Open Naukri

“अयोध्या” सम्पूर्ण गाथा: भूतकाल से राम लला विराजमान तक की पूरी कहानी



“रघुपति राघव राजा राम

पतित पावन सीता राम, सीता राम-सीता राम,भज प्यारे तू सीता राम

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम,सबको सन्मति दे भगवान”

दोस्तों, इस लेख की शुरुआत राम धुन से हुई है, इसका मतलब साफ़ है कि तारीख 5 अगस्त 2020 इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो चुकी है, साथ ही इतिहास याद रखेगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी, क्योंकि प्रधानमंत्री के तौर पर पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी ने अयोध्या राम लला के मन्दिर का शिलान्यास किया है।

इन सबके साथ अयोध्या सम्पूर्ण कांड में इतिहास बहुत सी घटनाओं को याद रखेगा, बहुत से किरदारों को याद रखेगा, कई तारीखों को याद रखेगा, बाबरी मस्जिद को याद रखेगा, कई राजनेताओं को याद रखेगा, कार सेवकों के खून को याद रखेगा, याद रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायलय के एतिहासिक फैसले को भी रखेगा। जिसमे ये कहा गया था कि विवादित जमीन पर राम लला की जन्मभूमि है।

इस लेख में आपके काम की बातें-

इन किरदारों से होते हुए राम लला मंदिर के शिलान्यास तक के सफर में भारतीय सियासत ने जितने भी बड़े पड़ाव देखे हैं, हमारी कोशिश रहेगी कि इस लेख में उन सब से आपको रूबरू करवाएं।

चलिए शुरू करते हैं अयोध्या के सम्पूर्ण कांड का सफर।

क्या हुआ था पहले चरण में यानी 492 साल पहले ?

बड़े-बड़े इतिहासकारों के हवाले से और ‘द हिंदू’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार, इसकी शुरुआत होती है ‘बाबर’ से, वही मुगल शासक ‘बाबर’ जिसने दिल्ली पर कब्जा किया था। फिर समय आता है 1528 का जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ था।

अब बात करते हैं तुलसीदास की

रामायण को बाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा था, लेकिन भारत में जब ज्यादा लोगों को संस्कृत नहीं आती थी, तो तुलसीदास ने इसे अवधी में लिखने का फैसला किया, उस दौर में उन्हें काफी विरोध का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने क्रोध में ये तक कह दिया था कि ‘मांग के खइयो,मसीद पर सोइयो’ मतलब मांगकर खा लूँगा और मस्जिद में सो लूँगा लेकिन राम की कथा आम जन मानस तक ज़रूर पहुंचनी चाहिए।   

क्या कहती है स्क्रिप्टो इंडिया किताब ?

इतने नजरिये के बाद एक नज़र स्क्रिप्टो इंडिया किताब पर भी डालते हैं, ये किताब 1767 में लिखी गई थी। इसमें लिखा गया था कि औरेंगजेब ने राम किले को नष्ट किया था। जिसे राम जन्म स्थान कहा जाता है। इसी के साथ जिस जगह राम जन्म भूमि थी उस जगह मस्जिद का निर्माण किया गया था, उसी किताब में ये भी लिखा गया है कि कुछ लोग कहते हैं कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने किया है।

1838 का ब्रिटिश सर्वे

अयोध्या विवाद को मन्दिर-मस्जिद का पूरी दुनिया का सबसे बड़ा विवाद भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। साल 1838 में ब्रिटिश सर्वे करने वाले मार्टिन ने एक रिपोर्ट पेश की थी, इस रिपोर्ट में मार्टिन ने साफ़ तौर पर कहा था कि मस्जिद के पिलर मन्दिर से लिए गए थे। हालाँकि, इस रिपोर्ट पर बाद में काफी हंगामा भी हुआ था।

चलते हैं अयोध्या विवाद के दूसरे चरण में

साल 1857 को आज़ादी की पहली लड़ाई के तौर पर भी याद किया जाता है, लेकिन आपको बता दें कि अयोध्या मंदिर को लेकर लड़ाई भी साल 1857 में ही शुरू हुई थी। फिर से हम बी।बी।सी में दर्ज रिपोर्ट पर नजर घुमाते हैं, तो हमको पता चलता है, कि इसी साल हिंदू पुजारियों ने मस्जिद के बाहर एक चबूतरा बना लिया था, और उसी चबूतरे पर पूजा-पाठ की भी शुरुआत कर दी थी।

क्या था शिया-सुन्नी विवाद ?

