प्रारंभिक मध्ययुगीन काल की शुरुआत के बाद से भारतीय उपमहाद्वीप में सामंती व्यवस्था ने अपने पांव पसार लिए थे और यह उस युग की सबसे महत्वपूर्ण पहचान के रूप में आज इतिहास में वर्णित है। जातियों का प्रसार तो हुआ, मगर कला और संस्कृति में क्षेत्रीय पहचान भी बढ़ी। अर्थव्यवस्था भी इस वक्त बंद पड़ी थी। इसलिए 750 से 1200 ईस्वी तक की अवधि को अंधकार युग के रूप में माना जाता था, क्योंकि पूरा देश कई क्षेत्रीय राज्यों में विभाजित था। ये सभी क्षेत्रीय राज्य आपस में लड़ने में व्यस्त थे, लेकिन इस चरण के दौरान भारत ने संस्कृतियों, परंपराओं, कला, साहित्य और भाषा में प्रगति देखी। इस तरह से यह युग यह अब भारतीय इतिहास के उज्ज्वल और जीवंत काल के रूप में माना जाता है।
तब की स्थिति
- चूंकि इस अवधि में बड़ी संख्या में क्षेत्रीय राज्यों का प्रभुत्व रहा, इसलिए मजबूत राज्यों ने उत्तरी भारत और दक्कन के हिस्सों में कमजोर राज्यों पर अपना अधिकार स्थापित करने की कोशिश की।
- उत्तर भारत में वर्चस्व के इस संघर्ष में प्रमुख राजवंश प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट थे।
- वहीं, दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा। चोल दक्कन के हिस्सों में राजनीतिक एकीकरण करने में समर्थ थे, जबकि उत्तरी हिस्से में वे अभी भी बंटे हुए थे।
- दिल्ली सल्तनत ने मध्यकालीन भारत के इतिहास में एक नए चरण की शुरुआत की।
- राजनीतिक रूप से यह लगभग एक सदी तक भारत के एकीकरण का कारण बना।
- यह सल्तनत 14 वीं शताब्दी के अंत तक विघटित हो गई और क्षेत्रीय साम्राज्य फिर से उभर आए। इनमें बहमनी और विजयनगर राज्य बहुत शक्तिशाली हो गए।
सांस्कृतिक बदलाव
- आर्थिक जीवन में भी बड़े बदलाव देखे गए। व्यापार और शिल्प को प्रोत्साहन मिला। नए शहरों ने प्रशासन, व्यापार और शिल्प के केंद्र के रूप में काम किया।
- इस अवधि के दौरान प्रौद्योगिकी के नये स्वरूप भी उभर कर सामने आए।
प्रारंभिक मध्यकाल के दौरान भाषा और साहित्य
- शासक वर्ग की भाषा के रूप में संस्कृत का उपयोग जारी रहा। संस्कृत का उपयोग अभी भी प्रशासनिक स्तर पर किया जाता था।
- आंतरिक एवं जनजातीय क्षेत्रों में आर्यन और पूर्व-आर्यन भाषाओं का उपयोग किया गया था, लेकिन ब्राह्मणों ने मौजूदा आर्यन और पूर्व-आर्यन भाषाओं पर संस्कृत के विभिन्न रूपों को थोपना शुरू कर दिया। इसने क्षेत्रीय भाषाओं को जन्म दिया।
- ब्राह्मणों ने जगह-जगह प्रवास करके स्थानीय बोलियों को भाषाओं में व्यवस्थित किया।
- संस्कृत पर आधारित लेखन और व्याकरण को इन भाषाओं में जगह दी गयी।
- 7वीं शताब्दी तक क्षेत्रीय भाषाएं बहुत स्पष्ट हो गईं और एकल क्षेत्रीय भाषा को समझने के लिए कई लिपियों को सीखना पड़ा।
प्रारंभिक मध्ययुगीन काल के दौरान क्षेत्रीय संस्कृतियां
