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Karsaz Bombing Attack: जब बेनज़ीर भुट्टो का हुआ था ‘खूनी इस्तक़बाल’

तारीख की सुइयों के साथ आपको साल 2007 में लेकर चलते हैं। साल 2007 की दरमियानी रात थी और तारीख थी 26 और 27 दिसम्बर की, घड़ी टक-टक चलती हुई आधी रात को बिता चुकी थी। तभी करीब रात के 1।30 बजे बेनज़ीर भुट्टो (Benazir Bhutto) के घर की घंटी बजती है। दरवाज़े के उस तरफ थे ISI प्रमुख मेजर जनरल नदीम ताज जो कि बेनज़ीरभुट्टो (Benazir Bhutto) से मिलने आए थे।

मिलने की वजह काफी डराने वाली थी। उस समय ISI प्रमुख मेजर जनरल नदीम ताज के साथ बेनज़ीरके सुरक्षा सलाहकार रहमान मलिक भी थे। अब आते हैं मिलने की वजह के ऊपर, मेजर जनरल नदीम ताज को ख़ुफ़िया एजेंसी की तरफ से खबर मिली थी कि बेनज़ीरभुट्टो (Benazir Bhutto) के ऊपर जानलेवा हमला हो सकता है।

रावलपिंडी के मशहूर लियाकत बाग़ में बेनज़ीर भुट्टो (Benazir Bhutto) की रैली थी। अंदेशा यही था कि इसी रैली के दौरान बेनज़ीरके ऊपर आतंकवादी हमला होगा। इस बात के इनपुट सऊदी और UAE की तरफ से भी आए हुए थे। ISI  प्रमुख मेजर जनरल नदीम ताज ने बेनज़ीरभुट्टो को अपनी रैली को टाल देने की सलाह भी दी थी। लेकिन बेनज़ीरने उनकी बात को नकार दिया था।

इस लेख के मुख्य बिंदु-

आज आप इस लेख में कराची में हुए उसी 18 अक्टूबर के हमले के बारे में पढ़ने वाले हैं जिसमे बेनज़ीरतो बच गयीं थीं। लेकिन 180 से ज्यादा लोगों की जान गई थी।

18 अक्टूबर 2007 के उस हमले को Karsaz bomb blasts के नाम से भी जाना जाता  है।

क्या है 2007 Karsaz bombing attack?

कैसे दिया गया था बेनज़ीर भुट्टो के काफिले के ऊपर हुए Karsaz bombing attack को अंजाम?

इस कहानी की शुरुआत होती है 18 अक्टूबर 2007 से, जब कराची की सड़कों पर लोगों का हुजूम लग चुका था। BBC की रिपोर्ट के अनुसार करीब  2 लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा हो चुके थे।

तालिबान के वजीरिस्तान के कमांडर ने बेनज़ीर भुट्टो को मारने की दे दी थी धमकी

बेनज़ीर भुट्टो का खून से हुआ था स्वागत

सरांश

19 अक्टूबर 2007 के अखबार बेनज़ीर के खूनी स्वागत से रंगे हुए थे। इस घटना ने एक बार फिर से पाकिस्तान को आतंकी देश के रूप में दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया था। बता दें कि उस हमले में ‘बेनज़ीर जाबाज़’ के भी 50 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान से हाँथ धोया था। 8 साल बाद अपने मुल्क में वापसी कर रही बेनज़ीर को इस तरह के स्वागत की उम्मीद तो नहीं थी। लेकिन उन्होंने पहले भी ये सब देखा था। उन्होंने जनरल ज़िया-उल-हक़ का काला दौर भी देखा था।

उन्हें साल 1978 का फौजी तख्तापलट भी याद था। उन्हें ये भी याद था कि कैसे उनके पिता के भरोसेमंद जनरल जिया उल हक़ ने रातों-रात सियासत पर कब्जा कर लिया था।

इसी के साथ बेनज़ीर भुट्टो को 4 अक्टूबर 1979 भी याद था जब ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकाया गया था। उस समय 26 साल की बेनज़ीर के पास बस बेबसी के आंसू थे और कुछ भी नहीं।