जब भारत में अंग्रेजों की सत्ता सर्वप्रथम स्थापित होने की बात होती है तो 23 जून, 1757 को हुए प्लासी के युद्ध को ही इसके लिए जिम्मेवार ठहराया जाता है, क्योंकि बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच जो संघर्ष चला, उसी की वजह से प्लासी की लड़ाई हुई और इसी के बाद से अंग्रेज भारत पर हावी होने लगे।
प्लासी की लड़ाई की वजह
प्लासी की लड़ाई के कई कारण हैं, जिनमें सिराजुद्दौला की छवि का बिगड़ना, भारत में हुकूम चलाने की अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा, अंग्रेजों के मन में फ्रांसीसियों के प्रति शंका, सिराजुद्दौला के विरुद्ध साजिश और सिराजुद्दौला पर लगे आरोप मुख्य रूप से शामिल थे।
1. सिराजुद्दौला की छवि का बिगड़ना
- अपने अहंकारी, हठी, अत्याचारी और विलासी प्रवृत्ति की वजह से सिराजुद्दौला ने सगे
- संबंधियों और दोस्तों तक को धीरे-धीरे अपना दुश्मन बना लिया।
- उसकी धार्मिक कट्टरता इतनी बढ़ गयी कि अधिकतर हिंदू व्यापारी भी उसके शत्रु बन गए।
- मीर जाफर को उसने ऊंचे ओहदे से उतारकर बेहद नीचे पद पर स्थित मोहनलाल को मंत्री और मीर मर्दान को अपने निजी सैनिकों का सेनापति नियुक्त कर दिया।
- सिराजुद्दौला और मीर जाफर के बीच नीतियों और कार्य करने के तरीकों को लेकर मतभेद गहराते चले गए।
- बेहद सम्पन्न और प्रभावशाली जगत सेठ मेहताबराय को भरी सभा में थप्पड़ मारकर उसने उसे भी अपना दुश्मन बना लिया।
- इस तरह से सिराजुद्दौला ने हर किसी को अपने खिलाफ षड्यंत्र करने का खुला निमंत्रण दे दिया।
2. भारत में हुकूम चलाने की अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा
- अंग्रेज राजनीतिक हस्तक्षेप करके दक्षिण में कर्नाटक व हैदराबाद की सत्ता में प्रभुत्व के साथ जमीन हासिल करने में भी सफल हो गए थे, जिससे उनका मनोबल बढ़ा हुआ था।
- बंगाल में भी वे उनके इशारों पर काम करने वाला एक ऐसा कठपुतली शासक चाह रहे थे, जो फ्रांसीसियों के विरोध में होने के साथ उन्हें राज्य में राजनीतिक व व्यापारिक मदद प्रदान करे।
- मीर जाफर भी फ्रांसीसियों का विरोधी था और साथ में नवाब सिराजुद्दौला को पद से हटाकर उसकी नवाब बनने की महत्वकांक्षा भी थी।
- अंग्रेजों ने इसका लाभ उठाकर उसे अपने पक्ष में करना शुरू किया और उसके साथ मिलकर सिराजुद्दौला के खिलाफ साजिश रचना शुरू कर दिया।
3. अंग्रेजों के मन में फ्रांसीसियों के प्रति शंका
- फ्रांसीसी बंगाल में अंग्रेजों की तुलना में राजनीतिक और व्यापारिक दोनों ही तौर पर अधिक मजबूत थे। चंद्रनगर और हुगली में तो उनकी कोठियां और व्यापारिक केंद्र भी थे।
- अंग्रेजों के चंद्रनगर पर आक्रमण करके उसे हथियाने की स्थिति में अलीनगर की अपमानजनक संधि से नाराज सिराजुद्दौला ने फ्रांसीसियों को अपने पास शरण व संरक्षण दे दिया।
- अंग्रेजों को भय सताने लगा कि फ्रांसीसी आसानी से हैदराबाद और पांडिचेरी से अपनी सेना बुला लेंगे और सिराजुद्दौला के साथ मिलकर उनका बंगाल से नामोनिशान ही मिटा देंगे।
- ऐसे में अंग्रेजों ने नवाब सिराजुद्दौला के अंत की तैयारी शुरू कर दी।
4. सिराजुद्दौला के विरुद्ध साजिश
- नवाब तो मीर जाफर बनना ही चाहता था। अप्रैल, 1757 में गुपचुप तरीके से मीर जाफर और अंग्रेज अधिकारियों वाटसन एवं क्लाइव के बीच मीर जाफर को नवाब बनाने के लिए समझौता हो गया।
- समझौते के तहत नवाब बनने पर मीर जाफर को अंग्रेजों को क्षतिपूर्ति के तौर पर एक करोड़ रुपये देने के अतिरिक्त पूर्व शासक के समय प्राप्त अधिकार व सुविधाओं के साथ फ्रांसीसियों की कोठियों को उन्हें सौंपना था।
