भारतीय विरासत संस्थान (Indian Institute of Heritage)

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Indian Institute of Heritage


17 दिसंबर 2020, को केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार ग्रहण कर चुके राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान सोसायटी के सदस्यों के साथ भारतीय विरासत संस्थान की स्थापना के प्रस्ताव पर विस्तृत चर्चा और विचार विमर्श किया तथा उसके बाद एक ट्वीट के माध्यम से भारतवर्ष के पहले ’’ भारतीय विरासत संस्थान ’’ की स्थापना किये जाने की बात को हमारे सामने रखा हैं। भारतीय विरासत संस्थान को समर्पित आज इस लेख के माध्यम से हम भारतीय विरासत संस्थान की पृष्ठभूमि, वर्तमान समय मे इसकी प्रासंगिकता, महत्व आदि पर आवश्यक, अनिवार्य व मूलभुत जानकारी अग्रलिखित बिंदुओं से प्राप्त करेंगे।

भारतीय विरासत संस्थान (Indian Institute of Heritage) को समर्पित अपने इस लेख को हम, कुछ मौलिक बिंदुओ के तहत प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे ताकि हमारे पाठक इस लेख की मदद से भारतीय विरासत संस्थान की पूरी, वास्तविक और विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकें। हमारे इस लेख के मौलिक बिंदु इस प्रकार हैं –

  1. भारतीय विरासत संस्थान (Indian Institute of Heritage)
  2. भारतीय विरासत संस्थान की पृष्ठभूमि,
  3. उद्देश्य एवं वर्तमान समय में, इसका महत्व व प्रासंगिकता,
  4. भारत में, स्थित पुरातन महत्व के स्थल,
  5. भारतीय कला – संस्कृति तथा पुरात्तव के बुनियादी स्तंभ,
  6. निष्कर्ष आदि।

भारतीय विरासत संस्थान (Indian Institute of Heritage)

• भारतीय विरासत संस्थान, भारतीय संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय के अंतर्गत एक प्रस्तावित संस्थान है, इसका मुख्यालय धौलावीरा, कच्छ(गुजरात) में प्रस्तावानुसार स्थित है। इसकी स्थापना सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत की जाएगी।

• केंद्र सरकार भारतीय विरासत संस्थान को डीम्ड विश्वविद्यालय के रूप में विकसित करना चाहती है। इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, राष्ट्रीय अभिलेखागार या इन के समकक्ष देश के अन्य संस्थानों में चलाये जा रहे विभिन्न पाठ्यक्रमों को भारतीय विरासत संस्थान के तहत लाने का विचार केंद्र सरकार कर रही है।

• संस्थान द्धारा कला इतिहास, संरक्षण, संग्रहालय विज्ञान, अभिलेखीय अध्ययन, पुरातत्व, निवारक संरक्षण, पुरालेख एवं मुद्राशास्त्र, पांडु लिपि विज्ञान और संबंधित क्षेत्रों के साथ ही कार्यरत कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण में एम.ए, पीएच.डी, डिप्लोमा और प्रमाण पत्र पाठ्यक्रमों को प्रस्तुत किया जायेगा।

• भारतवर्ष के मौजूदा वर्तमान समय में, पुरातन और सामरिक महत्व की सामग्रियों के संरक्षण एवं अध्ययन के लिए राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान सोसायटी पूरी तरह से समर्पित है, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय इसके दायित्वों एवं अधिकारों को विस्तृत, वृहत और व्यापक रूप प्रदान करते हुए, इसे भारतीय विरासत संस्थान के रूप में प्रस्तुत कर रही है।

भारतीय विरासत संस्थान की पृष्ठभूमि

• भारतवर्ष में, भारतीय विरासत संस्थान की स्थापना का सबसे पहले प्रस्ताव आम बजट 2020 -21 में वित्त मंत्री श्रीमति. निर्मला सीतारमण ने, भारतीय धरोहर और संरक्षण संस्थान के रूप में रखा था। भारतीय विरासत संस्थान की स्थापना के लिए संस्कृति मंत्रालय के बजट को 3,042.35 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 3,150 करोड़ रुपये और पर्यटन मंत्रालय के बजट को 2,189.22 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2,500 करोड़ रुपये किया गया है।

