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नेहरू की विदेश नीति से दुनिया में कुछ ऐसी बनी भारत की पहचान

वर्ष 1947 में आजादी प्राप्त होने के उपरांत भारत भी स्वायत्त देशों के समूह में शामिल हो गया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का महत्व बढ़ा और अन्य देशों के साथ संबंध भी विकसित करने की दिशा में तेजी से काम करने की जरूरत महसूस हुई। चूंकि विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में ही आजाद भारत का जन्म हुआ था, ऐसे में यह जरूरी था कि भारत की जो विदेश नीति बने उसमें सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करने और शांति स्थापित करने का लक्ष्य तो शामिल हो ही, साथ में अपनी सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके।

नेहरू की विदेश नीति

गुट निरपेक्षता की नीति

अफ्रीका और एशिया की एकता

भारत-चीन संबंध

भारत-पाकिस्तान संबंध

परमाणु नीति

निष्कर्ष

भारत की विदेश नीति को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सही दिशा देने में नेहरू के योगदान को भुलाया तो नहीं जा सकता, मगर चीन को समझ पाने में नेहरू की विफलता, कश्मीर व पाकिस्तान के मुद्दे पर ठोस कदम न उठा पाने और परमाणु कार्यक्रम के विरोध के कारण नेहरू कई बार आलोचको के निशाने पर भी आ जाते हैं। फिर भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान बनाने में नेहरू की विदेश नीति के योगदान को कभी भी कम नहीं आंका जा सकता। क्या आप बता सकते हैं कि नेहरू की विदेश नीति से आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति कैसे भिन्न है?