आज भी प्रासंगिक है गांधी जी का राष्ट्रवाद

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महात्मा गांधी और सत्याग्रह आंदोलन


राष्ट्रवाद को लेकर पिछले कुछ समय से बहस जारी है कि आखिर राष्ट्रवाद का असली मतलब क्या है? राष्ट्रवाद की भावना से तात्पर्य क्या है? इसका जवाब महात्मा गांधी के राष्ट्रवाद में छिपा है, क्योंकि यह व्यापक तौर पर राष्ट्रवाद पर प्रकाश डालता है। गांधी के राष्ट्रवाद को समझने से पहले राष्ट्रवाद के सामान्य अर्थ को समझना जरूरी है। आइये जानते हैं क्यों आज भी प्रासंगिक है गांधी जी का राष्ट्रवाद।

राष्ट्रवाद का अर्थ (Meaning of Nationalism)

सही मायने में देखा जाए तो राष्ट्रवाद एक ऐसी सशक्त भावना है, जो किसी राष्ट्र के प्रति उसके नागरिकों की निष्ठा, प्रेम और समर्पण का प्रतीक होती है। आप फ्रांस की राज्यक्रांति से लेकर अब तक के अधिकतर राजनीतिक चिंतन को देख लीजिए, आपको दिख जायेगा कि राष्ट्रवाद किस तरह से इनकी रग-रग में बसा है। इसमें कोई शक नहीं कि यह राष्ट्रवाद की भावना ही है, जो किसी देश के नागरिकों को एकता बनाये रखने के लिए प्रेरित करती है, उन्हें अपने सांस्कृतिक मूल्यों से प्यार करना सिखाती है और खुद से पहले राष्ट्र को अहमियत देने की प्रेरणा देती है।

गांधी जी के राष्ट्रवाद की विशेषताएं

अब जब हमने राष्ट्रवाद को सामान्य तौर पर समझ लिया है, तो आईए अब समझते हैं कि गांधी का राष्ट्रवाद क्या है और इसकी कौन-कौन सी विशेषताएं रही हैं:

महत्वपूर्ण तत्व

दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्याग्रह के साथ गांधी ने अपने राष्ट्रवाद का बिगुल फूंका था। भारत में चंपारण सत्याग्रह से लेकर खेड़ा सत्याग्रह, वायकोम सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन तक गांधी के राष्ट्रवाद का हिस्सा रहे हैं। उपवास, धरना, असहयोग, हड़ताल, बहिष्कार एवं अनशन आदि गांधी के राष्ट्रवाद के प्रमुख तत्व रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा, स्वराज्य, सांप्रदायिक एकता एवं स्वतंत्रता उनके राष्ट्रवाद के महत्वपूर्ण तत्व रहे हैं। वसुधैव कुटुंबकम भी उनके राष्ट्रवाद का प्रमुख हिस्सा रहा था।

आर्थिक पुनर्निमाण की सोच

गांधी का सभी का उदय यानी कि सर्वोदय में विश्वास रखते थे। मशीनीकरण, औद्योगीकरण एवं पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित उनका राष्ट्रवाद देश का आर्थिक पुनर्निमाण करना चाहता था। स्वदेशी पर बल देते हुए उन्होंने इसे राष्ट्र को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का सबसे सशक्त माध्यम बताया था, क्योंकि इससे देश का पैसा देश में ही रहकर देश को आर्थिक मजबूती प्रदान करता है।

श्रम एवं उत्पादन को लेकर

गांधी का राष्ट्रवाद श्रम शक्ति का पक्षधर था। गांधी का मानना था कि हर व्यक्ति को श्रम करके पूरी ईमानदारी से समाज में अपना योगदान देना चाहिए। तभी जाकर वह कुछ भी ग्रहण करने का अधिकार रखता है। गांधी के मुताबिक हर व्यक्ति के पास रोजगार प्राप्त करने का मूल अधिकार है। आधुनिक सभ्यता के दुष्परिणामों को गांधी का राष्ट्रवाद वर्ष 1909 में ही भांप गया था। तभी तो ‘हिंद स्वराज’ नामक पुस्तिका में गांधी ने इंसानों की आवश्यकताओं को सीमित रखने की वकालत की थी। गांधी चाहते थे कि गांव उत्पादन और उपभोग की प्रमुख इकाई के रूप में उभरें।

राजनीतिक चिंतन का झलकना

गांधी के राष्ट्रवाद में हमें राजनीतिक चिंतन की भी झलक देखने को मिल जाती है, जिसके केंद्र में मानवों का कल्याण है। गांधी मानते थे कि राष्ट्रीयता और मानवता एक-दूसरे के पूरक ही हैं। गांधी का यह विश्वास था कि त्याग के साथ बलिदान, अच्छे आचार-विचार और दुनिया का कल्याण करने वाले आदर्शों पर राष्ट्रवाद निर्भर करता है। हिंसा के लिए गांधी के राष्ट्रवाद में तनिक भी जगह नहीं रही है। यहां तक कि पश्चिम के राष्ट्रवाद से भी गांधी का राष्ट्रवाद पूरी तरह से अलग खड़ा होता है।

सांस्कृतिक स्वराज्य के पक्षधर

गांधी के राष्ट्रवाद की खासियत सांस्कृतिक स्वराज्य भी रहा है। राष्ट्रीय भाषा की वकालत करना, राष्ट्रीय शिक्षा पर बल देना, सांप्रदायिक एकता को प्रोत्साहित करना और स्वदेशी अपनाने पर जोर देना ये सभी इसकी पुष्टि करते हैं। यही वजह रही कि छुआछूत के उन्मूलन, स्वदेशी आंदोलन को प्रोत्साहन, खादी का प्रचार-प्रसार, मद्य निषेध, शिक्षा के प्रचार-प्रसार एवं महिला सशक्तीकरण जैसे रचनात्मक कार्यक्रमों को उन्होंने अपने स्वराज्य आंदोलन में शामिल कर लिया था। इसलिए राजनीति के साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्वराज्य भी गांधी के राष्ट्रवाद के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं।

जनमानस को जागृत करने का उद्देश्य

गांधी मानते थे कि जनता की भागीदारी के बिना कोई भी आंदोलन सफल नहीं हो सकता। इसलिए उन्हें जनता को जागृत करके उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना राष्ट्रवाद के लिए बेहद अहम माना। जो राष्ट्रीयता की भावना गांधी ने अपने अंदर भर रखी थी, वे वही भावना जनता के अंदर भी भरना चाहते थे। गांधी ने इसके दम पर ही भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान दिलाने का सपना देखा था। गांधी का राष्ट्रवाद मानता है कि राष्ट्र और जन के बीच की दूरी को पाटे बिना कोई भी राष्ट्र सशक्त नहीं हो सकता है।

निष्कर्ष

गांधी ने जो राष्ट्रवाद का रास्ता इस देश के लोगों को दिखाया, उस रास्ते पर चलने को आज कितने लोग राजी हैं, यह कहना तो मुश्किल है, मगर यह भी एक सच है कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में गांधी के राष्ट्रवाद (Gandhian Nationalism) का कोई विकल्प भी नहीं है।

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