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भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुनजीर्वित करने वाला साबित हुआ 1975 का आपातकाल



बरबाद गुलिस्तां करने को एक उल्लू ही काफी है। जहां हर डाल पे उल्लू बैठा हो अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा? गुजरे जमाने के मशहूर शायर रियासत हुसैन रिजवी उर्फ शौक बहराइची की यह शायरी देश में 1973 की शुरुआत के दौरान उपजीं परिस्थितियों पर एकदम सटीक बैठ रही थीं। वह इसलिए कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस वक्त से ही ऐसी गिरावट आनी शुरू हो गई थी कि असंतोष देश में पनपने लगा था। महंगाई चरम पर थी। आर्थिक स्थिति गिरती जा रही थी। बेरोजगारी पांव पसार रही थी। खाघ संकट बढ़ता जा रहा था। जनता का धैर्य आखिरकार जवाब दे गया। हर ओर जुलूस, हड़ताल होने लगे। कानून-व्यवस्था की स्थिति चरमराई तो 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा State of Internal Emergency in India की घोषणा कर दी गई, जिसे कि भारतीय इतिहास में काला अध्याय के तौर पर जाना गया।

इस लेख में आप जानेंगे:

कब और कैसे लगा देश में आपातकाल?

ये हुआ था आज से 45 साल पहले। साल 1975 की 25-26 जून के दरम्यान की वह रात थी। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की ओर से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर 21 मार्च, 1977 तक यानी कि 21 माह के लिए देशभर में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा कर दी गई। आजाद भारत में लिया गया यह तब तक का सबसे विवादास्पद ही बल्कि सबसे अलोकतांत्रिक फैसला भी था। न केवल इस दौरान चुनाव स्थगित कर दिये गये, बल्कि भारतीय संविधान में प्रदत्त मूल अधिकारों से भी इस देश के नागरिक वंचित कर दिये गये थे।

लिये चलते हैं आपको आपातकाल की जड़ तक

State of Internal Emergency in India: जनता पर क्या हुआ असर?

1975 Emergency के विरोध में लहर

इमरजेंसी का क्या निकला परिणाम?

निष्कर्ष

State of Internal Emergency in India के दौरान शासन व्यवस्था का स्वरूप जैसा भी रहा, मगर आपातकाल के बाद के चुनाव में जितनी बड़ी तादाद में आमजनों ने हिस्सा लिया और विपक्ष की जीत हुई, भारतीय लोकतंत्र की वह एक ऐतिहासिक उपलब्धि रही और लोकतांत्रिक व्यवस्था को इसने देश में पुनजीर्वित कर दिया।