“इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से,
अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूँ तो इंक़लाब लिखा जाता है।”
भगत सिंह का जन्म
भगत सिंह का जन्म २७ सितंबर १९०७ को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था ।
भगत सिंह का बचपन आम बच्चों की तरह नहीं था
पांच वर्ष की बाल अवस्था में ही भगतसिंह के खेल अनोखे होते थे। वह अपने साथियों को दो टोलियों में बांट देते, और वे एक-दूसरे पर आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास किया करते थे। Bhagat Singh के कार्यों में वीर, धीर और निर्भीक होने का आभास मिलता था ।
शिक्षा
भगत सिंह ने डी.ए.वी. स्कूल से नौवीं की परीक्षा पास की थी । भगत सिंह १४ वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में हिस्सा लेने लगे थे। उसके बाद देश की आजादी के संघर्ष में ऐसे रमें कि पूरा जीवन ही देश को समर्पित कर दिया ।
भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे
उनकी मुख्य कृतियां हैं, ‘एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू), भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (संपादक: चमन लाल) ।
‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ यह आलेख उन्होंने जेल में रहते हुए लिखा, जो लाहौर से प्रकाशित समाचारपत्र “द पीपल” में २७ सितम्बर १९३१ के अंक में प्रकाशित हुआ था । भगतसिंह ने इस आलेख में ईश्वर के बारे में अनेक तर्क करते हुए, सामाजिक परिस्थितियों का भी विश्लेषण किया था ।
Bhagat Singh का जीवन देश के नाम रहा
- शहीद भगतसिंह जी ने भारत देश की स्वतंत्रता के जिस तरीके और साहस के साथ पावरफुल ब्रिटिश सरकार का सामना किया, वह आज के व्यक्तियों के लिए एक महान आदर्श हैं।
- १९१६ में लाहौर के डीएवी विद्यालय में पढ़ते समय भगत सिंह, लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस, के संपर्क में आए।
- १९१९ में जलियावाला बाग हत्याकांड, और १९२१ ननकान साहिब में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों की हत्या, ने उनके जीवन में एक मजबूत देशभक्ति दृष्टिकोण का आकार दिया ।
- १३ अप्रैल १९१९ को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। इसके बाद ही भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया ।
- १९२१ में, भगत सिंह ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन में भागीदारी की ।
- मार्च १९२५ में, भगत सिंह ने यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रेरित होकर, नौजवान भारत सभा का निर्माण किया। पुलिस ने १९२६, लाहौर के बम धमाके मामले में उन्हें जेल में डाल दिया। उन्हें ५ महीने के बाद ६०००० रुपए के जुर्माने पर छोड़ दिया गया ।
- ३० अक्टूबर १९२८ को लाला लाजपत राय ने सभी पार्टियों के साथ मिलकर लाहौर रेलवे स्टेशन की और मोर्चा निकाला । यह मोर्चा साइमन कमीशन के विरोध में था ।
- ८ अप्रैल १९२९ को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा में बम विस्फोट किया और इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया ।
उन्होंने घटनास्थल पर जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी । जेल में उन्होंने अधिकारियों द्वारा साथी राजनैतिक कैदियों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की। 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को विशेष न्यायलय द्वारा मौत की सजा सुनाई गई । भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव, और कई अपीलों के बावजूद, भगत सिंह और उनके साथियों को २३ मार्च १९३१ को प्रातःकाल फांसी दे दी गई ।
“राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।”
“मैं खुशी से फांसी पर चढ़ूंगा और दुनिया को दिखाऊंगा कि कैसे क्रांतिकारी देशभक्ति के लिए खुद को बलिदान दे सकते हैं।” – भगत सिंह