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व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने की कला सिखाती हैं डेल कार्नेगी की किताब “अच्छा बोलने की कला और कामयाबी”

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संत कबीर का एक दोहा है…. ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए। मतलब हर इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए, जो ना सिर्फ सुनने वालों को आनंदित करे बल्कि उससे खुद के मन को भी खुशी का अनुभव हो। मीठा बोलने से ही व्यक्ति एक-दूसरे के प्रति प्यार और आदर का भाव रखता है। कुछ ऐसी ही बातें सिखाती है किताब “अच्छा बोलने की कला और कामयाबी”।

डेल कार्नेगी की लिखी किताब “अच्छा बोलने की कला और कामयाबी” हमें मीठा और सहज बोलने की कला सिखाती है। हमारी बोली ही हमारे व्यक्तित्व का आइना होती है। ये तो हम सब जानते हैं कि आइना कभी झूठ नहीं बोलता यानी सही मायनों में हमारी बोली और हमारी भाषा ही दूसरे लोगों के सामने हमारे व्यक्तित्व को पेश करती है।

आप किसी भी फील्ड से हों या कितने भी बड़े पोस्ट पर क्यों ना हों… अगर आपकी बोलचाल में नम्रता नहीं होगी तो लोग आपसे दूरी बना के रखेंगे। यदि आपकी भाषा में मधुरता होगी तो लोग आपको सालों तक याद रखेंगे और आपसे मिलने की भी इच्छा रखेंगे। काफी हद तक हमारी कामयाबी हमारे बोलने की कला पर भी निर्भर करती है। सिर्फ यही नहीं, अगर आपके बोल अच्छे और सहज होंगे तो आपकी कामयाबी भी लम्बे वक्त तक टिकेगी। वैसे कामयाब के मुकाम तक तो कई लोग पहुंच जाता हैं लेकिन ऐसे कम ही लोग होते हैं जो कामयाबी के साथ लंबा सफर तय कर पाते हैं। अच्छा बोलने की कला और कामयाबी से जुड़े कई तथ्यों से आपका परिचय कराती है डेल कार्नेगी की लिखी ये किताब “अच्छा बोलने की कला और कामयाबी”।

असफलताओं से सफलता को प्राप्त करें। निराशा और असफलता, सफलता की सीढ़ी के दो सोपन हैं…  डेल हैरिसन कार्नेगी

निराशा और असफलता को कामयाबी के दो आधारस्तंभ बताने वाले डेल कार्नेगी का जन्म अमेरिका के एक गरीब किसान के घर 24 नवंबर 1888 को हुआ था। डेल मुख्य रूप से एक लेखक, बिजनेसमैन और प्रखर वक्ता थे। डेल कार्नेगी कहते थे- “इस दुनिया में सिर्फ एक तरीका है, जिससे आप किसी से कोई काम करवा सकते हैं। सिर्फ एक तरीका और वह तरीका है, उस व्यक्ति में वह काम करने की इच्छा पैदा करना। याद रखें इसके अलावा कोई और दूसरा तरीका नहीं है।”

डेल कार्नेगी की सबसे लोकप्रिय पुस्तक “हाउ टू विन फ्रेंड्स एंड इनफ्लुएंस पीपल” को 1936 में बेस्ट सेलर का अवार्ड मिला था। 1 नवंबर 1955 में होडकिंग की बीमारी की वजह से उनकी मृत्यु हो गई।

जीवन को मधुर बनाने का एक प्रयास है… अच्छा बोलने की कला और कामयाबी

अपने विचारों को तो हर कोई प्रस्तुत कर लेता है लेकिन किस तरह से प्रस्तुत करता है, यह बात सबसे ज्यादा मायने रखती है। हम किसी इंसान से बात कर रहे हों या किसी सार्वजनिक मंच पर अपनी बात रख रहे हों, तो सबसे महत्वपूर्ण बात होती है कि हम अपनी बात को किस लहजे और किस अंदाज में रख रहे हैं। बातचीत करते वक्त हमें शैली के साथ साथ शब्दों के उतार चढ़ाव पर भी बेहद ध्यान देना चाहिए। हमें कब, किस शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए, यह सबसे जरूरी बात होती है।

“अच्छा बोलने की कला और कामयाबी” पुस्तक हमें भाषा के सभी सिद्धातों के बारे में बताती हैं। भाषा प्रशिक्षण में सबसे मुख्य बात स्वंय का विकास होता है यानी आपका अपनी भावनाओं और विचारों पर काबू पाना। जब जिस बात को बोलना हो या जितना बोलना हो, उतना ही बोला जाए। उससे अधिक बोलने का कोई औचित्य नहीं होता है। हर इंसान के भीतर दो तरह के व्यक्तित्व होते हैं- बाहरी व्यक्तित्व और आंतरिक व्यक्तित्व। इन दोनों का बोध होना बहुत जरूरी है। जब तक आपके बाहरी और आंतरिक व्यक्तित्व का मेल नहीं होगा तब तक आप अपनी बात को सटीक तरीके से प्रस्तुत नहीं कर सकेंगे।