मंदिर-मस्जिद विवाद के साथ अभी इस मामले में शिया और सुन्नी विवाद की भी एंट्री होनी बाकी थी। साल 1936 में मुसलमानों के दो समुदाय शिया और सुन्नी के बीच ही विवाद की शुरुआत हो गई थी। इस विवाद का मुख्य मुद्दा ये था मस्जिद आखिर है किसकी?

साल 1947 में देश आज़ाद हुआ और शुरुआत हुई तीसरे चरण की

सरकारी आंकड़ो के हिसाब से साल 1949 आता है, देश को आजाद हुए पूरे दो साल हो चुके हैं, नेहरु प्रधानमंत्री भी हैं, तब के उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे गोविंद वल्लभ पंत। दिसंबर का महीना आता है, ठंड की रूहानी शाम में अयोध्या में 9 दिनों का राम चरित मानस के पाठ का आयोजन होता है। आयोजनकर्ता थे अखिल भारतीय रामायण महासभा, अब एंट्री होती है गोरखनाथ मठ के संत दिग्विजय नाथ की, जब 22 और 23 दिसंबर की रात को मस्जिद के अंदर राम और सीता की मूर्ती को विराजमान कर दिया गया था, और इसी घटना को कहा गया था कि राम जी प्रकट हुए हैं।

क्या हुआ था 16 जनवरी 1950 को ?

गोपाल सिंह हिंदू महासभा के उस दौर के सदस्य  ने एक सिविल केस फाइल किया था, जिसमे उन्होंने मूर्तियों को ना हटाने और पूजा करने की इजाजत मांगी थी। फिर 1959 में निर्मोही अखाड़ा भी एक पक्षकार बनकर सामने आता है, और केस फाइल कर देता है।

साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के समीकरण

राजीव गांधी सियासतदार बनते हैं, एक बार फिर से अयोध्या का मुद्दा शिखर पकड़ता है, अब क्या होने वाला था? इसका अंदाजा किसी को भी नहीं था। मीडिया रिपोर्ट्स को पढ़िए तो पता चलता है कि कम अनुभव के कारण राजीव गाँधी को समझ नहीं आ रहा था कि अयोध्या के मामले पर कांग्रेस का क्या रुख होना चाहिए।

अब आता है शाहबानो केस

 भारत के इतिहास में ये एक ऐसी घटना थी जिसने कई समीकरण बदले थे, इस घटना ने अयोध्या विवाद में भी घी डालने का काम किया था। इस केस के बारे में हम फिर कभी बात करेंगे, लेकिन इसका असर अयोध्या मामले में कैसे पड़ा था, ये आपको बताते हैं। इंदौर की रहने वाली तलाकशुदा शाहबानो के हक में कोर्ट ने फैसला सुनाया था, ये फैसला गुजारा भत्ता को लेकर था। इस फैसले से मुस्लिम नेता खुश नहीं थे, उन्होंने कई फतवे जारी करते हुए राजीव गांधी पर दबाव बनाया कि वो संसद में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को विधेयक लाकर पलट दें। फिर राजीव गांधी ने इस फैसले को संसंद में पलट दिया था।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार ताला खुलने के बाद ही फैजाबाद की आदालत ने वहां पूजा की इजाजत भी दे दी थी। इससे पहले जो पूजा एक पुजारी उस परिसर में साल में एक बार करता था, अब रोज हो सकती थी, और नमाज वहां नहीं पढ़ी जा रही थी। इसका सीधा फायदा उठाया विश्व हिंदू परिषद ने, कोर्ट के अंदर नहीं बल्कि कोर्ट के बाहर, राम लला को आजाद करो, इस तरह के आंदोलन की शुरुआत भी हो चुकी थी।

