चिपको आंदोलन के ध्वज धारक सुंदरलाल बहुगुणा

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Sunderlal Bahuguna


‘क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार.
मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार.’

1973 में साधारण सी दिखने वाली इन पंक्तियों ने वह आंदोलन शुरू किया जिसने न केवल भारत में बल्कि समूचे विश्व में एक नयी गूंज सुनाई दे रही थी। इस गूंज का नाम ‘चिपको आंदोलन’ था और  इसकी शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले से भारत के सुप्रसिद्ध नेता सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में हुई थी। साधारण शक्ल सूरत का एक आम आदमी जिसने न केवल समाज के उच्च वर्ग का सामना किया बल्कि पहली बार पर्यावरण रक्षा करने का बीड़ा भी उठाया था।

आज़ादी पूर्व के सुंदरलाल बहुगुणा:

उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव सिलयारा में 9, जनवरी 1927 को एक सामान्य बालक का जन्म हुआ जिसे प्यार से माता-पिता ने नाम दिया सुंदरलाल । किशोर सुंदरलाल ने बचपन से ही अपनी माँ को लगभग 18 घंटे घर के केवल उन कामों में ही व्यस्त देखा था जो उस समय ‘केवल महिलाओं के लिए’ ही माने जाते थे। इन दृश्यों ने किशोर सुंदरलाल के मन में शुरू से ही पहाड़ी ग्रामीण महिलाओं के उत्थान और उनके जीवन में सुधार लाने का हठ पैदा कर दिया था।

इस हठ का ही परिणाम था कि तेरह वर्ष के सुंदरलाल ने अपना सामाजिक और राजनैतिक जीवन शुरू कर दिया था। महात्मा गांधी को अपना गुरु मानने वाले सुंदरलाल ने किशोर अवस्था से ही समाज सेवा का व्रत उठा लिया था और उनकी इस समाज सेवा यात्रा में गुरु बनकर महात्मा गांधी के शिष्य श्री देव सुमन थे। इस यात्रा में युवा सुंदरलाल ने यह सीखा की किस प्रकार अहिंसा के मार्ग पर चलकर भी से समाज में बड़ा परिवर्तन किया जा सकता है। इसी के साथ शिक्षा के प्रेमी सुंदरलाल ने अपनी पढ़ाई उत्तराखंड, दिल्ली और लाहौर में पूरी करी और कला स्नातक की डिग्री हासिल करी ली। सुंदरलाल ने अपने राजनैतिक जीवन को अपने विवाह तक अथार्थ 1956 तक पूरी लगन से जिया था। सुंदरलाल का विवाह एक घरेलू महिला विमला नौटियाल से हुआ था। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने सक्रिय राजनैतिक जीवन से सन्यास लेकर पहाड़ों में आम जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया था।

इसी दौरान उनका विवाह अपनी पढ़ाई पूरी करके युवा सुंदरलाल अपनी पत्नी विमला के साथ समाज सेवा और दलित उत्थान में सक्रिय रूप से लग गए।

आज़ादी के बाद सुंदरलाल बहुगुणा:

आजाद भारत में भी दलितों के सामाजिक स्तर में परिवर्तन न देखकर सुंदरलाल और उनकी पत्नी ने अपनी जन्मभूमि सिलायारा में एक समूह ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना की। इस समूह का उद्देशय दलित वर्ग के विध्यार्थियों के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करके उन्हें आगे बढ्ने का मौका देना था। इसके लिए इनहोनें टिहरी ग्राम में एक ‘ठक्कर बाप्पा होस्टल’ भी स्थापित किया ।

इसके साथ ही सुंदरलाल ने दलित वर्ग के मंदिर प्रवेश अधिकार के लिए भी अपनी आवाज बुलंद की थी। इसके साथ ही 1971 में शराब की दुकानों को बंद करवाने के लिए अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए सोलह दिनों का उपवास किया था। इस आंदोलन की सफलता ने सुंदर लाल को पर्यावरण रक्षा का सूत्र भी मिल गया था।

भारत के आज़ाद होने के बाद समाजसेवी सुंदरलाल 1960 तक आते हुए अपने आस-पास फैले भ्रष्टाचार और सामाजिक कुरीतियों से अपना मुँह नहीं मोड सके। गांधी जी के सच्चे अनुयाई के रूप में उन्होनें हिमालयों के गांवों में पदयात्रा शुरू कर दी थी। इस यात्रा का उद्देश्य पहाड़ी महिलाओं को शराबबंदी के खिलाफ ताकत प्रदान करना था। उस समय चीन के माध्यम से इन पहाड़ों में शराब सेवन का दौर बहुत अधिक हो गया था। इसलिए इस बुराई को जड़ से मिटाने के लिए सुंदरलाल ने अपनी पत्नी विमला के साथ मिलकर पहाड़ी महिलाओं को जाग्रत करने का काम शुरू कर दिया।

