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बुरों से नहीं, बुराई से नफरत करना सिखाता है चेटीचंड पर्व



भारत त्योहारों का देश है। यहां जितने धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं, सभी तरह-तरह के त्योहार मनाते हैं। अपने देश में त्योहारों की खासियत ये भी है कि यहां सभी एक-दूसरे के त्योहारों का पूरा सम्मान भी करते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है चेटीचंड। भारत के साथ पाकिस्तान में भी इस पर्व धूम होती है। चैत्र मास की द्वितीया तिथि को इसे मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह सिंधी समाज का त्योहार है। वे इसे नव वर्ष की शुरुआत भी मानते हैं। भगवान झूलेलाल की पूजा इस दिन की जाती है। ये ऐसे देवता हैं, जिन्हें हर शुभ कार्य करने से पहले सिंधी समाज के लोग याद करते हैं। श्रद्धालु संत झूलेलाल को जल के देवता वरुण का ही अवतार मानते हैं।

मान्यता

चेटीचंड के बारे में कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता कुछ ऐसी है कि सिंध का एक शासक हुआ था, जिसका नाम था मिरखशाह। उसके अत्याचार से सिंधी त्राहि-त्राहि करने लगे थे। उससे बचने के लिए आखिरकार सिंधियों ने 40 दिनों तक बहुत ही कठिन तपस्या की। वे भूखे-प्यासे भी रहने लगे। उन्होंने मंत्र जपे। पूरी भक्ति से साधना भी की। आखिरकार सिंधु नदी से नर रूपी मछली पर सवार होकर भगवान झूलेलाल प्रकट हुए। उन्होंने सिंधियों से कहा कि घबराओ मत। मिरखशाह के अत्याचार से तुम सबको मुक्ति दिलाने के लिए 40 दिनों के बाद मैं जन्म लूंगा। कहा जाता है कि एक बालक का जन्म चैत्र की द्वितीया को हुआ, जिसने राज्य की प्रजा को मिरखशाह के अत्याचार से आजादी दिला दी।

इस त्योहार से जुड़ी एक और मान्यता ये है कि सिंधी समाज तो व्यापार में ही लगा रहता है। ऐसे में समुद्र से यात्रा करते वक्त उन्हें खतरनाक जीव-जंतु, समुद्री तूफान और समुद्री डाकुओं से भी खतरा होता था। लुटेरों का आतंक बहुत था। ऐसे में जो सिंधी पुरुष समुद्री यात्रा से लौट आते थे, उन्हें कुशल देखकर महिलाएं एक उत्सव मनाती थीं, जिसे चेटीचंड महोत्सव कहा जाता है।

संत झूलेलाल के बारे में

सिंधी समाज संत झूलेलाल को ही पूजता है। सिंध प्रांत में विक्रम संवत 1007 यानी कि 951 ई. में संत झूलेलाल का जन्म हुआ था। नसरपुर नगर में रहने वाले रतन राय के घर वे पैदा हुए थे। उनकी माता का नाम देवकी था। जन्म से ही वे बड़े तेजस्वी नजर आ रहे थे। उनका नाम उदयचंद्र था। उदयचंद्र में खूबियां इतनी थीं कि उनका बखान करना शब्दों में संभव नहीं। वे जो चमत्कार करते थे, उसकी वजह से उन्हें लोग झूलेलाल और लालसाईं भी कहने लगे थे। वहीं, दूसरी ओर मुसलमान उन्हें ख्वाजा खिज्र जिंदह पीर के नाम से जान रहे थे। जिस बालक का अवतार लेकर वे जन्मे थे, कहा जाता है कि उसका पालना अपने आप यानी कि देवताओं की शक्ति से खुद से हिलता-डुलता रहता था। यही वजह है कि उन्हें झूलेलाल के नाम से जाना गया।

संत झूलेलाल ने तो कमाल ही कर दिया। मिरखशाह को उन्होंने चुनौती देकर उसके अत्याचार को गलत साबित करके उसे अपनी गलती को एहसास कराया। मिरखशाह को उन्होंने अपना शिष्य तक बना लिया। तभी तो मिरखशाह ने कुरुक्षेत्र में संत झूलेलाल का एक मंदिर भी बनवाया। सिंधियों के बीच संत झूलेलाल के प्रति बड़ी श्रद्धा है। वे कण-कण में संत झूलेलाल का निवास मानते हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में जो संत झूलेलाल की समाधि बनी है, वहां मुस्लिम भी बड़ी तादाद में पहुंचते हैं।

क्या है महोत्सव?

सिंधी समाज इसे पूरी श्रद्धा और धूमधाम से मनाता है। उस वर्ष के दौरान जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है, वे इस दिन संत झूलेलाल के प्रति आभार प्रकट करते हैं और उसी दिन वे नई मन्नत मांग लेते हैं। हालांकि, मन्नत मांगने के साथ वे संत झूलेलाल के बताये रास्ते पर चलने का संकल्प भी लेते हैं। कई जगहों पर इस अवसर पर विशाल मेले लगते हैं। शोभायात्रा भी निकलती है।

ऐसे की जाती है पूजा

इस दिन श्रद्धालु संत झूलेलाल के मंदिर सुबह में जाकर उनका दर्शन करते हैं। वरुण देव का अवतार संत झूलेलाल को माने जाने की वजह से इस दिन भगवान वरुण की पूजा भी लोग करते हैं। बहिराणा साहिब की परंपरा को सिंधी समाज के लोगों द्वारा इस दिन नदी किनारे निभाया जाता है। पूजा के लिए आटे की लोई बना ली जाती है और उसमें सिंदूर, लौंग, फल, इलायची, दीपक और मिश्री आदि चीजें रखी जाती हैं। पूजा करके इन्हें नदी के जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।

निष्कर्ष

यह बात याद रखने वाली है कि संत झूलेलाल ने अत्याचारी शासक मिरखशाह का वध नहीं किया था। उन्होंने केवल उसके गुरुर को मारा था, जिससे वह सुधर गया था। चेटीचंड महोत्सव संदेश देता है कि संत झूलेलाल के आदर्शों को अपने जीवन में उतारकर बुराई से नफरत करें, न कि बुरे लोगों से। बताएं, चेटीचंड महोत्सव में आप कभी शामिल हुए हैं या नहीं?