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पंचायती राज का इतिहास

ग्राम स्वराज अथवा पंचायती राज जिसकी वकालत महात्मा गांधी ने भारत की राजनीतिक व्यवस्था की नींव के रूप में की थी 1992 में संविधान संशोधन के द्वारा अस्तित्व्व में आया। इसके अनुसार सरकार का विकेन्द्रीकृत रूप लोगों के सामने लाया गया जिसमें कहा गया कि प्रत्येक गांव अपने स्वयं के मामलों के लिए जिम्मेदार होगा।

भारत में पंचायती राज के अंश 1992 से कहीं पहले से पाए जाते हैं। प्राचीन, मध्य तथा वर्तमान समय से पंचायती राज किसी न किसी रूप में अपनी छाप छोड़ता आया है। अभी भारतीय संविधान में संशोधन के द्वारा पंचायती राज अधिनियम 1993 को भी क्रियान्वित किया है जिस से आम ग्रामीण निवासियों की लोकतंत्र में पहुंच तथा भागीदारी बनी रहे अवं वह किसी भी रूप से अपने अधिकारों से वंचित न रहें।

पंचायती राज की समय के अनुसार क्रमागत उन्नति कैसे हुई वो निम्नलिखित अनुसार है:

पूर्व ब्रिटिश काल में पंचायती राज-
गावों में स्वराज्य समुदाय कृषि अर्थव्यवस्थाओं द्वारा चलते आ रहें हैं तथा लगभग 200 B.C. से ऋग्वेद में इसका उल्लेख किया गया है। वैदिक काल में गाँव प्रशासन की बुनियादी इकाई थी। इसमें समिति जो कि वैदिक लोक विधानसभा थी कुछ मामलो में राजा का चुनाव कर सकती थी और सभा न्यायिक कार्यो में अपना योगदान देती थी।

ब्रिटिश काल में पंचायती राज-
भारत में ब्रिटिश राज के उद्भव के साथ स्थानीय स्वशासन एक प्रतिनिधि के रूप में सामने आया। भारत के तत्कालीन वायसराय (1872 करने के लिए 1869) लार्ड मायो को प्रशासनिक दक्षता लाने के लिए शक्तियों का विकेन्द्रीकरण की ज़रूरत महसूस हुई तो वर्ष 1870 में शहरी नगर पालिकाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों की अवधारणा शुरू हुई।

1870 के बंगाल चौकीदार अधिनियम में पंचायती राज-
बंगाल में पारंपरिक गांव पंचायती प्रणाली की शुरुयात 1870 के बंगाल चौकीदार अधिनियम में हुई। इस चौकीदार अधिनियम ने जिला मजिस्ट्रेट को गांवों में मनोनीत सदस्यों की पंचायत स्थापित करने के लिए सशक्त किया।

रिपन रेसोलुशन (1882) में पंचायती राज-
स्थानीय सरकारों के विकास में 18 मई 1882 एक अहम दिन साबित हुआ। इसने बहुमत में निर्वाचित गैर-सरकारी सदस्यों एक स्थानीय बोर्ड प्रदान किया जिसकी अध्यक्षता एक गैर सरकारी अध्यक्ष को सौंपी गयी। इसे भारत में स्थानीय लोकतंत्र की मैग्ना कार्टा माना जाता है।

मोंटेगू-चेम्सफोर्ड 1919 के सुधारों के दौरान पंचायती राज-
इसके अनुसार जितनी हो सके स्थानीय निकायों को ज्यादा से ज्यादा स्वतंत्रता मिलनी चाहिए तथा इसके बाद 1925 तक आठ प्रांतो ने ग्राम पंचायत एक्ट पारित कर दिया।

भारत सरकार अधिनियम (1935) में पंचायती राज-
यह ब्रिटिश काल में पंचायतों के विकास में एक और महत्वपूर्ण मंच के रूप में माना जाता है। हालांकि ब्रिटिश सरकार गांव स्वायत्तता के हित में नहीं थी, लेकिन वो भारत में अपने शासन जारी रखने के लिए ऐसा करने के लिए मजबूर थी तथा इसके अलावा वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी इसका अस्तित्व में होना जरूरी था।

स्वतंत्र भारत में पंचायती राज-
पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने का कार्य आजादी के बाद भारत सरकार पर आ गया। यह स्पष्ट था की लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए ग्राम पंचायतो को मज़बूत करना आवश्यक था क्योंकि भारत एक गाँवों का देश था। ग्रामीण भारत की समस्या से निपटने का पहला प्रयास 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम और 1953 में राष्ट्रीय विस्तार सेवा के दौरान किआ गया।

बलवंतराय मेहता समिति के अनुसार पंचायती राज –
1957 में स्थापित की गयी ये समिति स्वतंत्र भारत में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की समस्याओं पर गौर करने के लिए पहली समिति थी। लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण और ग्रामीण पुनर्निर्माण की दिशा में इसने काफी काम किया तथा 1 अप्रैल 1958 को इसके काम प्रभाव में आये।

अशोक मेहता समिति (1977) के अनुसार पंचायती राज –
अशोक मेहता की अध्यक्षता में 1977 में बनाई गयी इस समिति को पंचायती राज संस्थाओं के खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार कारणों की जांच करने का कार्य सौंपा गया और इसकी रिपोर्ट में उल्लेखनीय बात रही की इसने नियमित रूप से चुनाव की सिफारिश की तथा राजनीतिक दलों की खुली भागीदारी की बात की। इसने पंचायती राज को संवैधानिक संरक्षण देने की तथा सभी स्तरों पर सत्ता के विकेन्द्रीकरण की सिफारिश की।

73 वें और 74 वें सविंधान संशोधन के बाद पंचायती राज –
स्थानीय सरकारों को 73 वें और 74 वें सविंधान संशोधन के बाद एक प्रोत्साहन मिला। 73वां संशोधन ग्रामीण स्थानीय सरकारों के बारे में है तथा 74 वें संशोधन में शहरी स्थानीय सरकारों से संबंधित प्रावधानों को बनाया है।ये संशोधन 1993 में अस्तित्व में आये।

वर्तमान परिदृश्य में पंचायती राज –
वर्तमान में सभी स्तरों पर लगभग 3 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से १/२ भाग महिलाओं का है। यह सदस्य 2.4 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों , और 500 से अधिक जिला पंचायतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहां गांव स्तर की लोकतांत्रिक सरंचनाएं इसके विकास के लिए कार्य कर रही हैं।