रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया – भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्व

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Reserve Bank Of India


ब्रिटिश सरकार द्वारा अपने प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए विभिन्न प्रकार के संस्थानों और कार्यालयों की स्थापना की थी। इन्हें में से एक था इंपीरियल बैंक जिसे ब्रिटिश सरकार के फाइनेंशियल मामलों की देखरेख करने के लिए 1935 में स्थापित किया गया था। कलकत्ता में मुख्य कार्यालय के रूप में इस बैंक का काम ब्रिटिश सरकार की ओर से सभी प्रकार के वित्तीय लेनदेन और अन्य कार्य करना था। लेकिन 1947 में भारत की आज़ादी के बाद इस प्राइवेट बैंक का राष्ट्रीयकरण करके इसे रिज़र्व बैंक का नाम दिया गया और इसकी पहचान भारत के मुख्य बैंक के रूप में स्थापित हो गई। बैंकों के बैंक के रूप में प्रसिद्ध रिज़र्व बैंक का आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्व इसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों से जाना जाता है।

रिज़र्व बैंक क्या करता है:

भारतीय रिज़र्व बैंक केन्द्रीय बैंक के रूप में विभिन्न प्रकार के कार्य करता है। इन कार्यों को उनकी प्रकृति के अनुसार निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता है:

पारंपरिक कार्य:

बैंक के पारंपरिक कार्यों में उन कामों को शामिल किया जाता है जिनके लिए उसकी स्थापना की जाती है और जो उसके समकक्ष बैंक विश्व के अन्य भागों में करते हैं। सरल शब्दों में इन्हें मूलभूत या आधारभूत कार्यों के रूप में जाना जा सकता है। ये कार्य इस प्रकार हैं:

1. करेंसी जारी करना:

देश में नागरिकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी या मुद्रा को केन्द्रीय बैंक के रूप में भारत में रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया जाता है। मुद्रा के नियामक के रूप में रिज़र्व बैंक न केवल करेंसी को जारी कर सकता है बल्कि ज़रूरी होने पर उन्हें बंद भी कर सकता है।

2. सरकार के बैंकर, एजेंट व वित्तीय सलाहकार:

रिज़र्व बैंक को भारत सरकार के बैंकर व सलाहकार के रूप में सरकार को समय-समय पर सलाह देना और एक एजेंट के रूप में सार्वजनिक ऋण की व्यवस्था व प्रबंध करता है। इनमें निम्न कार्य शामिल है:

1) सरकार की ओर से टैक्स वसूल करना और विभिन्न पक्षों को भुगतान करना;

2) सरकार की ओर से विभिन्न प्रकार की जमा या डिपोजिट्स स्वीकार करना;

3) विभिन्न पक्षों की ओर से चेक और ड्राफ्ट स्वीकार करके उन्हें सरकारी खातों में जमा करना;

4) सरकार को शॉर्ट-टर्म लोन उपलब्ध करवाना;

5) सरकार को विदेशी पूंजी संसाधन उपलब्ध करवाना;

6) विभिन्न सरकारी विभागों के खातों की देख-भाल करना;

7) सरकार की सुविधा को ध्यान में रखते हुए खजाने में विभिन्न मुद्रा कोशों को अलग-अलग स्थानों पर रखकर उनकी देखभाल करना;

8) सरकार को ऋण संबंधी कार्यक्रमों में विभिन्न प्रकार की सलाह देना;

9) केन्द्रीय सरकार का अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा फंड एकाउंट की व्यवस्था व प्रबंधन करना;

3. बैंकों का बैंक:

रिज़र्व बैंक, बैंकों का बैंक भी कहा जाता है। इस रूप में रिजर्व बैंक निम्न प्रकार के कार्य करता है:

1) प्रत्येक बैंक के लिए संवैधानिक रूप से रिज़र्व बैंक के पास एक निश्चित प्रतिशत में नकद रिज़र्व को रखना अनिवार्य होता है।

2) रिजर्व बैंकों के द्वारा सभी अधिसूचित बैंकों को उनके बिलों पर छूट देकर और उनकी जमा के आधार पर ऋण उपलब्ध करवाकर, सभी अधिसूचित बैंकों को वित्तीय सहायता भी उपलब्ध करवाता है।

3) बैंकिंग नियमन अधिनियम 1949 के अंतर्गत रिजर्व बैंक के पास सभी बैंकों को नियंत्रित करने के बृहद शक्तियाँ उपलब्ध हैं। इन शक्तियों के माध्यम से रिज़र्व बैंक, अन्य विभिन्न बैंकों को उनके लाइसेन्स उपलब्ध करवाना, शाखाओं का विस्तार करना, एकत्रीकरण, पुनर्निर्माण और बैंको का विलय या बैंकों का निरीक्षण करना आदि शामिल होता है।

4. विदेशी मुद्रा कोश का नियंत्रक:

देश में विदेशी मुद्रा के प्रवाह को निर्बाध रखने और विदेशी मुद्रा कोश को संतुलित करने के लिए विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय और विदेशी मुद्रा कोश के संरक्षक संबंधी कार्य भी करता है। इसमें निम्न कार्य शामिल हैं:

