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अफगानी ताकतों ने कुछ ऐसे किया इस देश में राज

बात जब भारत में अफगानी ताकतों की होती है, तो दिल्ली सल्तनत का नाम सबसे पहले लिया जाता है, क्योंकि यहां के पहले शासक भी अफगानी हुए और अंतिम शासक भी अफगानी ही थे। ये लोदी वंश से नाता रखते थे। लोदी राजवंश पूरी तरह से अफगानी मूल का ही था, जिसने दिल्ली पर 1451 ई. से 1526 ई. तक शासन किया। मुल्तान व पेशावर के साथ पश्चिम में गजनी के सुलेमान पर्वत के इलाके में इन शासकों के कबीलों का विस्तार था। एक अफगान को सबसे पहले दौलताबाद का सूबेदार सबसे पहले मोहम्मद तुगलक के शासन काल में नियुक्त किया गया था। यहां से धीरे-धीरे इनकी राजनीतिक ताकत में इजाफा होता चला गया। दिल्ली की गद्दी हासिल करने वाला पहला अफगान शासक दौलतखान बना था। एक नजर लोदी वंश के शासकों पर डाल लेते हैंः

लोदी वंश का संस्थापक बहलोल लोदी (1451 ई. से 1489 ई. तक)

सबसे सफल शासक सिकंदर लोदी (1489 ई. से 1517 ई. तक)

लोदी वंश का अंतिम शासक इब्राहिम लोदी (1517 ई. से 1526 ई. तक)

यूं हो गया लोदी साम्राज्य का पतन

चलते-चलते

भारत में अफगानी शासकों में मुख्य रूप से लोदी वंश के शासक ही शामिल रहे, जिन्होंने वीरता का परिचय तो खूब दिया, मगर अपनी गलतियों से और खासकर अंतिम शासक इब्राहिम लोदी की गलतियों की वजह से उन्होंने अपने साम्राज्य के पतन और मुगल साम्राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर दिया। सूरी राजवंश के शासक भी अफगानी मूल के ही रहे, जिनका भी योगदान भारत में अहम रहा। खासकर शेरशाह सूरी बेहद लोकप्रिय रहे। राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्रों में सूरी साम्राज्य के तहत चतुर्मुखी विकास हुआ। हालांकि, सिकंदर लोदी जैसे अफगान शासकों ने जिस तरह से धार्मिक असिहष्णुता दिखाई, उसने अफगानी शासकों के प्रति इस देश के लोगों के दिलों में कटुता के बीज जरूर बो दिये। अफगानी शासकों का यदि पतन नहीं हुआ होता और मुगल साम्राज्य की स्थापना इस देश में नहीं हुई होती तो क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इस देश का स्वरुप इसके वर्तमान स्वरुप से किस तरह से अलग होता?