सुंदरलाल बहुगुणा का चिपको आंदोलन:

शराबबंदी के आंदोलन की सफलता ने पहाड़ी महिलाओं को सुंदरलाल के रूप में एक और गांधी जैसे नेता की छत्रछाया प्रदान कर दी थी जो अहिंसा के मार्ग पर चलकर समाज की बुराइयों का सामना कर सकता था। इस समय ब्रिटिश शासकों द्वारा शुरू किए गए पहाड़ी वृक्षों के कटाव के दुष्परिणाम सामने आने शुरू हो गए थे। इन्हें रोकने के लिए पहाड़ी वृक्षों को कटने से रोकना बहुत ज़रूरी था। इसके लिए पुनः सुंदरलाल ने महिलाओं को प्रोत्साहित किया और एक नए आंदोलन ‘चिपको आंदोलन’ का बिगुल फूँक दिया था। इसके लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने महिलाओं को वृक्षों को अंगीकार करने का सुझाव दिया जिससे कोई भी उन वृक्षों को काट न सके। उनके इस विचार का पहाड़ी महिलाओं पर अच्छा प्रभाव पड़ा और गौरा देवी नाम की महिला के नेतृत्व में एक अनोखे आंदोलन को जन्म दिया। इस आंदोलन का प्रभाव न केवल भारत में बल्कि विश्व के हर कोने में दिखाई दिया और इसका परिणाम तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अगले 15 वर्षों के लिए पहाड़ी पेड़ों के काटने पर रोक लगा दी थी

अद्भुत व्यक्तित्व सुंदरलाल बहुगुणा :

सुंदरलाल बहुगुणा जो वर्तमान में ‘पर्यावरण गांधी’ के नाम से जाने जाते हैं, महात्मा गांधी के सच्चे अनुयाई के रूप में जाने जाते हैं। महात्मा गांधी के विचारो से प्रेरित सुंदर लाल ने अपनी समाज सेवा यात्रा गांधी जी की ही तरह पदयात्रा करके पूरी की। अपने पैरों पर चलते हुए सुंदर लाल ने अपने जीवन में 4700 किलोमीटर नाप लिए हैं। चिपको आंदोलन की सफलता के बाद पर्यावरण की रक्षा के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के विरोध में अपने स्वर बुलंद कर दिये थे। वास्तव में इस बांध के कारण हिमालय से बह कर आने वाली गंगा के प्रवाह में बढ़ा आ रही थी। सरकार ने इस बाढ़ का निर्माण पहाड़ों में इधर-उधर भटकते पानी को एक निश्चित रुख देकर उसे दिल्ली की ओर मोड कर यहाँ की प्यास बुझाने के लिए किया है। लेकिन इस बांध के कारण पहाड़ी गांवों में पानी की भारी कमी दिखाई देने लगी थी। इससे विचलित होकर 1972 से लेकर 2004 तक सुंदरलाल बहुगुणा ने अपना विरोध जारी रखा और कोर्ट में पिटीशन देनी जारी रखी। 2004 में सरकार ने सुंदरलाल बहुगुणा और उनकी पत्नी को इस विरोध से हटने पर मजबूर कर दिया था।

सुंदरलाल बहुगुणा के जीवन के अनोखे रूप:

सुंदरलाल बहुगुणा के व्यक्तित्व के कुछ अनोखे पहलू को देखें तो निम्न रूप सामने आते हैं:

गांधी का प्रतिरूप:

महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी के रूप में सुंदरलाल बहुगुणा ने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए समाज से अनेक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया।

पदयात्रा:

हिमालय के गांवों में पदयात्रा के माध्यम से शराब बंदी, चिपको आंदोलन और टिहरी बांध जैसी समस्याओं को हल करने का प्रयास किया। इस संबंध में उन्होनें लगभग 5000 किलोमीटर पहाड़ी मार्ग की यात्रा की थी।

शांति दूत:

गांधी जी के पदचिन्हों पर चलते हुए सुंदर लाल ने अपने शांति पूर्ण आंदोलनों को स्थानीय मुद्दों से अंतर्राष्ट्रीय मंच तक पहुंचा दिया था।

चिपको आंदोलन:

1970 में फैले इस आंदोलन ने इस शब्द को एक सार्थक रूप प्रदान किया था। पेड़ों को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानने वाली महिलाएं उनका जीवन बचाने के लिए उन्हीं से चिपक कर खड़ी हो गईं थीं। यह विचार सुंदरलाल बहुगुणा का ही था।

संप्रति पद्म विभूषण पद से सम्मानित सुंदरलाल बहुगुणा अपनी पत्नी के साथ अपनी जन्मस्थाली में एक सादा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

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