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भारत के संविधान में महिलाओं के लिए 5 महत्त्वपूर्ण कानून

भारत में ऐसे तो औरतों को लक्ष्मी और दुर्गा की तरह पूजा जाता है और नवरात्री में लड़कियों की पूजा की जाती है इसके बावजूद भी प्राचीनत्व से औरतों पर बहुत अत्याचार और दुर्व्यवहार होते आ रहे हैं और आज भी बिना किसी रोक के यह चल रहा है|इसलिए इसे रोकने के लिए देश के सविधान ने औरतों के लिए बहुत सरे कानून बनाये हैं | आज हम उनमें से कुछ कानूनों पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे जो कि निम्नलिखित हैं :

संपत्ति पर हक:

कानून के जानकार बताते हैं कि सीआरपीसी, हिंदू मैरिज ऐक्ट, हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटिनेंस ऐक्ट और घरेलू हिंसा कानून के तहत निर्वाह व्यय की मांग की जा सकती है। अगर पति ने कोई वसीयत बनाई है तो उसके मरने के बाद उसकी पत्नी को वसीयत के मुताबिक संपत्ति में हिस्सा मिलता है। लेकिन पति अपनी खुद की अर्जित संपत्ति की ही वसीयत बना सकता है।

 घरेलू हिंसा से सुरक्षा

महिलाओं को अपने पिता के घर या फिर अपने पति के घर सुरक्षित रखने के लिए डीवी ऐक्ट (डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट) का प्रावधान किया गया है। महिला का कोई भी डोमेस्टिक रिलेटिव इस कानून के दायरे में आता है।

लिवइन रिलेशन में भी डीवी ऐक्ट:

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट के तहत प्रोटेक्शन मिला हुआ है। डीवी ऐक्ट के प्रावधानों के तहत उन्हें मुआवजा आदि मिल सकता है। कानूनी जानकारों के मुताबिक लिव-इन रिलेशनशिप के लिए देश में नियम तय किए गए हैं। ऐसे रिश्ते में रहने वाले लोगों को कुछ कानूनी अधिकार मिले हुए हैं।

सेक्शुअल हैरेसमेंट से प्रोटेक्शन:

सेक्शुअल हैरेसमेंट, छेड़छाड़ या फिर रेप जैसे वारदातों के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। महिलाओं के खिलाफ इस तरह के घिनौने अपराध करने वालों को सख्त सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है। आईपीसी की धारा-375 के तहत रेप के दायरे में प्राइवेट पार्ट या फिर ओरल सेक्स दोनों को ही रेप माना गया है।

वर्क प्लेस पर प्रोटेक्शन:

वर्क प्लेस पर भी महिलाओं को तमाम तरह के अधिकार मिल हुए हैं। सेक्शुअल हैरेसमेंट से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में विशाखा जजमेंट के तहत गाइडलाइंस तय की थीं। इसके तहत महिलाओं को प्रोटेक्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की यह गाइडलाइंस तमाम सरकारी व प्राइवेट दफ्तरों में लागू है। इसके तहत एंप्लॉयर की जिम्मेदारी है कि वह गुनहगार के खिलाफ कार्रवाई करे। सुप्रीम कोर्ट ने 12 गाइडलाइंस बनाई हैं। मालिक या अन्य जिम्मेदार अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह सेक्शुअल हैरेसमेंट को रोके।