दिलीप कुमार – हिंदी सिनेमा के महानतम अभिनेता

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1905
Dilip Kumar

सुहाना सफर और ये मौसम हसीं, हमें डर है हम खो न जाये कहीं ” हमें इस गीत की यादों के सहारे छोड़कर फिल्मी दुनिया का ट्रेजडी किंग न जाने किस सफर में चला गया। ऐसे ही न जाने कितने नग्मे तथा बेहतरीन अदाकारी से हमारे दिलों को जीतने वाला सैलुलॉयड का सितारा दिलीप कुमार अब हमारे बीच मे नही रहा। बॉलीवुड इंडस्ट्री ने 7 जुलाई 2021 को एक ऐसी शख्सियत को खो दिया है, जिसके अभिनय से प्रेरणा लेकर बॉलीवुड की कई पीढ़ियां जवान हुई, न जाने कितने कलाकारों का जीवन दिलीप कुमार के साथ से या उनसे कुछ सीख कर धन्य हो गया। दिलीप कुमार साहब न केवल भारत मे बल्कि पड़ोसी देश पाकिस्तान मे भी बहुत मशहूर थे। पाकिस्तान सरकार ने दिलीप कुमार के पेशावर में पुश्तैनी घर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया है। आज दिलीप कुमार साहब हमारे बीच में नही रहे, उन्होंने 98 वर्ष की उम्र मे दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके पार्थिव शरीर को पूरे राजकीय सम्मान के साथ जुहू कब्रिस्तान मे दफ़न किया गया है। आज के इस लेख मे हम दिलीप कुमार साहब के जीवन से जुड़ी उन सभी बातों को आपके साथ साझा करेंगे जो उनको एक महान फ़िल्मी अभिनेता बनाती हैं।

इस लेख मे हम लाये हैं –

  • व्यक्तिगत परिचय
  • दिलीप कुमार का फ़िल्मी सफर
  • दिलीप कुमार साहब के अमर शब्द सन्देश
  • दिलीप साहब की ऑटोबायोग्राफी
  • अपने आप में फिल्म संस्था थे दिलीप कुमार
  • पकिस्तान से भी मिला भरपूर प्यार
  • संकटकालीन परिस्थितियों में भी सदा रहे आगे
  • दिलीप कुमार की सदाबहार फिल्में
  • सम्मान एवं पुरस्कार
  • दिलीप साहब से जुड़ी कुछ बातें

व्यक्तिगत परिचय –

  • दिलीप कुमार का वास्तविक नाम मोहम्मद युसूफ खान था। उनका जन्म 11 दिसंबर 1922 पेशावर , पाकिस्तान मे हुआ था।
  • दिलीप कुमार के पिता का नाम लाला गुलाम सरवर था।वे  विभाजन के बाद  भारत आकर बस गए थे। उनके पिता फलों के बड़े कारोबारी थे।
  • दिलीप कुमार ने  मुंबई के अंजुम -ए -इस्लाम , विल्सन और खालसा कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की थी।
  • दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर खान का भी फ़िल्मी दुनिया से नाता रहा था। उनकी बहन अख्तर का विवाह मशहूर निर्माता-निर्देशक के आसिफ (K. Asif) के साथ हुआ था।
  • दिलीप कुमार की दो शादियां  थी। उनकी पहली पत्नी का नाम सायरा बानो है तथा दूसरी पत्नी का नाम अस्मा साहिबी है।

