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भारत में न्याय प्रणाली- संरचना, कार्य और इससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

गार्नर के अनुसार ‘न्याय विभाग के अभाव में एक सभ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।‘ किसी भी देश की शासन-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में वहां की न्यायपालिका का सबसे अहम योगदान होता है। भारत में न्याय प्रणाली की शुरुआत अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान की थी। भारतीय न्यायपालिका की प्रणाली आम कानून यानी कि कॉमन लॉ पर आधारित है। जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णयों से कानून का विकास करते हैं। भारत की न्यायपालिका का मूल काम हमारे संविधान में लिखे कानून का पालन करना और करवाना है। इसके साथ ही कानून का पालन न करने वालों को दंडित करने का अधिकार भी न्यायपालिका को प्राप्त है।

भारतीय न्यायपालिका की संरचना

भारत की न्यायपालिका अत्यंत सुगठित है। ऊपर से लेकर नीचे तक के सभी न्यायलाय एक दूसरे से पूर्ण रुप से जुड़े हुए हैं। तो आइए जानते और समझते हैं भारतीय न्यायपालिका की विभिन्न स्तरीय संरचना को।

भारत में न्यायपालिका के अंतर्गत यूं तो कई स्तर के न्यायालय आते हैं, लेकिन मुख्य रुप से इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है।

  1. सुप्रीम कोर्ट या सर्वोच्च न्यायलय
  2. हाई कोर्ट या उच्च न्यायलय
  3. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट या जिला न्यायलय

सुप्रीम कोर्ट

हाईकोर्ट (उच्च न्यायलय)

डिस्ट्रिक्ट कोर्ट (जिला न्यायलय)

अधीनस्थ अदालतें (ग्राम पंचायत, ग्राम कचहरी इत्यादि)

निष्कर्ष

भारत में न्यायपालिका को सर्वोपरि माना जाता है। ये लोकतंत्र के चार प्रमुख स्तंभों में से एक है। प्राचीन काल से ही भारत के राज व्यवस्था में न्यायपालिका का अहम योगदान रहा है। भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना संविधान द्वारा की गयी है। जिसका कार्य अपने समक्ष आने वाले वादों का निष्पक्षता पूर्वक निपटारा करना है। इस लेख में भारत की न्यायपालिका की संरचना से जुड़े हर पहलू के बारे में चर्चा की गई है। आपको हमारा ये लेख कैसा लगा नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट कर के जरूर बताएं।