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6 सितंबर 2018: सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि समलैंगिकता अपराध नहीं है

History of September 6 – सितंबर 6, 2018 ये तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है। अगर आपको अभी भी याद नहीं आ रहा है कि क्यों 6 सितंबर 2018 इतिहास के तौर पर याद की जाएगी? तो फिर आपको याद करना चाहिए देश के मेट्रो सिटी से लेकर हर उस गली और नुक्कड़ को जहाँ एलजीबीटी समुदाय के लोग अपनी प्रमारिक्ता के लिए 24 सालों से जूझ रहे थे।

6 सितंबर 2018 को भारत की सर्वोच्च अदालत ने एक फैसला सुनाया था। इस फैसले में उन्होंने समलैंगिक संबंध (homosexuality in India) को अपराध मानने से इंकार कर दिया था। साथ ही साथ समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से हटा भी दिया था।

आज के दौर के भारत में अब अगर दो वयस्क आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।

इस लेख के मुख्य बिंदु-

पहले आईपीसी की धारा 377 (Section 377 of IPC) में क्या था?

साल 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय ने हाइकोर्ट के फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में डाल दिया था।

धारा 377 के अनुसार “कोई भी व्यक्ति अगर महिला, पुरुष या जानवर के साथ आप्रकृतिक संबंध बनाता है तो उसे अपराधी माना जायेगा, और इस कृत्य के लिए उसे 10 साल तक की सज़ा भी हो सकती थी। इसके साथ ही इसे गैर जमानती अपराध माना जाता था।”

सर्वोच्च न्यायालय के संवैधानिक पीठ में कौन-कौन था शामिल?

ये फैसला इतना अहम क्यों है?

फैसले का महत्व उसी को पता चलता है।। जिसने उसके लिए संघर्ष किया होता है। इसीलिए इस सवाल का भी सटीक जवाब वही दे पाएगा जिन्होंने इस कदम के लिए संघर्ष किया था।

गे कपल समीर समरुद्धा और अमित गोखले ने पहले साल 2010 में शादी की थी। फिर इन्होंने साल 2014 में जब अमेरिका में एलजीबीटी शादियों को मान्यता मिली तब दोबारा शादी की थी। 

इस फैसले के बाद इन्होंने बीबीसी से बात करते हुए कहा है कि ” इस फैसले के बाद हम अपनी खुशी आपको बता नहीं सकते, हमें इससे पहले भारत में लगता था जैसे हम कोई अपराध कर रहे हों, हमारे अंदर अपराधी का बोध आता था लेकिन इस फैसले के बाद अब हमको हमारा अधिकार मिल गया है। अब हमको लग रहा है कि हम सच में एक नागरिक हैं। अगर आप हमसे पूछते हैं कि हमें कैसा लग रहा है तो इसको हम बस इसी तरह बयां कर सकते हैं कि जैसा 1947 की आजादी के बाद देशवासियों को लग रहा था आज हमें ठीक वैसा ही लग रहा है।”

साल 2018 में आए इस फैसले के बाद एक यक्ष सवाल सामने खड़ा था कि क्या समलैंगिकों को अब शादी का अधिकार मिलेगा?

सर्वोच्च अदालत में याचिकाकर्ता के वकील ने बीबीसी से बात करते हुए बताया है कि “6 सितंबर 2018 (History of September 6) को सर्वोच्च अदालत ने बहुत ही ज्यादा सराहनीय फैसला सुनाया है। लेकिन इस फैसले के बाद भी ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है कि इस समुदाय के लोगों को शादी का अधिकार मिल जाएगा।”

याचिकाकर्ता के वकील आगे कहते हैं कि “भारत में अभी ऐसा कोई कानून ही नहीं है। अगर ये लोग किसी और भी देश में शादी करके आते हैं। तब भी इनकी शादी को यहां मान्यता मिलेगी या नहीं इस पर सवाल आज भी खड़े हैं।”

आखिर कैसे मिलेगा समलैंगिक (homosexuality in India) को शादी का अधिकार?

भारत में समलैंगिक समुदाय को शादी का अधिकार तभी मिल सकता है जब नया कानून संसद में पेश किया जाए। कोर्ट सरकार को कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकती है।

धारा 377 (Section 377 of IPC) को कब कोर्ट में पहली बार चुनौती दी गई थी?

आज से 26 साल पहले 1994 में पहली बार धारा 377 (Section 377 of IPC) को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसके 24 साल बाद 6 सितंबर 2018 को 5 जजों की खंडपीठ ने अंतिम फैसला दिया था।

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सारांश

आपको बता दें किस धारा 377 के विरोध में सुप्रीम कोर्ट के अंदर 30 से ज्यादा याचिकाएं डाली गईं थीं। इसके खिलाफ सबसे पहली याचिका नाज़ फाउंडेशन ने डाली थी। नाज़ आज फाउंडेशन ने धारा 377 के खिलाफ अपनी याचिका साल 2001 में डाली थी। इन याचिकाओं के बीच कई बार यह सवाल उभर कर सामने आया है। लोगों के मन में यह सवाल था कि क्या समलैंगिकता वाकई में कोई बीमारी है?

 ‘इंडियन साइकैट्री सोसायटी’ ने एक आधिकारिक बयान में कहा था कि समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है। अब हमको ऐसी सोच से भी बाहर आना चाहिए। “इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी” ने एक वीडियो जारी करके कहा कि पिछले 40-50 सालों में किए गए रिसर्च में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे समलैंगिकता को बीमारी कहा जाए।