• भारतीय विरासत संस्थान के साथ-साथ रांची और झारखंड में, एक जनजातीय संग्रहालय की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा गया है तथा हस्तिनापुर, राखीगढ़ी, शिवसागर, आदिचनल्लूर और धोलावीरा में स्थित पुरातन संस्कृति से सम्बंधित पुरात्तव स्थलों का पुनरोद्धार तथा विकास किया जायेगा।

उद्देश्य एवं महत्व

• हमारे पुरातत्व के महत्व वाले स्थलों से प्राप्त जानकारी के गहन अध्ययन, शोध, विकास, अनुंसधान तथा संरक्षण करने के उद्देश्य से भारत सरकार, भारतीय विरासत संस्थान की स्थापना करने जा रही है।

• सांस्कृतिक सम्पदा के विषय से संबंधित कार्य करने वाले अन्य संस्थानों जैसे कि – राष्ट्रीय संग्रहालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारतीय जीव विज्ञान सर्वेक्षण, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के मध्य सहयोग को बढ़ावा देना, संस्थानों के बीच तकनीकी ज्ञान तथा संचार के अत्याधुनिक साधनो की खोज और उपलब्ध साधनो को विकसित करना।

• किसी भी देश की सांस्कृतिक तस्वीर में, उसकी ऐतिहासिक महत्व व विरासत को दर्शाने व प्रदर्शित करने वाली तमाम सामग्रियां बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील भूमिका निभाती है। ये सभी सामग्रियां दर्शाती है कि, उक्त संस्कृति कितनी समृद्ध, पुरातन, खुशहाल, विकसित, वैज्ञानिक और जीवन्त रही है जिससे हमें, उक्त संस्कृति की जीवन-शैली व भाषा – शैली आदि का ज्ञान भी सहजता से प्राप्त हो जाता है।

भारत में, पुरातन महत्व के स्थल

आइये दोस्तों पुरातत्व महत्व के उन पांच स्थानों के बारे में, पूरी जानकारी प्राप्त करते हैं जिनके विकास, समृद्धि तथा संवर्धन का मौलिक दायित्व ‘ भारतीय विरासत संस्थान ‘ के मजबूत कंधो को जिम्मेदारीपूर्वक प्रदान किया गया हैं। इन पांचो पुरातात्विक स्थलो की संतुलित सूची इस प्रकार से हैं –

धोलावीरा

गुजरात के कच्छ में, स्थित इस स्थान को हड़प्पा सभ्यता व संस्कृति के समृद्ध नगरों में पहले स्थान पर गिना जाता है क्योंकि यह नगर आज से 5000  वर्ष पूर्व अस्तित्व में था। इस स्थान कि, खोज 1960 में हुई थी। इस स्थान की खुदाई का कार्य पुरातत्व विभाग के डॉ. रविंद्र सिंह बिष्ट जी के कुशल व दूरदर्शी नेतृत्व में हुआ तथा 1990 तक इस नगर की खुदाई का काम चला था। पुरात्व विभाग का मानना है कि, इस नगर का क्षेत्रफल 100 हेक्टेयर में फैला हुआ था। धौलावीरा की खुदाई में पक्के ईंटो से बने भवनों व मृदभांडो के अवशेष प्राप्त हुए हैं तथा एक अति उन्नत जल संरक्षण प्रणाली मिली है जो इस बात की ओर संकेत करती हैं कि, अपने समय में, यह नगर वैज्ञानिक रूप से बेहद उन्नत और अत्याधुनिक नगर रहा होगा।

राखीगढ़ी

राखीगढ़ी, हरियाणा में, घग्घर नदी के किनारे स्थित एक पुरातात्विक स्थल है। इस स्थान की खोज 1963  में हुई थी और यह भी हड़प्पा सभ्यता के प्राचीन नगरों में से एक है जिसकी खुदाई का कार्य समय – समय पर होता रहा है और जो वर्तमान में भी जारी है। इस नगर का कुल क्षेत्र फल लगभग 105  हेक्टेयर है, यहाँ की खुदाई में, 5000  साल पुरानी वस्तुऐं, नगर में आने – जाने के लिए अति-विकसित मार्ग व्यवस्था,  जलनिकासी तथा जल संग्रहण की समुचित व्यवस्था आदि के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।