फिर बन रहा था राजीव गांधी पर दबाव

एक बार फिर से राजीव गांधी पर विश्व हिंदू परिषद और बहुसंख्यक समुदाय ने शिलान्यास करने का दबाव बनाया, राजीव गांधी भी असमंजस में थे, उन्होंने भी शिलान्यास की इजाजत दे दी, साल था 1989, महीना था नवम्बर, यही वक्त तय हुआ था शिलान्यास का, ये पूरा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन।डी तिवारी ने तमाम मीडिया हाउस को बताया है।

 लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा

कुलदीप नय्यर की किताब के अनुसार प्रधानमंत्री वी।पी सिंह ने जब मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू की तो भाजपा के पास अयोध्या मामला ही हांथ में बचा था, तब आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा का एलान किया, 25 सितंबर 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा शुरू भी हो गई।

इस यात्रा को 6 हफ्तों में अयोध्या पहुंचना था, विश्व हिंदू परिषद भी साथ में ही था, यात्रा के साथ साम्प्रदायिक तनाव भी बढ़ता ही जा रहा था।

लालू प्रसाद यादव ने रथ यात्रा को बिहार में रोका

आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर का माहौल बनाते हुए, ये रथ यात्रा शहर दर शहर आगे बढ़ती जा रही थी, तभी लालू प्रसाद यादव ने ये कह दिया था कि वो यात्रा को बिहार से आगे नहीं जाने देंगे, उन्होंने यात्रा को बिहार पहुँचते ही रोक दिया था। 30 अक्टूबर का दिन था लाखों कार सेवक अयोध्या पहुंचे, मुलायम सिंह यादव ने कई कड़े प्रयास भी किए, पर वो विफल रहे, लाठी- गोली भी चली, लेकिन कार सेवक मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ ही गए थे। मुलायम सरकार ने कार सेवकों पर गोली भी चलवा दी थी, जिसमे सरकारी आंकड़े के अनुसार 16 लोगों की मौत भी हुई थी। सरयू नदी लाल हो चुकी थी, साल 1991 में प्रशासन ने बाबरी को बचा लिया था, लेकिन फिर चुनाव हुए, मुलायम सिंह की पार्टी अबकी बार हार चुकी थी।

कल्याण सिंह की सरकार और बाबरी मस्जिद  

साल 1991 में केंद्र में नरसिम्हा राव के नेत्रत्व में कांग्रेस की सरकार थी, राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी, साल 1992 में अयोध्या के प्रदेश उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बन चुके थे।

इन सबके बीच विश्व हिंदू परिषद ने 6 दिसंबर 1992 को विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण का एलान भी कर दिया था, फिर से लाखों कार सेवक अयोध्या की तरफ बढ़ चुके थे।

‘इंडिया आफ़्टर गांधी’ में लिखा गया है कि कल्याण सिंह ने ये एलान कर दिया था कि कार सेवकों का स्वागत सरकारी खर्चे में किया जाएगा।

इसके साथ ही गृह मंत्रालय ने 20,000 सैनिकों को अयोध्या की तरफ तलब कर दिया था। अजीब बात ये है कि सैनिक शहर से करीब कुछ किलोमीटर की दूरी पर थे, और लाखों कार सेवक अयोध्या पहुंच चुके थे। मतलब साफ़ था स्क्रिप्ट तैयार थी और फिल्म शुरू होने वाली थी।

6 दिसंबर 1992

मंदिर वहीं बनायेंगे, एक धक्का और दो, इस तरह के वाक्त्व्य से अयोध्या नगरी गूँज रही थी। भाजपा के नेता- लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल सभी लोग मौजूद थे, लेकिन सैनिक एक घंटे की दूरी में थे। उसके बाद जो हुआ, वो सब इतिहास में दर्ज हो चुका है। 49 लोगों के खिलाफ मुकदमे भी चल रहे हैं, जिसमे से आधे लोग अपनी जिंदगी जीकर ऊपर जा चुके हैं।

सरांश

उस घटना के बाद देश भर में दंगे हुए, इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार करीब 2000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, सियासत हुई, सियासतदार बदले, लेकिन पिस गया आम इंसान। अब उम्मीद यही है कि शायद महात्मा गांधी के ‘राम राज्य’ की स्थापना हो ही जाए।