दिलीप कुमार का फ़िल्मी सफर

  • जिस समय दिलीप कुमार ने फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख किया था, उस समय भारतीय सिनेमा मे अशोक कुमार, कुंदन लाल सहगल, पृथ्वी  राज कपूर, देविका रानी, विमल रॉय आदि का बोलबाला था।
  • 1940 के दशक का वह दौर भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलनों का दौर था। ऐसे समय मे सिनेमा के द्वारा लोगो के दिलो मे जगह बनाना बहुत ही मुश्किलों से भरा फैसला था।
  • दिलीप कुमार की पहली फिल्म ज्वार-भाटा साल 1944 मे आयी  थी ,जिसे अमिया चक्रवर्ती ने निर्देशित की थी। उनकी आख़री फिल्म ‘किला’ साल 1998 मे प्रदर्शित हुई थी।
  • दिलीप साहब की पहली हिट फिल्म जुगनू थी। उन्होंने कुल मिलकर 60 से अधिक फिल्मो मे काम किया था।
  • फिल्म निर्देशक विमल रॉय के साथ दिलीप कुमार साहब की गजब की केमिस्ट्री थी। इन दोनों ने  देवदास और मधुमिता मे एक साथ काम किया था।
  • साल 1955 मे आयी देवदास ने  दिलीप कुमार को ट्रेजेडी किंग का टैग प्रदान किया। साल 1960 मे आयी मुग़ले-ए -आजम मे दिलीप कुमार ने शहजादा सलीम के किरदार को जीवंत कर दिया था।
  • साठ के दशक मे हिंदी फिल्मो मे दिलीप कुमार , राज कपूर और देवानंद का नाम बहुत ही चर्चित एवं सफलता की गारंटी माना जाता था।
  • दिलीप कुमार के करियर के उत्तरार्द्ध मे फ़िल्मी परदे पर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र , शशि कपूर आदि अभिनेताओं का पदार्पण हो चुका हुआ था।
  • दिलीप कुमार ने निर्माता -निर्देशक सुभास घई के साथ तीन फिल्मो मे काम किया ये फिल्मे थी , विधाता(1982 ), कर्मा(1986 ) और सौदागर (1991) ये तीनो ही फिल्मे हिट रही थी।
  • सौदागर फिल्म मे दिलीप कुमार और राजकुमार की केमेस्ट्री को काफी पसंद किया गया था। फिल्म का गीत “इमली का बूटा बेरी का पेड़” काफी मशहूर हुआ था।
  • सदी के महानायक अमिताभ बच्चन एवं दिलीप कुमार ने केवल एक फिल्म शक्ति मे साथ काम किया था। इस फिल्म को रमेश सिप्पी ने डायरेक्ट किया था।

दिलीप कुमार साहब के अमर शब्द सन्देश-

  • कोई भी कलाकार किरदार से बड़ा नही हो सकता है। जब तक कलाकार के पास किरदार से बड़ा होने का अहसास है, तब तक वो कभी भी उस किरदार को पूरी शिद्दत से नही निभा सकता है।”
  • बतौर सुभास घई- दिलीप साहब जब भी मिला करते थे , तो हमेशा यह बात कहा करते थे “जिंदगी जीना है, तो गरिमापूर्ण तरीके से जियो”

दिलीप कुमार की ऑटोबायोग्राफी

अपने आप मे फिल्म संस्था थे दिलीप कुमार-

  • दिलीप कुमार साहब अपने आप मे अदाकारी की किताब थे , इस बात को स्वीकारते हुए, मशहूर डायरेक्टर सुभास घई बताते हैं कि किसी दृश्य के फिल्मांकन के समय दिलीप साहब शूटिंग को बीच मे रोककर कैसे घंटो डायरेक्टर और अन्य लोगो को सीन की बारीकियां समझाने लगते थे।
  • यदि कभी Dilip Kumar को कोई सीन ओके नही लग रहा है तो वो उस सीन को फिर से रिटेक किया करते थे , चाहे डायरेक्टर ने उस सीन को ओके कर दिया हो। दिलीप साहब किरदार एवं सीन की आवश्यकता को खुद मे समाहित कर लेते थे। उनका कथन था कि कोई भी कलाकार किरदार से बड़ा नही हो सकता है।
  • दिलीप कुमार साहब के अभिनय से प्रेरणा लेकर अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर तथा शाहरुख़ खान जैसे सितारे बॉलीवुड मे अपनी चमक बिखेर चुके हैं।
  • फिल्म प्रेमरोग की शूटिंग के दौरान एक्टर-डायरेक्टर राज कपूर साहब अपने बेटे और फिल्म के हीरो ऋषि कपूर से दिलीप कुमार स्टाइल मे अभिनय करने की मांग करते पाए गए थे।
  • ये दिलीप साहब की अदायगी और व्यवहार कुशलता ही थी कि अन्य लोग और कलाकार उनसे जुड़ते चले जाते थे। दिलीप कुमार साहब कभी भी किसी कलाकार एवं अपने काम के प्रति लापरवाह नही रहे।
  • दिलीप  कुमार साहब सभी लोगो से बड़े अदब और सादगी के साथ मिला करते थे। वे हमेशा कहा करते थे ‘जिंदगी जीना है, तो गरिमापूर्ण तरीके से जियो”।