हस्तिनापुर

यह उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित है। इस स्थान पर सिरेमिक उद्योग की खोज की गयी है। इसे ’’ पेंटेड ग्रे वेयर ’’ नाम दिया गया था और इसका उपयोग प्रारंभिक इंडो-आर्यन्स के द्वारा किया जाता था। इसके अतिरिक्त इस स्थान का पौराणिक व धार्मिक महत्व भी है क्योंकि यह स्थान महाभारत काल में, कौरवों की राजधानी भी रह चुकी है। वर्तमान में यह पुरातन महत्व का एक प्रमुख स्थान बन चुका है।

शिवसागर

इस पुरातात्विक स्थान पर खुदाई का कार्य साल 2007-08 में किया गया था और जिसमें इस स्थल पर बर्तन व कटोरे इत्यादि सामग्रियों की प्राप्ति हुई थी। 13 वीं शताब्दी में, चीन के युन्नान क्षेत्र से  अहोम लोग इस इलाके में आए। यहाँ का राजा शिव सिंह था जिसके नाम पर इस स्थान का नाम शिवसागर पड़ा था , शिव सिंह का शासन काल 1699 से 1788 तक रहा था। शिवसागर असम की राजधानी गुवाहाटी के उत्तर पूर्व में 360 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ पर पुरातन महत्व के बहुत से स्मारक व स्थल मौजूद हैं।

आदिचनल्लूर

तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में, स्थित आदिचनल्लूर भी एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है। उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, आदिचनल्लूर पांडियन साम्राज्य से संबंधित है और  यहीँ पर प्राचीन तमिल – ब्राह्मी लिपि की खोज हुई,  टूटे हुए मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े और आवासीय स्थानों के पुख्ता अवशेष मिले हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि, यहाँ  905 -696 ईसा पूर्व जीवन संभव था तथा तमिल सभ्यता के साथ लोग यहां जीवन – बसर करते थे क्योंकि यहाँ मिले मानव कंकालों के गहन शोध करने पर मालूम होता है कि, ये 2500-2200 ईसा पूर्व के हो सकते हैं।

भारतीय कला – संस्कृति तथा पुरात्तव के बुनियादी स्तंभ

हमारी  कला, संस्कृति तथा उसकी पुरातन जानकारी का संरक्षण, संवर्धन ,विकास , शोध तथा अनुसन्धान करने वाले तत्व भारतीय धरोहर के मजबूत बुनियादी स्तम्भ है जो कि –  देश के संग्रहालय , अभिलेखागार एवं सर्वेक्षण संगठन आदि हैं। आइये  इनके बारे में आवश्यक एवं आधारभूत जानकारी प्राप्त करते हैं।

राष्ट्रीय संग्रहालय

राष्ट्रीय संग्रहालय राजधानी दिल्ली में, दस जनपथ में, स्थित है, इसकी स्थापना 1949 में, की गयी थी। राष्ट्रीय संग्रहालय, सांस्कृतिक मंत्रालय के अधीन कार्य करता है जिसकी स्थापना का उद्देश्य ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कलात्मक महत्व की प्राचीन कलाकृतियों को प्रदर्शित, सुरक्षित, परिरक्षित और निर्वचन (शोध) के प्रयोजन के लिए संग्रहीत करना है।

राष्ट्रीय संग्रहालय में, प्राग – ऐतिहासिक काल से लेकर वर्तमान युग की विभिन्न प्रकार की कलाओं को प्रदर्शित, सुरक्षित व संवर्धित किया गया है क्योंकि भारत में, कहीं पर भी या कही से भी प्राप्त कलाकृतियों का यह एकमात्र अनूठा संग्रह है क्योंकि यहाँ पर २ लाख से अधिक देशी तथा विदेशी कलाकृतियों का विशाल संग्रह है जैसे कि –  ईसा पूर्व के टेराकोटा, मौर्यकालीन लकड़ी की मूर्तियाँ, विजयनगर की कालात्मक वस्तुयें और मोहनजोदड़ो की नृत्य करती हुई मूर्ति आदि प्रमुख आकर्षण हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारतीय सांस्कृतिक विरासतों के पुरातत्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रमुख तौर पर जिम्मेदार है तथा इसका कार्य राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारको तथा पुरातत्वीय स्थलो और अवशेषों का समुचित रख – रखाव करना है। इसकी स्थापना 1861 में, अंग्रेजी शासन के द्धारा की गयी थी और इसका मुख्यालय दस जनपथ नई दिल्ली में है। वर्तमान में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास 3650 से अधिक प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्व के अवशेष सुरक्षित हैं।

