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होली: प्रचलित कथाएं, इतिहास और महत्व



‘रंगों का त्योहार’ होली हर साल फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस साल होली का त्योहार 21 मार्च के दिन पूरे देशभर में मनाया जाएगा। होली, सारे गिले- शिकवे भूल कर एक- दूसरे से मिलने और खुशियां बांटने का त्योहार है। बुराई पर अच्छी की जीत का प्रतीक लिए होली का त्योहार मनाये जाने के पीछे बहुत सी कथाएं भी प्रचलित है और यही वजह है कि भारत में अलग-अलग जगहों में होली का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं कुछ प्रमुख स्थानों में मनाई जाने वाली होली के महत्व और उससे जुड़ी कथाओं के बारे में। 

मथुरा और वृंदावन की होली

मथुरा और वृंदावन की होली पूरे विश्वभर में काफी प्रचलित है। यहां होली का त्योहार पूरे एक हफ्ते तक मनाया जाता है। वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में महा होली उत्सव मनाया जाता है और  मथुरा के ब्रज में गुलाल कुंड में बेहतरीन रूप से होली मनाया जाता है। देशभर से लोग मथुरा और वृंदावन की होली देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म स्थल मथुरा- वृंदावन की महान भूमि में लोग मजाक-उल्लास की बहुत सारी गतिविधियों के साथ होली का जश्न मनाते हैं। माना जाता है कि होली का त्योहार राधा और कृष्ण के समय से शुरू किया गया था।

बरसाना की होली

मथुरा के पास बरसाना वो जगह है जहां राधा रानी का जन्म हुआ था। बरसाना की लठमार होली देशभर में प्रसिद्ध है। बरसाना में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी पर नंदगांव के लोग होली खेलने के लिए आते है। लठमार होली डंडो और ढाल से खेली जाती है, जिसमें महिलाएं पुरुषों को डंडे से मारती हैं और पुरुष स्त्रियों के इस लठ के वार से ढाल लगाकर बचने की कोशिश करते हैं। बरसाना की होली के पीछे ऐसी मान्यता है कि पुराने काल में श्रीकृष्णा होली के समय बरसाना आए थे। यहां कृष्ण ने राधा और उनकी सहेलियों को छेड़ा था। उसके बाद राधा अपनी सखियों के साथ लाठी लेकर कृष्ण के पीछे दोड़ने लगीं। बस तभी से बरसाने में लठमार होली शुरू हुई थी।

भारत में बज्र की होली का काफी महत्व है क्योंकि बज्र की होली खास मस्ती भरी होती है और इसे भगवान राधा- कृष्ण के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है।

होलिका दहन का इतिहास

होली का पर्व मनाए जाने के पीछे बहुत सी कहानियां जुड़ी हुई है। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। इसी वजह से होली के एक दिन पहले रात में बुराई का अंत करते हुए होलिका दहन किया जाता है और सुबह धूमधाम से होली मनाई जाती है।

होली का महत्व

होली का त्योहार अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक मान्यताओं की वजह से बहुत प्राचीन समय से मनाया जा रहा है। इन दिन लोग घर पर साफ- सफाई, धुलाई कर गुझिया, मिठाईयां, मठ्ठी, मालपुआ, चिप्स, दहीबड़े आदि  बहुत सारी चीजें बनाते हैं। रंगों और गुलाल के साथ इस दिन से फाग और धमार का गाना भी शुरू हो जाता है। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है। नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते हैं। कांजी, भांग और ठंडाई इस पर्व के विशेष पेय होते हैं।

निष्कर्ष

होली का त्योहार बनाये जाने के पीछे हर क्षेत्र और इलाके के लोगों का अपना पौराणिक महत्व है, जिसमें सांस्कृतिक, धार्मिक और जैविक महत्व शामिल है। होली के त्योहार को मनाने का एक अलग ही स्वास्थ्य लाभ भी है। इससे लोगों की चिंता दूर होती है और तंदरुस्ती आती है।

होली से जुड़ा हमारा ये लेख आपको कैसा लगा नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताएं। हमारी पूरी टीम की ओर से आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं ।