विश्व की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क

1466
world's highest motorable road

PLAYING x OF y
Track Name
00:00

00:00


31 अगस्त 2021 को लद्दाख से सांसद जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल ने लेह में विश्व की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क का उद्घाटन किया है। यह सड़क केवल अत्यधिक ऊंचाई में होने के कारण चर्चा में नहीं है अपितु इसका सम्बन्ध अत्यधिक संवेदनशील पैंगोंग झील से भी है और यही बात इसे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बनाती है। विश्व की सबसे ऊंची मोटर योग्य सड़क लेह को पैंगोंग झील के साथ जोड़ती है। आज के इस लेख में हम इस सड़क के बारे में विस्तार से जानेंगे , तो चलिए शुरू करते हैं आज का लेख विश्व की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क.

विश्व की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क

  • विश्व की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क का उद्घाटन समारोह केला टॉप पर आयोजित किया गया था। इस अवसर पर लेह के सांसद जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल, लेफ्टिनेंट जनरल पीजी के मेनन, जनरल ऑफिसर कमांडिंग 14वीं कॉर्प, ताशी नामग्याल याक्ज़ी (लेह पहाड़ी विकास परिषद के पार्षद) और स्टैनज़िन चोस्पेल आदि उपस्थित थे।
  • विश्व की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़क केंद्र शासित प्रदेश तथा भारत के सीमांत प्रदेश लद्दाख में 18,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह सड़क लेह से केला दर्रा पार करते हुए पैंगोंग झील तक जाती है।
  • यह सड़क लेह को पूर्वी लद्दाख से जोड़ती है तथा जिंगराल-केला त्सो-सरकुनचार-तांग्तसे के बीच लिंक बनाती है। इस परियोजना पर भारतीय सेना की 58 इंजीनियर रेजिमेंट द्वारा काम किया गया है।
  • भारतीय सेना की 58 इंजीनियर रेजिमेंट ने शक्ति ऑपरेशनल ट्रैक मिशन के तहत इस सड़क को तैयार किया है।
  • पैंगोंग झील एक पर्यटन का केंद्र है अभी तक लेह से पैंगोंग झील का सफर लगभग 223 किलोमीटर का था। यह मार्ग चांगला दर्रे से होते हुए गुजरता है।
  • जिंगराल-केला त्सो-सरकुनचार-तांग्तसे मार्ग के बन जाने से लेह से पैंगोंग झील की दूरी 41 किलोमीटर कम हो गयी है। चूँकि यह एक पहाड़ी रास्ता है अतः यह दूरी कम से कम सफर को 1-1.5 घंटे कम कर देगी।
  • यह सड़क भारत के लिए सामरिक एवं राजनैतिक दोनों रूप से महत्वपूर्ण है। ज्ञात हो पैंगोंग झील भारत और चीन के मध्य साल 2020 से विवाद का केंद्र रही है। इसी के चलते गलवान घाटी में दोनों देशों के मध्य ख़ूनी संघर्ष की घटना घटित हुई थी।
  • इसके अतिरिक्त यह सड़क लेह में पर्यटन, स्नो स्पोर्ट्स को भी बढ़ावा देगी। क्षेत्र में पायी जाने वाली दुर्लभ जड़ी बूटियां, पहाड़ी वन्य-जीव दर्शन तथा सुन्दर घाटियों में पहुंच को भी मजबूती प्रदान करेगी। यह सड़क लेह में आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करेगी।
  • सांसद जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल के अनुसार यह सड़क लद्दाख के लालोक क्षेत्र के लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बढ़ावा देने में एक प्रमुख भूमिका निभाएगी।
  • अभी तक विश्व की सबसे ऊँची सड़क खारदुंगला सड़क थी, जो लद्दाख के खारदुंगला दर्रे में 18,380 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह सड़क लेह को नुब्रा घाटी से जोड़ती है।

लेह

  • लेह केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी है। इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 11500 फ़ीट है, इस प्रकार से लेह भारत में सबसे ऊंचाई में स्थित किसी प्रदेश की राजधानी है।
  • सड़क द्वारा लेह तक पहुँचने के लिए कश्मीर- लेह Via नेशनल हाईवे -1 तथा लेह-मनाली Via नेशनल हाईवे -3 का उपयोग किया जाता है।
  • लेह में Kushok Bakula Rimpochee Airport भी है अतः हवाई जहाज द्वारा यहाँ पहुंचने के लिए नई दिल्ली या कश्मीर या जम्मू एयरपोर्ट से फ्लाइट ली जा सकती है।
  • लेह बौद्ध धर्म की आस्था का केंद्र है , यहाँ बौद्ध धर्म से सम्बंधित मठ हैं तथा ध्यान, शांति तथा चिकित्सीय और आध्यात्मिक क्रियाओं का भी लेह प्रमुख केंद्र है।
  • लेह में स्थित बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध मठ इस प्रकार से हैं – स्पितुक मठ,हेमिस मठ, शे मठ और पैलेस, थिक्सी मठ, लिकिर मठ, नामग्याल त्सेमो गोम्पा, झंगला मठ,जोंगखुल मठ, आल्ची मठ तथा डिस्किट मठ।
  • लेह दुनियाभर के सैलानियों के लिए साहसिक खेलों का केंद्र है। यहाँ पर बाइकिंग, रिवर राफ्टिंग, रॉक क्लाइम्बिंग , ट्रैकिंग आदि का लुफ्त उठाया जा सकता है।
  • लेह की दर्शनीय स्थलों की बात करें तो यहाँ शांति स्तूप, लेह पैलेस, नामग्याल त्सेमो गोम्पा, पत्थर साहिब गुरुद्वारा, चुंबकीय हिल्स और रोड तथा त्सो मोरीरी, त्सो कर झील हैं। इसके अतिरिक्त लेह में एशिया की सबसे ऊँची मौसमी वेधशाला (मेट्रोलॉजिकल ऑब्जर्वेटरी) भी स्थित है।

पैंगोंग झील या पांगोंग त्सो

  • तिब्बती भाषा में त्सो का अर्थ झील होता है। यह भारत में सबसे ऊंचाई में स्थित खारे पानी की झील है।
  • पैंगोंग झील विश्व में एक रमणीक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध थी। किन्तु भारत-चीन के सीमा विवाद के कारण अब यह वैश्विक मानचित्र में एक चर्चित स्थल के रूप में सामने आयी है।
  • पैंगोंग झील, भारत -चीन की नियंत्रण रेखा (LAC) के मध्य में स्थित है। यह समुद्रतल से लगभग 14000 फ़ीट की ऊंचाई पर 135 किलोमीटर लम्बी झील है।
  • इस झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में तथा 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन के भाग में पड़ता है। चूँकि यह झील खारे पानी की है तो इसमें किसी भी प्रकार के जलीय जीव नहीं पाए जाते हैं।
  • सर्दियों में यह झील जम जाती है , इस समय आइस स्पोर्ट के लिए यह स्थान सर्वोत्तम है। आइस स्केटिंग और पोलो यहाँ पर काफी खेला जाता है।
  • साल 1962 के भारत-चीन युद्ध में चीन ने भारत पर यहीं से आक्रमण किया था। भारतीय सेना ने भी चुशूल घाटी के दक्षिण-पूर्वी छोर के पहाड़ी दर्रे रेजांग ला से वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा था।
  • पैंगोंग झील के वास्तविक नियंत्रण रेखा पर होने के कारण अक्सर भारत और चीन के सैनिक आमने सामने आ जाते हैं। पैंगोंग झील के हॉट स्प्रिंग्स, गोग्रा और डेपसांग क्षेत्रों पर अक्सर भारत-चीन की तनातनी देखी जाती है।
  • पैंगोंग झील के उत्तरी छोर पर अँगुलियों के आकार की चोटियां हैं जिन्हे फिंगर पॉइंट्स के नाम से जाना जाता है। इनकी संख्या 8 है, दोनों देशों का इन पॉइंट्स में कब्जे को लेकर विवाद रहता है। चूँकि ये स्थान ऊँचे है अतः दोनों देश ऊँचे में रहकर अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं।
  • चीनी सैनिकों का अपने अधिकार क्षेत्र में पेट्रोलिंग के दौरान रवैया बहुत आक्रामक रहता है। उनकी उकसावे वाली हरकतों के कारण अक्सर नियंत्रण रेखा पर तनातनी की स्थिति बन जाती है।
  • भारत के लिए पैंगोंग झील का क्षेत्र बहुत मायने रखता है क्योकि पहले भी चीन इस मार्ग से आक्रमण कर चुका है तथा चीन के अक्साई चीन में जाने का मार्ग इसी क्षेत्र से पड़ता है।

चलते चलते

चीन की आक्रामकता एवं विस्तारवाद की नीति को देखते हुए भारत का पैंगोंग झील तक मोटरेबल सड़क का निर्माण बहुत मायने रखता है। मैं एक बात यहाँ साफ़ कर दू, ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि यह भारत कि पैंगोंग झील तक पहली सड़क है। भारत की इससे पहले भी यहाँ सड़क पहुँच चुकी है। भारत का यह कदम केवल पैंगोंग झील तक यातायात को सुगम एवं  आसान बनाने के लिए है। क्योकि चीन ने अपने अधिकार वाले क्षेत्र में सड़कों का जाल बनाकर उसे सेना की चहलकदमी के लिए सुगम बना दिया है। हम आशा करते हैं कि भारत और चीन के मध्य का सीमा विवाद शांति पूर्वक यथा शीघ्र सुलझ जाये जिसके लिए दोनों देश के सैन्य अधिकारी लगातार बैठकें कर रहे हैं। दोनों देश बौद्ध से सम्बन्ध रखते हैं तो दोनों देश शांति का मार्ग अपनाकर एक दूसरे के प्रभुत्व को स्वीकारते हुए वैश्विक जगत को एक सकारात्मक संदेश दे, इसी उम्मीद के साथ हम आज का अपना यह लेख यहीं समाप्त करते हैं। जय हिन्द !

Leave a Reply !!

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.