में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदायों की भी मौजूदगी है, जिनमें मुख्य रूप से कचानगा, अनल, पाईते, सेमा, अंगामी, चिरु, कोईरंग, कोईराव, माओ, पौमई, पुनरूम, राल्ते, मरम, मरिंग, कोम, लम्कांग, खरम, ऐमोल, तांगखुल, थडोऊ, तराव, चोथे, गंगते, हमार, लुशोई, काबुई, मोनसंग, मायोन इत्यादि सम्मिलित हैंI

What is Lai Haraoba festival?

लाई-हराओबा की जब बात होती है तो सबसे पहले दिमाग में यही सवाल आता है कि लाई-हराओबा त्योहार आखिर है क्या और Who celebrates Lai Haraoba festival यानी कि लाई-हराओबा त्योहार को कौन मनाते हैं। तो आपको बता दें कि जिस तरह से हमारे लिए होली एक बड़ा ही रंग-बिरंगा त्योहार होता है, उसी तरह से लाई-हराओबा भी मणिपुर का एक बड़ा ही रंग-बिरंगा त्योहार है। साथ ही इसे राज्य का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार भी माना जाता है।

उमंग लाई-हराओबा के नाम से भी मणिपुर में मनाया जाने वाला यह त्योहार जाना जाता है। चूंकि इसे Manipuri Meitei Comminities के लोग मनाते हैं, इसलिए इसे एक पारंपरिक मैतेई त्योहार के रूप में भी जानते हैं। जिस ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की है, जिस ईश्वर ने इस पृथ्वी को बनाया है, उस पृथ्वी और उस पर निवास करने वाले जीवों से यह त्योहार संबंध रखता है।

लाई-हराओबा त्योहार से जुड़ी मान्यता

ऐसा बताया जाता है कि बहुत ही शुरुआत में एक सबसे बड़े देवता हुआ करते थे, जिनका नाम गुरु सिदबा था। वे जिस कमरे में रहते थे, वहां घोर अंधकार पसरा हुआ था। एक बार इस कमरे में बहुत तेज प्रकाश उत्पन्न हुआ। इंद्रधनुष के अलग-अलग रंगों ने उनके कमरे को जगमगा दिया। इस घटना ने उन्हें प्रेरणा दी कि वे सृष्टि का निर्माण करें। इस काम को अंजाम देने में अतिया गुरु ने भी सहयोग दिया। इस तरह से गुरु सिदबा ने अतिया गुरु को एक मानव का ढांचा प्रदान कर दिया।

सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया अब शुरू होनी थी। ऐसे में सबसे पहले गुरु सिदबा ने अपनी नाभि से मैल निकाला। फिर उन्होंने नौ पुरुषों का अपनी नाभि की दाईं तरफ से और सात महिलाओं का बाईं ओर से सृजन कर दिया। इन सभी पुरुषों और महिलाओं को उन्होंने अतिया गुरु की सेवा में समर्पित कर दिया। इन्हीं पुरुषों और महिलाओं की सहायता ने अतिया गुरु ने सृष्टि का निर्माण शुरू कर दियाI अतिया गुरु इसके प्रति गंभीर थे। फिर भी उनके जो दो पहले प्रयास थे, उन पर हरबा ने पानी फेर दिया था। गुरु सिदबा ने जब यह देखा तो उन्हें बड़ा क्रोध आया। इसका उन्होंने उपाय निकाला। अतिया गुरु के बचाव में अब उन्होंने बिजली की देवी को भेज दिया। इसके बाद मानव के ढांचे को मजबूत करना अतिया गुरु के लिए आसान हो गया। उन्होंने इसी ढांचे की मदद से फिर मानव जीवन को उपयुक्त बना दिया।

कैसे मनाया जाता है लाई-हराओबा त्योहार?

लाई-हराओबा त्योहार मनाने का मतलब यही है कि सृष्टि की प्रक्रिया का पर्व मनाना। लोक गीतों और नृत्यों का मूल स्रोत लाई-हराओबा को ही माना गया है। जितने भी प्रकार के मणिपुरी नृत्य मौजूद हैं और कई तरह के जो स्वदेशी खेल राज्य में खेले जाते हैं, लाई-हराओबा को इन सभी के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में इस त्योहार को मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई थी। उस दौरान इस त्योहार को मनाने के लिए खाद्य पदार्थों और पुष्प आदि अर्पित करके अनुष्ठान किए जाते थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया, इस त्योहार के साथ और भी कई तरह के अनुष्ठान और परंपराएं जुड़ती चली गईं। उमंग लाई के नाम से जो सिल्वन देवता जाने जाते हैं, लाई-हराओबा के दौरान इनकी पूजा होती है। पारंपरिक देवताओं के साथ पूर्वजों को भी इस त्योहार के दौरान पूजा जाता है।

त्योहार के मौके पर पुरुष और महिलाएं कई तरह के नृत्यों की प्रस्तुति देते हैं, जो वाकई देखने लायक होते हैं। लाई-हराओबा का त्योहार मई महीने में मनाया जाता है। इस दौरान लोग अपने स्थानीय पारंपरिक देवताओं के साथ पूर्वजों के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हैं। साथ ही वे उनके चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। इसलिए देवताओं की उत्सव धर्मिता के रूप में भी लाई-हराओबा की पहचान है।मोइरांग के शासक देव थंगजिंग के लाई हराओबा का बड़ा नाम रहा है।

लाई हराओबा का त्योहार मनाते वक्त नोंगपोक निमगथो के साथ सनमही, लेईमरेल, पखंगबा और करीब 364 उमंग लाई या जंगल के देवी-देवताओं की आराधना की जाती है। भगवान ने जो ब्रह्मांड के सृजन में अपना योगदान दिया है, उसी को याद करने के लिए यह त्योहार मनाया जाता है। इसके अलावा पेड़-पौधों और जानवरों के साथ इंसानों का विकास जिस तरह से हुआ है, उसे भी इस त्योहार में याद किया जाता है। मूर्तियों के सामने नृत्य करना इस त्योहार का एक प्रमुख अंग है। देवी-देवताओं से तो लोग इस दौरान आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते ही हैं, साथ में अपने पूर्वजों से भी वे आराधना करके आशीर्वाद मांगते हैं।

Manipuri Meitei Comminities से जुड़े युवाओं के साथ वृद्ध तक इस दौरान पारंपरिक नृत्य में भाग लेते हैं। साथ ही वे गीत भी गाते हैं। नाटक का प्रदर्शन भी इस दौरान होता है। थोइबी और खंबा के जीवन को इस नाटक में दिखाया जाता है। एक लोक कथा के नायिका और नायक के रूप में इनकी पहचान है। जब शाम हो जाता है, तो पालकी में देवता को घुमाने की भी परंपरा है।

लाई-हराओबा के प्रकार

लाई-हराओबा के चरण

और अंत में

अब कोई यदि आपसे पूछे कि What is Lai Haraoba festival, तो आप इसका जवाब आसानी से दे पाएंगे, क्योंकि इस लेख में आपने इसके बारे में विस्तार से पढ़ लिया है। वास्तव में प्रकृति और ईश्वर के प्रति आभार जताने वाला यह त्योहार हम सभी को प्रकृति का सम्मान करने की प्रेरणा देता है।