ग्लोबल वार्मिंग क्या है?

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global warming


विश्व में पिछले कुछ दशकों में कुछ नए शब्दों का प्रचलन देखने में आया है, जो वैज्ञानिक और शोध शालाओं से होते हुए जनमानस के जीवन में घुल गए हैं। सूचना व औध्योगिक क्रान्ति, लाइफस्टाइल और ग्लोबल वार्मिंग ऐसे ही कुछ शब्द हैं। देखने में यह शब्द असंबंधित लगते हैं लेकिन वास्तविकता में सभी आपस में कडी के रूप में जुड़े हुए हैं। ग्लोबल वार्मिंग जो किसी समय एक अंजाना शब्द था आज विश्व स्तर पर चिंता का विषय बन गया है। क्या आप जानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग क्या है और इसका क्या प्रभाव हो सकता है आइए इसकी पूरी जानकारी प्राप्त करते हैं:

ग्लोबल वार्मिंग क्या है:

भारत के छोटे शहरों में बैठा हर एक व्यक्ति यही पूछ रहा है कि ग्लोबल वार्मिंग क्या है। दरअसल ग्लोबल वार्मिंग शब्द का प्रयोग विश्व स्तर पर फैली उस समस्या के लिए किया जाता है जिसके अंतर्गत पृथ्वी के तामपान में वृद्धि का संकेत दिया जाता है। सामान्य रूप से पृथ्वी पर हर प्रकार के जीव-जन्तु को ज़िंदा रहने के लिए न्यूनतम 16° तापमान की ज़रूरत होती है। लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से निरंतर होने वाली औद्ध्योगिक और सूचना क्रांति के परिणामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में 1° तापमान में वृद्धि हो गई है। इसी स्थिति को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है।

वायुमंडल और ग्लोबल वार्मिंग में संबंध:

ग्लोबल वार्मिंग के कारण को समझने से पूर्व हमें अपने आसपास के वातावरण और इसकी बनावट को समझना होगा। दरअसल हम जिस हवा या वायु में साँस लेते हैं यह विभिन्न प्रकार की गैस और जल कण से बनी होती है। दूसरे शब्दों में इन गैसों और जल वाष्प के संयोग को वातावरण कहते हैं। इस वातावरण में जब सूरज की किरणें प्रवेश करती हैं तब अधिकांश तो परिवर्तित होकर इसमें घुल जाती हैं और इनका बहुत छोटा भाग धरती पर पहुँच जाता है। तकनीकी भाषा में कहें तो सूर्य किरणों के तेज को वायुमंडल के ग्रीन हाउस द्वारा एब्सोर्ब करके शेष भाग को  वापस अन्तरिक्ष में भेज दिया जाता है। जो हिस्सा वातावरण में एब्सोर्ब होता है उसे ऊष्मा के रूप में पृथ्वी पर भेज दिया जाता है जिससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होती है।

लेकिन जब कुछ कारणों से इस ग्रीन हाउस की संरचना में परिवर्तन हो जाता है तब इस प्रक्रिया में भी अंतर आ जाता है। परिणामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में भी अंतर आने लगता है। यही अंतर ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है।

ग्लोबल वार्मिंग का कारण क्या है:

ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण वातावरण की संरचना में तेजी से परिवर्तन का आना माना जाता है। यह परिवर्तन वातावरण  में गैसों का बढ्न और सूर्य-किरणों का अधिक अवशोषण के रूप में दिखाई देता है। इससे पृथ्वी तक पहुँचने वाले ऊष्मा भी बढ़ जाती है और इसी को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। इस स्थिति के उत्पन्न होने के पीछे निम्न कारण जिम्मेदार माने जा सकते हैं:

1. जीवाश्म ईंधन का दुरुपयोग:

जीवाश्म ईंधन को पृथ्वी की धरोहर माना जाता है। पृथ्वी की उथल-पथल में जो भी जीव, पेड़-पौधे और वृक्ष आदि जब पृथ्वी के गर्भ में समा जाते हैं तो करोड़ों वर्ष बाद यह जीवाश्म ईंधन में परिवर्तित हो जाते हैं। इसके बाद यह पृथ्वी में संचित गैस, तेल और कोयले के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। लेकिन लंबे समय तक इनके प्रयोग से वातावरण पर बुरा असर पड़ता है, क्योंकि इनके जलाने से कार्बन डाइ आक्साइड गैस निकलती है। इस गैस के वातावरण में मिल जाने से ग्रीन हाउस में इस गैस की मोटी लेयर बनती है जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बन जाती है।

2. पेड़ों की कटाई:

