भारत का स्वर्ण काल – गुप्त युग

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ई.पू. 185 के प्राचीन काल में जब मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ तब पूरे भारत में बहुत से छोटे छोटे राज्यों का निर्माण हुआ । इसके बाद करीब 500 सालों तक यह राज्य एक दुसरे से लड़ते रहे । सन् 320 में उत्तर भारत में चंद्रगुप्त नाम के राजा ने अपना राज्य स्थापित किया । इस राजा ने दूरंदेशी दिखाते हुए मौर्य साम्राज्य की बहुत सी अच्छी चीजों को अपनाया और अपनी अगली पीढ़ी के लिए एक अच्छा उदाहरण पेश किया । इसी राजा की पीढ़ी के राज्य काल को गुप्त युग के नाम से जाना जाता है । इस काल में भारत ने बहुत से महान राजा, जैसे की समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त-2 का शासन देखा । सभी गुप्त राजा रचनात्मकता, कला और साहित्य के विकास को बढ़ावा देते थे ।

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समुद्रगुप्त की विजयगाथा

समुद्रगुप्त (सन् 335-380) एक महान योद्धा थे और जीत उनका जुनून था । उन्होंने पूरे भारत पर अपना परचम फहराया और एक संयुक्त राज्य की स्थापना की। बहुत से राजाओं ने दया की आशा में अपने हथियार समुद्रगुप्त के सामने युद्ध से पहले ही डाल दिए थे । समुद्र्गुप्त ने उत्तर भारत में 9 और दक्षिण भारत में 12 राजाओं को हराया था । इन युद्ध में केवल मनुष्य ही नहीं परंतु बहुत सारे घोड़ों का भी संहार किया गया था!

समुद्रगुप्त के काल में राज्य का व्याप इतना बड़ा हो चुका था की इस राजा की तुलना महान एलेक्जेंडर और नेपोलियन के साथ की जाती थी। उसकी फ़ौज स्थानीय दस्तों से बनी थी। हर दस्ता एक हाथी, एक रथ, तीन बंदूक धारी सैनिक और पांच लोगों की फ़ौज से बना था । युध्ध क समय यह सभी दस्ते एक होकर बड़ी सेना का निर्माण करते थे।जब युद्ध नहीं होता था तब हाय दस्ते गो और शेहरो की रक्षा करते थे ।

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गुप्त साम्राज्य की उपलब्धियां

समुद्रगुप्त केवल एक युद्ध के द्वारा शासन छिन ने वाले राजा नहीं थे। वह कला में भी रूचि रखते थे। उनके समय के कलात्मक सिक्के और स्तंभ उनके कला के प्रति सम्मान और प्रतिपालन दर्शाते है। उन्हों ने अपनी अगली पीढ़ी के लिए एक शुरुआत की जिसको चंद्रगुप्त-2 ने आगे बढ़ाया।

चंद्रगुप्त-2 (सन् 380-415) कलाकारों का सन्मान करते थे। उन्होंने ही कलाकारों को वेतन देना शुरू किया था जो की उस समय में दुर्लभ था। इसी कारण चन्द्रगुप्त-2 के समय को कला के लिए सुवर्ण युग कहा जाता है ।

गुप्त युग में कई प्रसिद्ध कविताओं और नाटकों का लेखन हुआ। इसी समय में इतिहास, धार्मिक साहित्य और आध्यात्मिकता के विषयों पर ग्रंथ लिखे गए जो आज भी लोगों को जानकारियाँ देते है । व्याकरण, गणित, औषधि और खगोल विद्या पर लिखे निबंध लिखे गए जिसके आधार पर आज भी कई पुस्तकें लिखी जाति है। इस समय का सबसे प्रसिद्ध निबंध है “कामसूत्र” जो हिंदू कायदों के अनुसार, प्रेम और शादी के नियमों को दर्शाता है!

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उस समय के विद्वान कालिदास और आर्यभट्ट को कौन नहीं जानता? कालिदास की रचनाओं ने नाटकों को एक अलग ऊँचाईयों तक पहुंचाया। आर्यभट्ट ने अपने समय से कहीं आगे निकलकर यह बताया की पृथ्वी गोल घुमने वाला एक गोला है! उन्होंने साल के दिनों (पृथ्वी को सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाने में लगने वाला समय) की गणना भी की जो आधुनिक साधनों के बिना लगभग असंभव माना जाता था।

इसी युग के दौरान कई सारे चित्रों, मूर्तियाँ और वास्तु कला का भी निर्माण हुआ। उनका एक आदर्श उदाहरण है अजन्ता की गुफाओं में पाए जाने वाले चित्र।

हालांकि गुप्त वंश हिंदू धर्म का पालन करता था, लेकीन उनके शासन में धर्मनिरपेक्षता देखि जा सकती थी। उन्हीं के समय में प्रसिद्ध बुध्ध विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी।

सन् 480 में हुण लोगो के हमले के बाद इस साम्राज्य का कमज़ोर होना शूरु हुआ । सिर्फ 20 सालों में गुप्त राजाओं ने अपनी बहुत सी संपत्ति और राज्य गँवा दिए। आखिर सन् 550 में इस साम्राज्य का अंत हुआ।

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