- इस अवधि के दौरान आंध्र, असम, बंगाल, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु की विभिन्न सांस्कृतिक इकाईयां मौजूद रहीं।
- छठी शताब्दी के दौरान राजपूत स्थानीय जनजातियों एवं हूणों और अन्य विदेशी तत्वों के समायोजन के साथ ब्राह्मणवादी समाज में उभर कर सामने आए। इसने राजपुताना या राजस्थान के गठन को जन्म दिया।
- बंगाल को पश्चिम बंगाल (गौड़ा) और पूर्वी बंगाल (बंगा) में विभाजित किया गया था। बाद में पूरे बंगाल को बंगा के नाम से जाना जाने लगा।
- ह्वेनसांग ने छठी शताब्दी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न राष्ट्रीयताओं के प्रसार का भी उल्लेख किया है।
- भारत के दक्षिणी हिस्सों में भी पल्लवों के पतन और चोलों के उदय के बाद क्षेत्रीय संस्कृतियां लोकप्रिय हो गईं।
- विशुद्धदत्त द्वारा लिखित एक ऐतिहासिक नाटक मुद्राराक्षस विभिन्न रीति-रिवाजों, कपड़ों और भाषाओं के साथ निवासियों के बारे में बताता है।
प्रारंभिक मध्ययुगीन काल के दौरान धार्मिक परंपराएं
- महायज्ञ (पवित्र अग्नि के सामने किया जाने वाला वैदिक अनुष्ठान) और दान (दान की वैदिक परंपरा) इस अवधि के दौरान पूजा के प्रमुख रूप में जाना जाता है। यह एक प्रणाली के रूप में विकसित हो गया।
- भक्ति का सिद्धांत यानी कि भगवान के लिए एक व्यक्ति का आत्मसमर्पण पूजा के साथ जुड़ा हुआ था। यह विशेष रूप से दक्षिणी भागों में मध्ययुगीन धर्म की महत्वपूर्ण विशेषता बन गया।
- जनजातीय क्षेत्रों में तांत्रिक भी सामने आने लगे। तांत्रिकों के तरीके में पूजा और भक्ति का मिश्रण था।
- ब्राह्मण भूमि अनुदान का लाभ उठाने के लिए भारत के उत्तरी भागों से दूसरे भागों में भी जाकर बसने लगे।
- पांचवीं से सातवीं शताब्दी के दौरान कई ब्राह्मणों को नेपाल, असम, बंगाल, उड़ीसा और मध्य भारत के साथ उसके आसपास के क्षेत्रों में भूमि अनुदान प्राप्त हुआ।
- प्रवास के बाद ब्राह्मण केवल स्थानीय जनजातियों के साथ मिलकर रहकर और आदिवासी रिवाजों को अपनाकर अपने भूमि अधिकारों को बनाए रख सकते थे। इसने अंततः तांत्रिकता को जन्म दिया।
- मध्यकाल के दौरान देवताओं के अवतार का सिद्धांत बहुत प्रसिद्ध हो गया। स्थानीय देवताओं की पहचान भगवान शिव, विष्णु और दुर्गा के अवतार के रूप में की गई।
- साथ ही इस अवधि के दौरान इस्लाम का एक नया धर्म सामने आया।
- इस्लाम के उदय के बाद कुछ शताब्दियों के भीतर यह उपमहाद्वीप के हर हिस्से में अनुयायियों के साथ दूसरा सबसे लोकप्रिय भारतीय धर्म बन गया।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भले ही आर्थिक गतिविधियां इस काल में मंद पड़ी थीं, मगर सांस्कृतिक व धार्मिक क्रियाकलापों के साथ अलग-अलग परंपराओं ने जरूर देशभर में अपने पांव पसार लिए थे, जिनमें से कई का प्रतिबिंब आज भी देखने को मिल जाता है। कोई ऐसी संस्कृति आपको आज दिखती है क्या?