भारतीय जीव विज्ञान सर्वेक्षण

भारतीय जीव सर्वेक्षण ( जूलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया )  की स्थापना  1 जुलाई 1916  में, कोलकाता में, की गयी थी। वर्तमान में, यह भारतीय पर्यावरण और वन मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। इसका मुख्यालय कोलकाता में है और ये 1875  में, अस्तित्व में आ गया था तब इसकी स्थापना जीव विज्ञान अनुभाग के रूप में, भारतीय संग्रहालय कोलकाता में, की गयी थी और  इसकी स्थापना का मौलिक उद्देश्य जीव जगत से सम्बंधित सर्वेक्षण, अन्वेषण और अनुसंधान को बढ़ावा देना है।

राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय

राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय ( नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट ) की स्थापना 29 मार्च, 1954  को जयपुर हाऊस ( नईदिल्ली ) में, की गयी थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य 1850 से अब तक की आधुनिक कलाकृतियों को प्राप्त कर उनका परिरक्षण व संवर्धन करना तथा कला – इतिहास, कला – समीक्षा, कला – प्रोत्साहन, संग्रह-विज्ञान तथा दृश्य एवं अभिनीत कलाओं को प्रोत्साहन देने हेतु, व्याख्यानों, गोष्ठियों, सम्मेलनों एवं कार्यशालाओं का आयोजन करना है।

राष्ट्रीय अभिलेखागार

भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार की स्थापना  11 मार्च 1891 को कोलकाता में, इंपीरियल रिकॉर्ड विभाग के रूप में की गई थी। 1911 में, राजधानी दिल्ली के स्थान्तरण के साथ-साथ राष्ट्रीय अभिलेखागार भी दिल्ली में, स्थान्तरित हो गया था। राष्ट्रीय अभिलेखागार के वर्तमान भवन का निर्माण 1926 को हुआ था और स्वतंत्रता के पश्चात् इसका नाम ’’ इंपीरियल रिकॉर्ड विभाग से बदल कर राष्ट्रीय अभिलेखागार ’’  कर दिया गया था। वर्ष 1990 में, इस विभाग को भारतीय संस्कृति मंत्रालय के अंतगर्त संबद्ध किया गया था। इसका क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल में है तथा अभिलेख केंद्र- जयपुर, पुडुचेरीऔरभुवनेश्वर में हैं।

निष्कर्ष

दोस्तों, कोई भी संस्कृति जितनी पुरातन होती जाती है ऐतिहासिक रूप से उसका महत्व उतना ही बढ़ता जाता है। वर्तमान में, मौजूदा सभ्यताओं में, भारतीय आर्य  सभ्यता को सबसे प्राचीन माना जाता है और इसलिए हमें जरुरत  है कि, इसकी महत्ता व प्रासंगिकता को समझे और इस बात पर विचार करें कि, क्यू यहाँ पर विदेशो से व्यक्ति आकर अध्ययन तथा ज्ञान आदि प्राप्त करते थे जिसके प्रमुख उदाहरण के तौर पर हम – ह्वेनसांग , फाह्यान  और मार्कोपोलो आदि को मान सकते है। भारत सरकार के इस सराहनीय व उल्लेखनीय प्रयास के  लिए हम उन्हें धन्यवाद व भविष्य के लिए शुभकामनायें देते है तथा अपने इस लेख को यहीं पर विराम देते हैं। यदि आपको हमारा यह लेख जानकारी पूर्ण व ज्ञान पूर्ण लगा हो तो आप हमे कमेंट करे तथा  इसे शेयर करे। आप हमे फेसबुक और इंस्टाग्राम में भी फॉलो कर सकते हैं , धन्यवाद।

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