  1. विदेशी मुद्रा विनियम में संतुलन बनाए रखने के लिए, विदेशी मुद्रा की कमी को, अपने संग्रहीत कोश में से कुछ मुद्रा का विक्रय करके इसकी कम होने वाली पूर्ति की मात्रा को बढ़ा देना।
  2. अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा की पूर्ति के बढ़ जाने पर  उस अतिरिक्त मुद्रा का क्रय करना।

5. बैंकिंग लेन-देन, अंतरण और निपटारा करना:

भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा विभिन्न बैंकिंग लेन-देनों के निपटारे के लिए क्लियरिंग हाउस का काम भी करता है। इस कार्य के माध्यम से रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों के विभिन्न बैंकों के साथ परस्परिक लेन-देन का निपटारा सरलता से करता है।

इसके अतिरिक्त यदि किसी बैंक को फंड की जरूरत होती है तब भी रिज़र्व बैंक उसे उपलब्ध करवाता है।

6. साख नियंत्रक:

देश में आर्थिक विकास की गति व्यवस्थित रखने के साथ आंतरिक मूल्य स्थिरता को बनाए रखने के लिए रिज़र्व बैंक साख नियंत्रण का कार्य भी करता है। इसमें  रिज़र्व बैंक निम्न कार्य करता है:

  1. अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति की स्थिति में मौद्रिक नीति में बदलाव करके मुद्रा के प्रवाह को सीमित करना;
  2. मुद्रा के संकुचन को संतुलित करने के लिए अपने रिज़र्व कोश में से कुछ मुद्रा का प्रवाह अर्थव्यवस्था में करना;

निरीक्षण कार्य:

एक सफल निरक्षक के रूप में रिज़र्व बैंक निम्न कार्य करता है:

1. बैंकों को व्यापार और बैंकिंग कार्य करने के लिए लाइसेन्स प्रदान करना।

2. बैंकिंग अधिनियम के अधीन रिज़र्व बैंक द्वारा विभिन्न बैंकों के सभी कार्यों का समय-समय पर निरीक्षण करना;

3. बैंकों के निवेशकर्ताओं के फायदे को ध्यान में रखते हुए समय-समय जमा बीमा योजनाओं को लागू करना;

4.सभी व्यावसायिक बैंकों के कार्यों का निरीक्षण करना जिससे बैंको की कार्यकुशलता में निरंतर विकास होता रहे।

5. नॉन-बैंकिंग वित्तीय निगमों पर समुचित नियंत्रण करने के लिए उनके कार्यों की समय-समय पर देखभाल करना

विकास संबंधी कार्य:

1. बैंकिंग व्यवहार का विकास-विस्तार करने के उद्देश्य से रिज़र्व बैंक ने 1962 में डी-पोयस्ट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन जैसी संस्थाओं का गठन किया गया। इसके साथ ही 1963 में कृषि सुधार निगम , 1964 में यूनिट ट्रस्ट और इंडिया और आईडीबीआई, 1972 में भारतीय औधोयोगिक पुनर्निर्माण निगम और 1982 में एनएबीएआरडी जैसे वित्तीय संशताओं का गठन किया गया। इसका उद्देश्य देश में आर्थिक स्थिरता और संतुलित औध्योगिक विकास करना था।

2. भारत के निर्यात विकास व संवर्धन के लिए पुनर्वित्त की व्यवस्था करने के उद्देश्य से विभिन्न सेवाओं का आरंभ किया गया। इनमें शामिल थी:

  • निर्यात साख और गारंटी निगम की स्थापना;
  • निर्यात संवर्धन बैंक का गठन;

3. रिज़र्व बैंक नाबार्ड के माध्यम से कृषि और संबन्धित कार्यों के लिए विभिन्न प्रकार के लघु व मध्यम प्रकृति के ऋण उपलब्ध करवाता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रिय ग्रामीण साख फंडस के द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में भी वित्तीय सहायता प्रदान करना भी इसका काम है।

4. लघु-उधयोग को आर्थिक व वित्तीय सहायता देने के लिए सभी व्यावसायिक बैंको को लघु व मध्यम आकार के उद्योगों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के निर्देश देता है। इसके लिए बैंको द्वारा इस क्षेत्र को गारंटी देना और अग्रिम देने की व्यवस्था व निर्देश भी रिजर्व बैंक देता है।

5. देश के को-ओपेरेटिव क्षेत्र का विकास करने के उद्देशय से राज्य के सहकारी बैंकों को अप्रत्यक्ष वित्त प्रदान करता है।

6. बैंकों को न्यूनतम वैधानिक आवश्यकताओं जैसे पूर्ण दत्त पूंजी, रिजर्व, नकद रिज़र्व, लिक्विड एसेट आदि के बारे में सुझाव देना।  

सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक देश के वित्तीय व मौद्रिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए वह सभी उपाय करता है जिससे अर्थव्यवस्था में मौद्रिक प्रवाह को संतुलित रखा जा सके।

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