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Dadabhai Naoroji: ब्रिटिश संसद में चुने जाने वाले पहले एशियाई व्यक्ति



दादाभाई नौरोजी  (1825-1917) को कैसे याद किया जाए? एक प्रखर वाक्तव्य शैली से धनी शख्सियत के रूप में, या फिर उस विभूति के रूप में जिन्होंने दुनिया को जातिवाद और साम्राज्यवाद से ऊपर उठकर सोचने की क्षमता से रूबरू करवाया। आप Dadabhai Naoroji को महात्मा गांधी से पहले भारत के सबसे बड़े राज नेता के रूप में भी याद कर सकते हैं। लेकिन उनकी पहचान बस इतनी ही नहीं थी, दादाभाई नौरोजी ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में पहुंचने वाले एशिया के पहले शख्स भी थे।

इस लेख के मुख्य बिंदु-

आखिर 4 सितंबर क्यों है खास?

दादाभाई नौरोजी ही वो शख्सियत थे (Dadabhai Naoroji contribution) जिन्होंने भारत में स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी थी। आज ही के दिन यानी 4 सितंबर 1825 को मुंबई के गरीब पारसी परिवार में उनका जन्म हुआ था।

एक नज़र में दादाभाई नौरोजी की पारिवारिक पृष्ठभूमि

दादाभाई नौरोजी के पिता का नाम नौरोजी पलांजी डोरडी तथा माता का नाम मनेखबाई था। दादाभाई ने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था। वो जब महज़ 4 वर्ष के थे तभी उनके पिता नौरोजी पलांजी डोरडी का निधन हो गया था। इसके बाद दादाभाई नौरोजी के पालन पोषण की जिम्मेदारी उनकी माता जी ने उठाई थी।

Dadabhai Naoroji  की माता को पढ़ाई का महत्व इसलिए भी मालूम था क्योंकि वो पढ़ी लिखी नहीं थीं। पढ़ाई लिखाई के अभाव में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उन्हें इस बात का अच्छे से ज्ञान था। इसलिए उन्होंने दादाभाई नौरोजी की पढ़ाई में विशेष ध्यान दिया था।

दादा भाई नौरोजी ने अपनी पढ़ाई मुंबई के एलफिंस्टन इंस्टिट्यूट से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने 27 वर्ष की आयु में एक अध्यापक के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत की थी।

दादाभाई नौरोजी ने लड़कियों की शिक्षा के लिए अथक प्रयास किए थे

राष्ट्रवादी सोच से ओतप्रोत दादाभाई नौरोजी ने लड़कियों की शिक्षा के लिए अथक प्रयास किए थे। 1840 का ही वो दशक था,जब दादाभाई नौरोजी ने पूरे देश भर में लड़कियों की शिक्षा के लिए कई अभियान चलाए थे।

यही वो समय था जब दादा भाई नौरोजी ने लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल खोला था। इस कदम के लिए उनको देश भर के रूढ़िवादी सोच से ओतप्रोत लोगों का गुस्सा भी झेलना पड़ा था। लेकिन जैसे-जैसे रूढ़िवादी सोच का गुस्सा बढ़ रहा था, वैसे-वैसे दादाभाई नौरोजी का इरादा भी मजबूत हो रहा था। और इसी मजबूती का असर अगले 5 साल में देखने को मिला था। जब मुंबई में खोला गया स्कूल पूरी तरह लड़कियों से खचा-खच भरा हुआ था।

जब मुंबई का स्कूल उनको भरा हुआ दिखा तो उनके अंदर एक इरादे ने और जन्म लिया और इस इरादे का नाम था लैंगिक समानता। इसके महत्व को बताने के लिए दादाभाई नौरोजी ने देशभर में कई अभियान भी चलाए थे। वो खुद देश में कई जगह घूम-घूम कर लोगों से मिलकर यह बता रहे थे कि लड़कियों की शिक्षा इस देश के निर्माण के लिए कितनी जरूरी है।

BBC में छपी रिपोर्ट के अनुसार उस दौर में दादाभाई नौरोजी ने कहा था कि “भारतीय एक दिन समझ जाएंगे कि राष्ट्र के निर्माण के लिए महिलाओं का शिक्षित होना,अपने कर्तव्यों का पालन करना उतना ही जरूरी है जितना किसी पुरुष का,महिला और पुरुष दोनों बराबर हैं और उन्हें बराबरी का मौका भी मिलना चाहिए।”

दादाभाई नौरोजी के जीवन के कुछ फैक्ट्स

लेकिन अभी संसद के गलियारों में यानी पार्लियामेंट पर जाना बाकी था, साल आया 1886 और इसी साल दादाभाई नौरोजी पार्लियामेंट के लिए भी चुने गए। उनका चयन फिन्सबरी क्षेत्र से हुआ था।

दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक द ड्यूटीज़ ऑफ द जोरोस्ट्रियंसमें इस बात का उल्लेख किया है कि वो पारसी धर्म को मानते थे लेकिन उनका दृषिटकोण कैथोलिक था।

सारांश

“ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडिया” के नाम से आज भी भारतवासी दादाभाई नौरोजी को याद करते हैं। अपने इस राष्ट्रवादी राजनेता को भारतवासी याद करे भी क्यों ना? दादा भाई नौरोजी ने विश्व के ऐतिहासिक पटल पर जो भारत की रूपरेखा तैयार की थी आज भी वह प्रासंगिक है। उन्होंने हमारे राष्ट्र को आगे ले जाने के लिए जो योगदान दिया है उसे भुला पाना मुमकिन नहीं है।