सबसे पहले तो खुद को जानो। फिर अपने में क्या कमी है, उसे स्वीकार करो। फिर उस कमी को दूर करने के लिए आगे बढ़ो।

“अच्छा बोलने की कला और कामयाबी” पुस्तक हमें यह भी सिखाती है कि हम खुद अपनी गलतियों को कैसे समझें, कैसे हम उन गलतियों को दूर करें और अपनी प्रतिभा को कैसे निखारे। साथ ही यह किताब हमें ये भी बताती है कि महान वक्ताओं में ऐसे कौन से गुण होते हैं जिन्हें सुनने के लिए हजारों लाखों की भीड़ इकट्ठी होती है। उन महान लोगों के गुणों पर गौर करते हुए, अपने व्यक्तित्व में कमी को ढूंढना और फिर उस कमी को दूर करना भी ये पुस्तक हमें बताती है। कुल मिलाकर देखें तो यह किताब किसी सामान्य इंसान से एक कामयाब शख्श बनने के सभी सिद्धांतों से पर्दा हटाती नजर आती है।

डेल कार्नेगी की किताब बताती है कि किसी भी काम को अगर निरंतर अभ्यास के साथ किया जाए तो वह एक ना एक दिन निखर ही जाता है। एक कुशल वक्ता बनने के लिए निरंतर अभ्यास की दरकार होती है। आप अभ्यास करते रहेंगे तो एक न एक दिन आप कुशल वक्ता बन ही जाएंगे। उसके बाद आप कभी भी कहीं भी अपनी बात स्पष्ट रूप से रख सकेंगे। एक सिंगर हो, एक शायर हो, कवि हो या फिर एक वक्ता हो…. कोई भी अपने बोलने की शैली को एक बेहतरीन अंदाज देना चाहेगा ताकि उसे ज्यादा से ज्यादा लोग सुन सकें या सुनने की इच्छा रखें।

अगर आप अपना मन बना ले, तो किसी भी डर पर विजय हासिल कर सकते हो। याद रखें… डर का अस्तित्व केवल आपके दिमाग (मन) में होता है।

हम अक्सर अपनी हिचकिचाहट की वजह से या डर की वजह से लोगों के सामने बोलने से कतराते हैं। यह किताब हमारे इसी डर को दूर करने में हमारी मदद करती है। हम अपने डर पर जीत हासिल कर लें तो एक अच्छा वक्ता बनने से हमें कोई नहीं रोक सकता है और तब निश्चित तौर पर हमारे व्यक्तित्व में निखार भी आएगा।

डेल कार्नेगी अपनी पुस्तक “अच्छा बोलने की कला और कामयाबी” में बताते हैं कि प्रखर वक्ता किसी सामान्य व्यक्ति के मुकाबले सफल होने की अधिक संभावना रखता है। बातचीत करना भाषण की कला सीखने का सबसे पहला सिद्धांत है। सबसे पहले स्वर और अंदाज पर ध्यान देने की जरूरत होती है। हम किस विचार को किस स्वर और किस अंदाज में बोल रहे हैं, वही प्रभावपूर्ण छाप छोड़ता है।

इस पुस्तक को लेखक की सदाबहार और सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली किताब माना जाता है। इस पुस्तक से सबक लेकर कोई भी आम आदमी एंकरिंग के क्षेत्र में कामयाबी के शिखर तक पहुंच सकता है।

अच्छे से तैयार वक्ता ही आत्मविश्वास का पात्र होता है

“अच्छा बोलने की कला और कामयाबी” हमें बताती है कि अगर हम अच्छे वक्ता हैं… तो अपने विचारों को स्पष्ट रूप से दूसरों के सामने प्रस्तुत कर सकते हैं, जिससे हमारा आत्मविश्वास भी मजबूत बना रहता है। अच्छे वक्ता बनने के लिए किसी इंसान को निरंतर वाद-विवाद में हिस्सा लेना चाहिए, ताकि वह अपनी प्रतिभा का आकलन कर सके और साथ ही दर्शकों की आलोचना से अपने गुण को निखारने का भरसक प्रयास भी कर सके।

“लोग आपके बारे में क्या कहते हैं इस बारे में चिंता करने के बजाय, क्यों ना कुछ ऐसा करने की कोशिश में समय बिताए, जिसकी वे प्रशंसा करें

डेल कार्नेगी ने अपनी पुस्तक “अच्छा बोलने की कला और कामयाबी” में मूल रूप से यही बताने का प्रयास किया है कि व्यक्ति को अपने डर पर विजय प्राप्त करने के लिए निरन्तर कोशिश करते रहना चाहिए। अपनी कमी को स्वीकार कर, उस कमी को दूर करने के लिए लगातार अभ्यास करना चाहिए। अपनी भावनाओं और विचारों पर काबू पाना चाहिए। साथ ही इस किताब में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि एक बेहतर वक्ता दूसरे इंसानों के मुकाबले कामयाबी की सीढ़ियां जल्दी चढ़ता है। इस पुस्तक के द्वारा लेखक ने सौ बात की एक बात कहते हुए कहा है-  

सफल आदमी अपनी गलतियों से लाभ उठाएगा, फिर से एक अलग तरीके से कोशिश करेगा।