- इसके अलावा फ्रांसीसियों को बंगाल में दोबारा न घुसने देने के साथ ढाका, कासिम बाजार, कोलकाता व हुगली की किलेबंदी सहित 24 परगनों की जमींदारी आदि भी कंपनी को सौंपने का भी समझौता हुआ।
- इस तरह से सिराजुद्दौला को हटाकर मीर जाफर को नवाब बनाने के लिए षड्यंत्र शुरू हो गया।
5. सिराजुद्दौला पर लगे आरोप
- चिट्ठी लिखकर क्लाइव ने सिराजुद्दौला पर अलीनगर संधि के उल्लंघन का आरोप लगाकर नवाब के अधिकारियों द्वारा आगे के निर्णय लेने की बात कहकर खुद मुर्शिदाबाद आने की बात कही।
- करीब 800 अंग्रेज एवं 2200 भारतीय फौज के साथ क्लाइव ने 22 जून, 1757 को प्लासी गांव के पास अपना सैनिक शिविर बना लिया।
लड़ाई पर एक नजर
- सिराजुद्दौला के नेतृत्व में करीब पचास हजार की सेना पहले से ही वहां पहुंच गई थी।
- लड़ाई शुरू हुई तो सिराजुद्दौला की तरफ से केवल मोहनलाल, मीर मर्दान और एक फ्रांसीसी अधिकारी के नेतृत्व में सेना का केवल एक हिस्सा ही लड़ाई लड़ने उतरा।
- मीर जाफर और राय दुर्लभ के नेतृत्व में जो सेना थी, वह नहीं लड़ी और इस तरीके से युद्धभूमि में ही मीर जाफर ने सिराजुद्दौला को धोखा दे दिया।
- इस तरह से प्लासी की लड़ाई को अंग्रेजों की जीत नहीं, बल्कि धोखे से हासिल की गई जीत कह सकते हैं, क्योंकि नवाब के पद को एक तरह से बेच दिया गया।
- क्लाइव अपनी सेना की वजह से नहीं, बल्कि षड्यंत्र और धोखेबाजी की वजह से लड़ाई को जीत पाया।
- सिराजुद्दौला भले ही जैसा भी हो, लेकिन उसने अपने राज्य को कभी धोखा नहीं दिया। मीर मर्दान युद्धभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हुआ, जबकि सिराजुद्दौला जब भागने लगा तो मीर जाफर के बेटे मीरन ने उसे मौत के घाट उतार दिया।
प्लासी की लड़ाई का महत्व
- प्लासी की लड़ाई में अंग्रेजों की जीत के साथ ही अलीवर्दीखां के राजवंश का अंत हो गया। मीर जाफर नवाब तो बना, लेकिन वह केवल अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली था। इस तरह से भारत में अंग्रेजी साम्राज्य में अपनी नींव जमा दी। इसके बाद से बंगाल में अंग्रेजों का व्यापार तेजी से बढ़ा। अंग्रेजों ने अपने टकसाल भी यहां स्थापित कर लिये और अपने सिक्के भी ढालने लगे। इसने भारत की राजनीति को एक नया मोड़ ही दे दिया।
- प्लासी की लड़ाई जीतने के बाद बंगाल में अधिपत्य जमाने से अंग्रेजों के लिए उत्तर भारत में पैर फैलाना आसान हो गया। बंगाल में समुद्र तट होने से वे आसानी से अपनी सेना भी बुला सकते थे। बंगाल मुगल साम्राज्य के एकदम समीप था। यहां से नदी के माध्यम से वे आसानी से दिल्ली और आगरा तक भी पहुंच सकते थे। इस तरीके से उत्तर भारत में भी धीरे-धीरे उन्होंने अगले 100 वर्षों में अपना प्रभुत्व जमा लिया।
- इसके बाद से अंग्रेज फ्रांसीसियों की तुलना में मजबूत हो गए और कर्नाटक की तीसरी लड़ाई में उन्हें परास्त भी कर दिया।
- प्लासी में जीत के बाद कोलकाता में व्यापार फैलाने, जागीर के रूप में 24 परगनों की भूमि मिलने और अन्य स्रोतों से आमदनी होने से अंग्रेज आर्थिक तौर पर सशक्त हो गए और बंगाल एकदम गरीब हो गया।
निष्कर्ष
प्लासी की लड़ाई ने शुरू से ही दिखा दिया था कि भारत में अपने साम्राज्य को फैलाने के लिए अंग्रेज किस हद तक गिर सकते थे। दूसरी ओर प्लासी की लड़ाई से यह बात भी साबित हो गई कि सत्ता का लालच एक ऐसी चीज है जो दोस्तों को भी दुश्मन बना देता है। इस तरीके से प्लासी की लड़ाई ने भारत में अंग्रेजों के शासन का मार्ग पूरी तरह से प्रशस्त कर दिया और अंग्रेजों की हुकूमत धीरे-धीरे बंगाल से फैल कर लगभग पूरे देश में फैल गई। जरा सोचिए, यदि प्लासी की लड़ाई नहीं होती तो क्या अंग्रेज इतनी आसानी से भारत में अपना प्रभुत्व जमाने में कामयाब हो पाते?