पकिस्तान से भी मिला भरपूर प्यार

  • दिलीप कुमार साहब के अभिनय ने देश की सरहदों को पार करके पाकिस्तान मे भी लोकप्रियता हासिल की थी।
  • पाकिस्तान सरकार ने दिलीप कुमार साहब को साल 1997 मे  पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान –ए-इम्तियाज से नवाज़ा था।
  • पाकिस्तान से उनसे मिलने को कई शायरा एवं गरिमामयी शख्सियतें आते रहती थी। पाकिस्तान सरकार ने उनके पेशावर मे स्थित पुश्तैनी मकान को राष्ट्रीय धरोहर के रूप मे संरक्षित कर म्यूजियम बनाने की घोषणा की है।

संकटकालीन परिस्थितियों में भी सदा रहे आगे

  • बॉलीवुड अभिनेत्री शर्मीला टैगोर बताती हैं कि देश मे आयी आपातकालीन संकटपूर्ण परिस्थितियों मे दिलीप कुमार साहब फिल्म इंडस्ट्री से सबसे पहले आगे आते थे। उनके द्वारा फण्ड एकत्रित करके लोगों की मदद की जाती थी।
  • अक्सर आपात परिस्तिथियों मे दिलीप कुमार साहब के घर पर सिनेमा जगत के लोगों की मीटिंग हुआ करती थी। जिसमे लोगों की मदद कैसे की जाये इस बात पर चर्चा होतो थी।
  • कई बार दिलीप कुमार साहब चैरिटी मैचों का आयोजन कराकर जरुरत मंद लोगों की मदद किया करते थे। उनके द्वारा आयोजित किये गए मैचों मे बड़े -बड़े खिलाड़ी भाग लिया करते थे।

Dilip Kumar की सदाबहार फिल्मे-

  • ज्वार-भाटा (1944)
  • शहीद (1948)
  • देवदास (1955)
  • नया दौर, मुसाफिर (1957)
  • मधुमिता (1958)
  • मुग़ले -ए -आजम (1960)
  • लीडर (1964)
  • राम और श्याम (1967)
  • क्रांति (1981)
  • शक्ति, विधाता (1982)
  • कर्मा (1986)
  • सौदागर(1991)

सम्मान एवं पुरस्कार

  • आठ बार फिल्म फेयर  सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार
  • पद्म विभूषण साल 2015 (भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिकता सम्मान)
  • निशान –ए-इम्तियाज साल 1997(पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिकता सम्मान)
  • पद्म भूषण साल 1991(भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिकता सम्मान) 
  • दादा साहब फाल्के पुरस्कार साल 1994 (भारतीय सिनेमा जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार)
  • फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार साल 1993  