जनसंख्या विस्फोट, औध्योगीकरण और आधुनिक जीवन शैली ने पेड़ों की कटाई के काम को युद्धस्तर पर ला कर खड़ा कर दिया है। इस कारण हवा में घुली कार्बन डाइ ऑक्साइड जो पहले पेड़ो द्वारा स्वयं ग्रहण कर ली जाती थी, अब वातावरण में ही रह जाती है। इसके अतिरिक्त बड़ी मात्रा में पेड़ों की कटाई होने से भूमि की उर्वर सतह का क्ष्ररण भी हो जाता है जिससे भूमि की उर्वरता खत्म हो जाती है। भूमि का क्षरण भी तेज़ी से होता है जिसके कारण भू-स्खलन और पहाड़ों का गिरना अब एक आम बात हो गई है। इन सबका ग्लोबल वार्मिंग में योगदान माना जाता है।

3. यातायात प्रदूषण:

जनसंख्या विस्फोट ने परिवहन के साधनों में वृद्धि करके इन सभी साधनों से निकले धुएँ से प्रदूषण में तेजी से वृद्धि की है। इन साधनों में इस्तेमाल होने वाला पेट्रोल और डीजल भारी मात्रा में वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड छोड़ता है। इस प्रकार अब यह माना जाता है कि ग्लोबल वार्मिंग में बहुत बड़ा हाथ यातायात के साधनों से निकलने वाले धुएँ के प्रदूषण का है।

4. आधुनिक इलेक्ट्रोनिक उपकरण:

वर्तमान समय में लगभग हर घर में एसी, जेनरेटर और इसी तरह के सुविधा देने वाले उपकरण प्रयोग किए जा रहे हैं। लेकिन इन उपकरणों से निकालने वाला ईंधन का प्रदूषण आसपास की हवा को बोझिल और दूषित करके ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ावा कर रहा है।

5. औध्योगिक क्रान्ति:

किसी भी देश का विकास उसके औध्योगिक विकास पर निर्भर करता है। लेकिन यही औध्योगिक विकास ग्लोबल वार्मिंग को तेज़ी से बढ़ाने में भी मदद कर रहा है। फैक्ट्रियों और कारखाने से निकलने वाले धुएँ में विनाशकारी गैसें होती हैं जो न केवल वातावरण को प्रदूषित करती हैं बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालती हैं। इसका ही मिला-जुला प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग पर हो रहा है

6. रासयानिक उर्वरक:

कृषि क्रान्ति के परिणामस्वरूप फसल में वृद्धि करने के लिये रासयानिक उर्वरकों का तेज़ी से प्रयोग किया जा रहा है। इसका सीधा प्रभाव वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड में होने वाली वृद्धि के रूप में दिखाई देता है। यह गैस कार्बन डाइ ऑक्साइड से भी अधिक खतरनाक होती है और ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार मानी जा सकती है।

ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव:

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में जो दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं वो हैं :

1. देशों के मूल और वास्तविक तापमान में अचानक विपरीत परिवर्तन होना, 

2. ग्लेशियर का अचानक बड़ी मात्रा में पिघलना,

3. समुद्री जल में तेज़ी से वृद्धि होना,

4. बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं का बार-बार आना,

5. भू-स्खलन, भूकंप, ज्वालामुखी जैसी स्थिति का बार-बार उत्पन्न होना।

6. रेगिस्तानी इलाकों का बढ़ना।

ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव,  वातावरण में गैसों का स्तर बढ्ने से एक मोटी और सघन परत बनने के रूप में भी दिखाई देता है। इससे सूर्य का प्रकाश और किरणें पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाती हैं। 21वीं शताब्दी के सबसे बड़े खतरे के रूप में देखे जाने वाली ग्लोबल वार्मिंग की समस्या किसी एक देश की नहीं बल्कि समूचे विश्व की है।

ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उपाय:

मानव यही चाहे तो क्या नहीं कर सकता है। इसी प्रकार निम्न उपायो को अपनाकर ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या का भी हल निकाला जा सकता है:

1. वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाली सभी गैसों की निकासी को रोकने का प्रयास करना होगा। इसमें सबसे बड़ा योगदान परिवहन के लिए वैकल्पिक ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा सकता है। पैट्रोल और डीजल के स्थान पर ई-ऊर्जा का प्रयोग इसमें सबसे अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

2. पारंपरिक ऊर्जा के स्त्रोत के स्थान पर नए और वैकल्पिक स्त्रोत देखने चाहिए। इसके लिए वायु ऊर्जा (पवन चक्की), सौर ऊर्जा आदि का उपयोग किया जा सकता है।

3. जितना हो सके उतना री-साइकलिंग पर ज़ोर दिया जाये। फैक्ट्रियों से निकलने वाले पानी को शुद्ध करके पुनः प्रयोग किया जा सकता है।

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