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भारत सरकार के पेड़ बचाओ प्रयास



कालीदास रचित अभिज्ञान शांकुंतलम नाटक में प्रकृति को वन देवी के रूप में दिखाया गया है जो शकुंतला की विदाई के अवसर पर माँ के कर्तव्य निभाती हैं। एक माँ की भांति वो अपनी पुत्री को पेड़ों और लताओं की मदद से विभिन्न उपहार देती हैं। इसी प्रकार शकुंतला भी प्रत्येक पेड़ और लता से एक मित्र और सखी की भांति विदा लेती है। हो सकता है कि आपको यह मात्र कल्पना लगती हो, लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि पेड़, मानव जीवन में प्रकृति की अनमोल भेंट समान हैं। इस संदर्भ में कहीं पढ़ी एक कविता याद आ गई जिसमें पेड़ किसी किसान के लिए हल है तो मछुआरे की नाव है, पंछियों का आसरा है तो ग्रामीण की रसोई का सहारा है।

लेकिन मानव ने अपने इस चिरमित्र के साथ क्या किया? बेतहाशा कटते पेड़ों के कारण आज पृथ्वी पर भयंकर पर्यावरण संकट उत्पन्न हो गया है। बेमौसमी बारिश, अंतहीन सूखा, बढ़ते रेगिस्तान, तेज़ गति से आने वाले तूफान मानों प्रकृति का क्रोध ही प्रकट कर रहे हैं। इस क्रोध को शांत करने के लिए भारत सरकार ने अपने दायित्व को समझते हुए पेड़ बचाने के लिए कुछ प्रयास किए हैं, जो इस प्रकार हैं:

 1. राष्ट्रिय वन नीति :

ब्रिटिश सरकार द्वारा सबसे पहले 1894 में पेड़ों को बचाने के लिए एक वन नीति का निर्माण किया था। इस नीति के अंतर्गत पेड़ों को बचाने और उन्हें संरक्षित करने के लिए विभिन्न उपाय बताए गए थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार द्वारा इस नीति में समय-समय पर संशोधन करके इसे और कारगर बनाने के प्रयास किए जाते रहे हैं। वर्तमान समय में राष्ट्रिय वन नीति जिसकी देखरेख भारत सरकार के वानिकी विभाग द्वारा की जाती है, के अंतर्गत विश्व स्तर पर वृक्ष संरक्षण संबंधी कार्यक्रमों की जानकारी के साथ ही उनकी समीक्षा करने का काम भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त इस नीति के 1988 के अंतर्गत ‘राष्ट्रिय वानिकी कार्यवाही कार्यक्रम’ का संचालन भी किया जाता है जिसमें अगले 20 वर्षों के लिए वानिकी योजना को बनाने का काम किया जाता है।

2. संरक्षित आरक्षित वन:

देश के कुछ भागों में वन प्रदेश को संरक्षित व आरक्षित घोषित किया गया है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से भारत के पूर्वी और पश्चमी घाट के साथ ही हिमालय क्षेत्र में घोषित किए गए हैं। इन क्षेत्रों में सरकार की ओर से वृक्षों की कटान पर रोक के अलावा लुप्तप्राय वन श्रंखला के संरक्षण व पुनः उत्पादन पर ज़ोर दिया गया है। इसके साथ है इन क्षेत्रों में राष्ट्रीय उध्यान व सेंच्युरी के माध्यम से वनों और वन संपदा को सुरक्षित करने पर बल दिया जा रहा है। सरकार की ओर से घोषित संरक्षित क्षेत्र में व्यावसायिक व व्यापारिक दृष्टि से वनों की कटाई पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया है। इसके अतिरिक्त 25 अक्तूबर 1980 को एक वन संरक्षण अधिनियम का भी निर्माण किया गया है। इसके अंतर्गत किए गए मुख्य प्रावधान के अनुसार वनों की कटाई का उद्देश्य यही गैर-वानिकी है तो इसके लिए केन्द्रीय सरकार की अनुमति लेनी अनिवार्य होगी।

इस अधिनियम का मुख्य उद्देशय व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए की जाने वाली अंधाधुंध वनों की कटाई को नियंत्रित करते हुए वन संपदा को संरक्षण प्रदान करना है। वन संरक्षण अधिनियम को और कारगर बनाने के लिए इसमें समय-समय पर संशोधन भी किए जाते रहे हैं। इस संबंध में नवीनतम संशोधन 10 जनवरी 2003 को किया गया है जिसके अनुसार पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा कुछ नए नियमों का निर्माण भी किया गया है।

इसके अतिरिक्त जन सहयोग से भारत सरकार द्वारा पेड़ों को बचाने के लिए निम्न प्रयास भी किए जा रहे हैं:

1. जंगलों के निकट रहने वाली जनजातियों व समाज के पिछड़े वर्ग से संबन्धित वर्ग के अधिकारों और जीवन जीने की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रयास किए जा रहे हैं। जिससे उनके जीवनयापन के लिए जंगलों पर पूरी निर्भरता को कम करके उन्हें वैकल्पिक साधन प्रदान किए जाएँ।

2. “विद्यालय नर्सरी योजना” शुरू की गई जिसके अंतर्गत विध्यालयों के छात्रों को उनके निकट स्थित नर्सरी में कुछ पौधे लगाकर उसके पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इससे छात्रों में कम उम्र से प्रकृति के साथ लगाव और ज़िम्मेदारी की भावना जागृत हो जाती है। इस योजना के माध्यम से छात्र खेती योग्य भूमि, मिट्टी, बीज और संबंधी बातों और पर्यावरण की जानकारी प्राप्त करके उसका समय पर सदुपयोग कर सकते हैं।

3. “नगर वन उध्यान योजना- एक कदम हरियाली की ओर” के अंतर्गत हर महनगर या प्रथम दर्जे के शहर के अंतर्गत ‘शहरी जंगल’ का निर्माण व विकास करना। इसके अंतर्गत स्वच्छ और स्वस्थ वन पर्यावरण का विकास करना मुख्य उद्देश्य है। इस योजना के माध्यम से लगभग 200 जंगलों के निर्माण का लक्षय रखा गया है।

इसके अतिरिक्त यह कहा जा सकता है कि बिना जन सहयोग के वृक्ष संरक्षण के कोई भी प्रयास प्रभावकारी सिद्ध नहीं हो सकते हैं। इसलिए समाज में पेड़ों के महत्व और उनके संरक्षण के प्रति जागरूकता का होना नितांत आवशयक है।