दिलीप साहब से जुड़ी कुछ बातें

  • दिलीप कुमार की आत्मकथा सब्जेक्ट्स एंड शैडो’ के अनुसार – दिलीप कुमार अभिनेता बनने से पहले फलों के कारोबार मे अपने पिता की सहायता किया करते थे, इसी सिलसिले मे वे साल 1943  मे एक बार नैनीताल भी गए थे।
  • नैनीताल मे दिलीप कुमार की मुलाकात डॉ मसानी के द्वारा बॉम्बे टाकीज की मालकिन और अभिनेत्री देविका रानी जी के साथ हुई। यही से ही दिलीप कुमार का फ़िल्मी सफर शुरू हुआ था।
  • एक अभिनेता के रूप मे दिलीप कुमार साल 1958  मे फिल्म मधुमती की लिए नैनीताल पहुंचे थे। फिल्म के गीत सुहाना सफर और ये मौसम हसी” और दय्या रे दय्या चढ़ गया पापी बिछुवा” काफी मशहूर हुए थे। 
  • दिलीप साहब ने लॉरेंस डिसूज़ा की फिल्म कलिंगा का निर्देशन किया था तथा  फिल्म कर्मा और मुसाफिर मे उन्होंने गाने भी गाये थे। इसके अलावा फिल्म गंगा –जमुना का निर्माण और फिल्म लीडर और गंगा –जमुना का लेखन भी दिलीप कुमार ने किया था।
  • दिलीप कुमार इतनी सिद्दत से ट्रेजेडी किरदार को जीते थे कि उनको  अभिनय करते देख डॉक्टर उन्हें सलाह देते थे की आप इस तरह के किरदार न किया करे। वर्ना आप दिल सम्बन्धी बीमारियों के रोगी बन जाओगे।
  • मजे की बात तो यह है की शादी से पहले शायरा बानो फिल्मो मे काफी नाम बना चुकी थी किन्तु दिलीप साहब ने कभी भी उनकी एक भी फिल्म नही देखी थी।  जब भी दिलीप कुमार साहब के साथ उनकी जोड़ी बनायीं जाती तो दिलीप साहब किसी न  किसी बहाने से फिल्म मे काम करने से मना कर देते थे। उनको लगता था शायरा बहुत छोटी है।
  • दिलीप कुमार और शायरा बानो की उम्र मे काफी अंतर था। जिस वजह से दिलीप साहब उनसे शादी करने को लेकर असमंजस मे थे। किन्तु अंत मे उन्हें शायरा बानो के प्यार के आगे झुकना पड़ा था।
  • असल मे शायरा जी दिलीप कुमार को बहुत चाहती थी तथा उन्ही से शादी करना चाहती थी। दिलीप साहब और शायरा जी के परिवार आपस मे घनिष्ट मित्र थे।
  • शादी के बाद दिलीप साहब ने शायरा जी से फिल्मो मे काम न करने की सलाह दी थी। जिसे शायरा जी ने मान लिया था। जब यह बात मनोज कुमार जी को पता चली वे सीधे दिलीप कुमार साहब के पास पहुंचे तथा उन्हें शायरा को लेकर बन रही अपनी फिल्म पूरब और पश्चिम को  बंद कर देने की बात कही।
  • मनोज कुमार जी ने दिलीप कुमार जी से शायरा की फिल्मे देखने की गुजारिश की थी। तब दिलीप साहब ने शायरा बानो की पहली फिल्म देखी तथा उनकी एक्टिंग की तारीफ करते हुए कहा की जब शायरा इतना अच्छा अभिनय करती है तो मैं कौन होता हूँ मना करने वाला।
  • दिलीप कुमार और शायरा बानो जी का वैवाहिक जीवन बहुत अच्छा बीता था, उनकी अपनी कोई औलाद नही थी। इस बात को लेकर कभी भी इन दोनों जीवन मे कोई खटास नही थी। दोनों एक -दूसरे को उतनी ही शिद्द्त से महोब्बत करते थे जितना पहले किया करते थे।

सारसंक्षेप

दोस्तों, दिलीप कुमार साहब का दुनिया को छोड़कर चला जाना निश्चित ही बॉलीवुड मे एक बहुत बड़ा खालीपन छोड़ गया है। क्योकि  इस स्थान को भर पाना बहुत मुश्किल है। दिलीप कुमार के जैसे अभिनेता जरूर बना जा सकता है किन्तु दिलीप कुमार जैसा इंसान बन पाना बहुत मुश्किल है। उनकी अदाकारी, कार्य के प्रति सम्मान, कलाकारों के प्रति सम्म्मान, आम आदमियों के प्रति भावना आदि विशेषतायें उन्हें एक महान व्यक्तियों की पंक्ति मे खड़ा करती हैं। दिलीप साहब की फिल्म आदमी के गीत आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज़ दे” के साथ आज का यह श्रद्धांजलि लेख हम यहीं समाप्त करते हैं। धन्यवाद। 

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